Friday, December 12

 प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि पर रखा जाने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है. हिंदू मान्यता के अनुसार दिन और रात्रि के मिलन की बेला को प्रदोष काल कहा जाता है,​ जिसमें देवों के देव महादेव अत्यधिक प्रसन्न रहते हैं और अपने भक्तों द्वारा की जाने वाली पूजा एवं व्रत से प्रसन्न होकर उनकी कामनाओं को पूरा करते हैं.

प्रदोष व्रत की सही तारीख और शिव पूजा का शुभ मुहूर्त 

पंचांग के अनुसार साल का आखिरी प्रदोष व्रत 17 दिसंबर 2025, बुधवार को रखा जाएगा. चूंकि यह प्रदोष व्रत बुधवार के दिन पड़ रहा है, इसलिए इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाएगा. पंचांग के अनुसार पौष मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 16 दिसंबर 2025 की रात को 11:57 बजे शुरू होकर 18 दिसंबर 2025 को पूर्वाह्न 02:32 बजे पर खत्म होगी. ऐसे में महादेव से साल का आखिरी प्रदोष व्रत 17 दिसंबर 2025 को ही रखा जाएगा और इस दिन प्रदोष काल की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 05:27 से रात्रि 08:11 बजे तक रहेगा.

बुध प्रदोष व्रत की पूजा विधि 

सनातन परंपरा में प्रदोष व्रत वाले दिन शाम के समय प्रदोषकाल में किया जाने वाला शिव पूजन अत्यंत ही शुभ और फलप्रद माना गया है. ऐसे में प्रदोष व्रत वाले दिन साधक को सुबह स्नान-ध्यान करने के बाद विधि-विधान से शिव परिवार की पूजा करने के बाद एक बार फिर शाम के समय प्रदोष काल में दोबार से पूजन करना चाहिए. प्रदोष काल के समय तन और मन से पवित्र होने के बाद भगवान शिव की पुष्प, रोली, चंदन, अक्षत, दूध, दही, शहद, पंचामृत, बेलपत्र, धतूरा और सबसे महत्वपूर्ण गंगाजल अपित करते हुए पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करनी चाहिए. इसके बाद भगवान शिव की महिमा का गान करने वाली प्रदोष व्रत की कथा को कहना या फिर सुनना चाहिए. पूजा के अंत भगवान शिव की आरती करें और सभी को प्रसाद बांटकर स्वयं भी ग्रहण करें. प्रदोष व्रत के दिन व्यक्ति को फलहार रहते हुए शाम के समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए. 

प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्व 

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा ​बरसाने वाला माना गया है. मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करने पर शिव शीघ्र ही प्रसन्न होकर साधक का कल्याण करते हैं. प्रदोष व्रत के पुण्य प्रभाव से साधक के सभी कष्ट एवं दोष दूर हो जाता है और उसे अनंत सुखों की प्राप्ति होती है. हिंदू मान्यता के अनुसार इसी पावन व्रत को करने पर चंद्र देवता का क्षय रोग दूर हो गया था. 

(यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है.)

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