Friday, December 12

नई दिल्ली। इंसानों के शरीर में एक ऐसा टूल किट होता है जिसकी वजह वो सांपों की तरह जहर पैदा कर सकते हैं। यह खुलासा जापान के वैज्ञानिकों ने किया है। इनके अनुसार इंसान ही नहीं कई और स्तनधारी जीव यानी मैमल्स जहर पैदा कर सकते हैं। बस उनके शरीर का वो हिस्सा जरूरत के हिसाब से विकसित होता है यानी इस जीव को जहर की जरूरत है या नहीं। जापान के वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान किसी भी समय दुनिया के सबसे जहरीले सांप रैटल स्नेक और सबसे जहरीले स्तनधारी डकबिल यानी प्लैटीपस सें प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। उनका मानना है कि ये इंसानों की फ्लैक्सिबल जीन्स की वजह से हुआ है। ये जीन्स सलाइवरी ग्लैंड्स यानी लार ग्रंथियों को जहरीले और गैर-जहरीले जीवों के अनुसार विकसित करता है। जापान के ओकिनावा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में इस स्टडी के सह-लेखक और रिसर्चर अग्नीश बरूआ ने कहा कि एनिमल किंगडम में जीन्स के प्रभाव की वजह से लार ग्रंथियां 100 से ज्यादा बार विकसित हुई हैं या फिर जरूरत के हिसाब से बदली हैं। अग्नीश बरुआ कहते हैं कि इंसान भी उसी स्तर का जहर पैदा कर सकते हैं, बस जीन्स की वजह से उनकी लार ग्रंथियां उस तरह से विकसित हो जाएं। जुबानी जहर जंतु साम्राज्य में बेहद सामान्य बात है। ये अलग-अलग जीवों जैसे मकड़ी, सांप, घोंघे आदि में जरूरत के हिसाब से विकसित होते हैं। अग्नीश कहते हैं कि स्लो लोरिस प्राइमेट्स यानी बंदरों की श्रेणी का अकेला जीव है जिसके मुंह में जहर की ग्रंथियां होती हैं। जीव विज्ञानी ये जानते हैं कि जुबानी जहर लार ग्रंथियों के विकास का नतीजा है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने यह खुलासा किया है कि इसके पीछे मॉलीक्यूलर मैकेनिक्स काम करता है। ऑस्ट्रेलिया की क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के बायोकेमिस्ट और जहर विशेषज्ञ ब्रायन फ्राई कहते हैं कि यह खुलासा बेहद महत्वपूर्ण है। ये एक लैंडमार्क है। नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के जहर शोधकर्ता रोनाल्ड जेनर ने कहा कि जहर में मौजूद विषाक्तता कई जीवों में एक जैसी होती है। जैसे- सेंटीपीड का जहर सांपों की कई प्रजातियों के जहर से मिलता है। अग्नीश बरूआ कहते हैं कि विषाक्तता किसी के भी शरीर में कभी भी विकसित हो सकता है। ये कई जटिल रसायनिक पदार्थों का जटिल मिश्रण होता है। इस स्टडी को करने वाले दूसरे रिसर्चर एलेक्जेंडर मिखेयेव ने कहा कि इंसानों समेत कई जीवों में एक हाउसकीपिंग जीन्स होता है जो विषाक्त पदार्थ शरीर के अंदर बनाता है लेकिन ये जहर नहीं होता। इंसान भी सांपों की तरह जहर पैदा कर सकते हैं इसे प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिकों ने ताइवान हाबू नाम के भूरे रंग के पिट वाइपर की स्टडी की। क्योंकि ये सांप ओकिनावा में आसानी से पाया जाता है। अग्नीश ने बताया कि हमने यह स्टडी की कि कौन सा जीन जहर पैदा करने के लिए जरूरी होता है। यह कितने जीवों में सामान्य तौर पर पाया जाता है। अग्नीश और उनकी टीम को ऐसे कई जीन्स मिले जो जहर पैदा करने में महत्वपूर्ण किरदार निभाते हैं। ये जहर शरीर के अंदर मौजूद विभिन्न ऊतकों में पैदा होता है। इन ऊतकों से निकलने वाले रसायनों को अमीनोट्स कहते हैं। इनमें से कई जीन्स ऐसे होते हैं जो फोल्डिंग प्रोटीन्स बनाते हैं। इन्हीं फोल्डिंग प्रोटीन्स से ही बड़े पैमाने पर विषाक्त रसायन निकलता है। ये रसायन प्रोटीन होते हैं। हैरान की बात ये हैं कि ऐसे कई हाउसकीपिंग जीन्स इंसानों की लार ग्रंथियों में भारी मात्रा में पाए गए हैं। जो काफी मात्रा में स्टिव प्रोटीन पैदा करते हैं। इस प्रोटीन का जेनेटिक निर्माण ये स्पष्ट बताता है कि ऐसे जीन्स दुनिया के कई जीवों में पाए जाते हैं। जो उनके शरीर में जहर बनाते हैं, लेकिन उनके अंदर विषाक्तता नहीं होती। इंसानों की लार ग्रंथियों से निकलने वाले थूक में एक विशेष प्रकार का प्रोटीन निकलता है, जिसे कैलीक्रेन्स कहते हैं। ये ऐसे प्रोटीन्स होते हैं जो अन्य प्रोटीन को पचाने का काम करते हैं। कैलीक्रेन्स बेहद स्थाई प्रोटीन होता है। ये आसानी से म्यूटेट नहीं होता. सांपों और अन्य जहरीले जीवों में यही प्रोटीन म्यूटेट हो जाता है जो अत्यधिक दर्दनाक और घातक जहर बनाने के सिस्टम को विकसित करता है। ब्रायन फ्राई कहते हैं कि कैलीक्रेन्स दुनिया के सभी जहरीले जीवों के जहर में किसी न किसी रूप में मिलता है। यह एक बेहद सक्रिय एंजाइम होता है। यही प्रोटीन है जो इंसानों में सांप जैसे जहर को पैदा करने की क्षमता रखता है। कोरोना महामारी को लेकर अग्नीश मजाक में कहते हैं कि अगर इंसानों को जिंदा रहना है तो उन्हें जहरीला बनना पड़ेगा. हमें कैलीक्रेन्स के डोजेस बढ़ाने होंगे। हालांकि, इंसानों में ये आसानी से विकसित नहीं होगा। क्योंकि प्रकृति जहर उन जीवों को देती है, जिन्हें अपने शिकार से बचना होता है। या फिर रक्षा के लिए उपयोग करना होता है। जहर किस तरह का होगा ये जीव के रहन-सहन पर निर्भर करता है यानी वो किस तरह से विकसित हुआ है। जैसे रेगिस्तान में मिलने वाले सांपों के जहर अलग-अलग होते हैं, जबकि उनकी प्रजाति एक ही है। कुछ चमगादड़ों में जैसे वैंपायर बैट्स की लार जहरीली होती है। ये शरीर के अंदर खून के थक्के जमने को रोकती है। साथ ही एक ऐसी रसायनिक दवा का काम करती है जो घावों को जल्दी भर देती है। इंसानों ने जहर बनाने की प्रक्रिया शुरु की उत्पत्ति के दौरान ही खो दी थी। क्योंकि उन्हें कभी जहर की जरूरत नहीं पड़ी। वो अपनी रक्षा, इलाज आदि अलग तरह से करते हैं। लेकिन आज भी इंसानों में जहर बनाने का टूल किट मौजूद है।

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