Tuesday, December 9

इसकी शुरुआत बमुश्किल दिखाई दे रही एक दरार से हुई—जो फाल्कन-9 बूस्टर की प्रेशर फीडलाइन के वेल्ड जॉइंट में छिपी हुई थी। यह अंतरिक्ष उड़ान की विशाल मशीनरी में संभवत: एक छोटी सी खामी रही होगी। लेकिन भारत के लिए, यह निर्णायक घड़ी थी। इसरो के हमारे सचेत और अटल वैज्ञानिकों ने जवाब माँगा। उन्होंने कामचलाऊ उपायों की बजाए,मरम्मत पर ज़ोर दियाऔर ऐसा करके, उन्होंने न सिर्फ़ एक मिशन की रक्षा की बल्कि—एक सपने की भी हिफाजत की ।
उस सपने ने 25 जून, 2025 को उड़ान भरी, जब भारतीय वायु सेना के अधिकारी और इसरो-प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री, ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, एक्सिओम-4 मिशन के ज़रिए कक्षा में पहुँचे। एक दिन बाद अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से जुड़कर, वह —न सिर्फ़ अंतरिक्ष में, बल्कि मानव-केंद्रित विज्ञान, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी के भविष्य में भीभारत की अगली बड़ी छलांग का चेहरा बन गए।
यह कोई रस्मीे यात्रा नहीं थी। यह एक वैज्ञानिक धर्मयुद्ध था। शुक्ला अपने साथ सात माइक्रोग्रैविटीप्रयोग लेकर गए थे। इनमें से प्रत्येक प्रयोग को भारतीय शोधकर्ताओं ने उन सवालों के उत्तबर जानने के लिए सावधानीपूर्वक डिज़ाइन किया था, जो न केवल अंतरिक्ष यात्रियों के लिए, बल्कि हमारे समूचे देश के किसानों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और छात्रों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
अंतरिक्ष में मेथी और मूंग के बीजों के अंकुरित होने के बारे में विचार कीजिए। यह सुनने में सरल, लगभग काव्यात्मक प्रतीत होता है। लेकिन इसके निहितार्थ गहरे हैं। अंतरिक्ष यान के सीमित क्षेत्र में, जहाँ पोषण का प्रत्ये्क ग्राम मायने रखता है, वहाँ यह समझना कि माइक्रोग्रैविटीमें भारतीय फसलें कैसे व्यवहार करती हैं, लंबी अवधि के मिशनों के लिए चालक दल के आहार को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पृथ्वी पर, विशेष रूप से मृदा क्षरण और जल की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में, ऊर्ध्वाधर खेती और हाइड्रोपोनिक्स में नवाचारों को प्रेरित कर सकता है।
इसके अलावा भारतीय टार्डिग्रेड्स का अध्ययन—इन सूक्ष्म जीवों को इनकी मजबूती के लिए जाना जाता है। सुप्तावस्था से जागे इन सूक्ष्म जीवों का अंतरिक्ष में जीवित रहने, प्रजनन और जेनेटिक एक्सरप्रेशन की दृष्टि से अवलोकन गया। उनका व्यवहार जैविक सहनशक्ति के रहस्यों को उजागर कर सकता है, जो टीके के विकास से लेकर जलवायु-प्रतिरोधी कृषि तक, हर चीज़ में सहायक हो सकता है।
शुक्ला ने मायोजेनेसिस प्रयोग भी किया। इस प्रयोग में इस बात की पड़ताल की गई कि मानव मांसपेशी कोशिकाएँ अंतरिक्ष की परिस्थितियों और पोषक तत्वों के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देती हैं। ये निष्कर्ष मांसपेशीय क्षय के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं, जिससे न केवल अंतरिक्ष यात्रियों को, बल्कि वृद्ध रोगियों और आघात या ट्रामा से उबर रहे लोगों को भी लाभ होगा।

