Friday, July 11

कोलकाता। बेटे और बेटियों में कोई अंतर नहीं होता। ये बातें अमूमन कही तो जाती हैं पर समाज में इसके उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। हालांकि तमाम रिवाजों की बेड़ियों को तोड़ते हुए पश्चिम बंगाल में एक शख्स ने अपनी बेटी का उपनयन संस्कार कर उदाहरण पेश कर दिया है। बेटी का नाम दिभिजा है जबकि पिता विवेकानंद रॉय हैं। उन्होंने अपनी पत्नी देवलीना के साथ मिलकर वैदिक रीति-रिवाज से बेटी का उपनयन संस्कार किया है।
उत्तर 24 परगना के कमरहाटी में रहने वाले विवेकानन्द पेशे से ज्योतिष (सांख्यिकी) के प्रोफेसर हैं। वह 2003 से विदेश में रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी दो बेटियां दिभिजा और दिविना हैं। अपनी बेटी के जन्म के बाद उन्होंने वेद-उपनिषद काल की प्रथाओं को वापस लाने का फैसला किया। इसी तरह उन्होंने कुछ साल पहले कुलपुरोहित से बातचीत शुरू की थी लेकिन परिवार के पुजारी ने विभिन्न तर्कों के बाद बेटी के उपनयन संस्कार से इनकार कर दिया था। हालांकि विवेकानंद ने वैदिक रीति में बेटी के उपनयन संस्कार की परंपरा को वापस लाने की ठान ली थी और गुरुवार को इसे पूरा कर दिया। उन्होंने आर्य समाज के पंडित के माध्यम से अपनी बेटी का उपनयन संस्कार संपन्न कराया है।
विवेकानन्द ने कहा, “वैदिक काल में लड़कियों के उपनयन संस्कार की प्रथा थी। अब केवल लड़कों का उपनयन संस्कार किया जाता है, लेकिन वैदिक काल में लड़के और लड़कियों का कोई विभाजन नहीं था। वैदिक काल में महिला ऋषि भी होती थीं। गार्गी, लोपामुद्रा, मैत्रेयी इसके उदाहरण है। मैंने उसी परंपरा को अपनाया है।”बता दें कि बेटी का नाम दिभिजा है जिसका मतलब होता है दोबारा जन्म। सनातन परंपरा में गुरु दीक्षा और आत्मज्ञान के बाद द्विज की संज्ञा दी जाती है। संयोग से बेटी का बचपन से ही दिया गया नाम उपनयन संस्कार के परंपरा को साबित करती है। यह संस्कार ब्रह्म ज्ञान से जुड़ा हुआ है और इस ज्ञान के बाद माना जाता है कि हर शख्स का दूसरा जन्म होता है।
WhatsAppFacebookTelegramGmailShare
Share.

Comments are closed.

chhattisgarhrajya.com

ADDRESS : GAYTRI NAGAR, NEAR ASHIRWAD HOSPITAL, DANGANIYA, RAIPUR (CG)
 
MOBILE : +91-9826237000
EMAIL : info@chhattisgarhrajya.com
July 2025
M T W T F S S
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
28293031  
Exit mobile version