रायपुर । छत्तीसगढ़ में जिस कदर कोरोना संंक्रमण विकराल हो रहा है। रेमडेसिविर इंजेक्शन की मांग तो है ही, वहीं टोसीलिजुमेब इंजेक्शन की भी मांग लगातार बढ़ रही है। प्रदेश की राजधानी के थोक दवा बाजार में इंजेक्शन की खेप पहुंच ही नहीं रही है। वहीं इस इंजेक्शन की कमीं से प्रदेश में कोरोना के गंभीर मरीजों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है।
सूत्रों का कहना है कि इंजेक्शन की वाइल 24 घंटे के भीतर गंतव्य तक पहुंचानी होती है। इसे कंपनी के डीपो से लेकर मरीज के शरीर में प्रवेश करने तक कोल्ड चैन मेन्टेन करना पड़ता है। यदि यह इंजेक्शन कंपनी के डीपो से निकलकर 24 घंटे के भीतर मरीज के शरीर में नहीं पहुंची तो डिस्पोज हो जाती है यानि कोल्ड चैन मेन्टेन नहीं हो पाने पर यह खराब हो जाती है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि इस इंजेक्शन की एक वाइल 45 हजार से लेकर 50 हजार रुपए में बाजार में उपलब्ध होती है।
बताया तो यह भी जा रहा है कि इस इंजेक्शन का निर्माण पूरे देश में एक ही फार्मासूटिकल कंपनी करती है, जिसका नाम सिपला है। बता दें कि प्रदेश में कम पडऩे वाली रेमडेसिविर इंजेक्शन का निर्माण भी सिपला ही करती है। रेमडेसिविर की कमीं को देखते हुए प्रदेश के दो अफसर राज्य सरकार ने मुम्बई और हैदराबाद में तैनात कर दिए हैं, लेकिन इस इंजेक्शन के लिए सरकार की तरफ से हाल में कोई खास इंतजाम देखने को नहीं मिल रहा है। वहीं प्रदेश के बड़े से बड़े अस्पताल में इस इंजेक्शन की अनुपलब्धता के चलते कई मरीजों की जान तक जा चुकी है।
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में यह इंजेक्शन दो अस्पतालों के पास है, लेकिन ये जरूरतमंदों को उपलब्ध क्यों नहीं करवा रहे हैं, यह समझ से परे है। वहीं इस इंजेक्शन की निगरानी और कालाबाजार रोकने सरकार की कोई खास भूमिका भी अब तक नजर नहीं आ रही है।
रेमडेसिविर के बाद अब इस इंजेक्शन की किल्लत, दर-दर भटक रहे परिजन
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