अन्य जारी प्रयोगों में सायनोबैक्टीरिया की वृद्धि—ये ऐसे जीव हैं, जो संभवत: किसी दिन अंतरिक्ष में जीवन-रक्षक प्रणालियों की सहायता कर सकते हैं—तथा चावल, लोबिया, तिल, बैंगन और टमाटर जैसे भारतीय फसलों के बीजों का माइक्रोग्रैविटीके संपर्क में आना शामिल है।इन बीजों को पीढ़ी दर पीढ़ी उगाया जाएगा ताकि वंशानुगत परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सके, जिससे संभावित रूप से चरम वातावरण के अनुकूल नई फसल किस्में विकसित हो सकें।
यहाँ तक कि मानव-मशीन संपर्क को भी परखा गया। शुक्ला ने यह समझने के लिए वेब-आधारित आकलन किया कि इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले के साथ बातचीत करने की हमारी क्षमता को माइक्रोग्रैविटी किस प्रकार प्रभावित करती है – जो भविष्य के अंतरिक्ष स्टेशनों और अंतरिक्ष यान के लिए सहज ज्ञान युक्त इंटरफेस डिजाइन करने के लिए एक महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि है।
ये कोई अमूर्त प्रयास नहीं हैं। ये समाज के लिए विज्ञान के भारतीय लोकाचार में गहराई से निहित हैं। एक्सिओम-4 का हर प्रयोग पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करने की क्षमता रखता है—चाहे वह ओडिशा का कोई जनजातीय किसान हो, शिलांग का कोई स्कूली बच्चा हो, या लद्दाख का कोई फ्रंटलाइन डॉक्टर हो।
इस मिशन ने वैश्विक अंतरिक्ष कूटनीति में भारत के बढ़ते कद को भी दर्शाया। सुरक्षा प्रोटोकॉल पर हमारे द्वारा ज़ोर दिए जाने ने स्पेसएक्स को एक संभावित विनाशकारी खामी की पहचान करने और उसे ठीक करने में मदद की। नासा, ईएसए और एक्सिओम स्पेस के साथ हमारा सहयोग समान साझेदारी के एक नए युग को दर्शाता है, जहाँ भारत केवल भाग ही नहीं ले रहा है, बल्कि नेतृत्व भी कर रहा है।
पूरे मिशन के दौरान, इसरो के फ़्लाइट सर्जनों ने शुक्ला के स्वास्थ्य पर नज़र रखते हुए उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत का ध्यान रखा। वे पूरे जोश में रहे और लखनऊ से लेकर त्रिवेंद्रम, बैंगलोर से लेकर शिलांग तक, पूरे भारत के छात्रों से बातचीत करते रहे और युवा मन में विज्ञान और अंतरिक्ष की संभावनाओं के प्रति उत्साह जगाते रहे।
शुक्ला अब लौट आए हैं, और वह अपने साथ प्रचुर मात्रा में डेटा, नमूने लाए हैं और उनके द्वारा लाई गई अंतर्दृष्टि भारत के आगामी गगनयान मिशन और भारत अंतरिक्ष स्टेशन को शक्ति प्रदान करेगी।
यह सिर्फ़ एक अंतरिक्ष यात्री की बात नहीं है। यह एक राष्ट्र के उत्थान की बात है। यह अंतरिक्ष विज्ञान को जनसेवा में बदलने की बात है। यह माइक्रोग्रैविटीअनुसंधान के लाभ भारत के कोने- कोने तक —दूरदराज के गाँवों में सैटेलाइट इंटरनेट से लेकर शहरी अस्पतालों में पुनर्योजी चिकित्सा तक पहुँचाना सुनिश्चित करने की बात है ।
हमारे प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के शब्दों में, गगनयान का आशय है किसी भारतीय को भारतीय साधनों के द्वारा अंतरिक्ष में पहुँचाना। एक्सिओम-4 एक पूर्वाभ्यास है, अवधारणा का प्रमाण है, आकांक्षा और उपलब्धि के बीच का सेतु है।
और जब हम तारों को देखते हैं, तो हम उन्हेंभ सिर्फ़ अचरज भरी निगाहों से ही नहीं निहारते, बल्कि इरादे से देखते हैं। क्योंकि भारत के लिए आकाश कोई सीमा नहीं, बल्कि प्रयोगशाला है।

डॉ. जितेन्द्र सिंह, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); पृथ्वी विज्ञान और प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री

Share.

Comments are closed.

chhattisgarhrajya.com

ADDRESS : GAYTRI NAGAR, NEAR ASHIRWAD HOSPITAL, DANGANIYA, RAIPUR (CG)
 
MOBILE : +91-9826237000
EMAIL : info@chhattisgarhrajya.com
December 2025
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031  
Exit mobile version