Monday, December 8

रायपुर। राज्य सहकारिता विभाग में गंभीर अनियमितता का मामला सामने आया है। उच्च न्यायालय ने विभागीय आदेश की अवहेलना और कार्रवाई में जानबूझकर देरी के लिए पांच IAS अफसरों को अवमानना नोटिस जारी किया है। मामले में सहकारिता विभाग के तत्कालीन संयुक्त पंजीयक सुनील तिवारी पर एक जीवित पत्नी के रहते हुए द्वि-विवाह करने का आरोप है।

इस मामले में न्यायालय के आदेश के बावजूद समय पर जांच और कार्रवाई नहीं करने पर हिमशिखर गुप्ता, सीआर प्रसन्ना, रमेश शर्मा, दीपक सोनी, और कुलदीप शर्मा जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को जवाब देने के लिए कहा गया है।

क्या है मामला?
शिकायतकर्ता विनय शुक्ला ने 25 अक्टूबर 2020 को शिकायत दर्ज कराई थी कि तत्कालीन संयुक्त पंजीयक सुनील तिवारी ने सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 22 का उल्लंघन कर एक जीवित पत्नी के रहते दूसरा विवाह किया और इससे संबंधित जानकारी को छिपाया।

आरोप:
द्वि-विवाह करना।
शासन से अनुमति लिए बिना दूसरा विवाह और पुत्र उत्पन्न करना।
भारतीय दंड संहिता की धारा 166, 420, और 34 का उल्लंघन।

आरोप है कि अफसरों ने जांच शुरू करने की बजाय आरोपी का बचाव किया।

शिकायत पर कार्रवाई में देरी:
शिकायत के बावजूद विभागीय अफसरों ने समय पर निलंबन या जांच की प्रक्रिया शुरू नहीं की।
उच्च न्यायालय ने याचिका संख्या W.P.C. No. 3097/2021 पर सुनवाई करते हुए 29 सितंबर 2023 को छह माह के भीतर जांच का आदेश दिया।

अधिवक्ता की टिप्पणी और न्यायालय की प्रतिक्रिया
मामले में शिकायतकर्ता के अधिवक्ता संतोष पांडे ने कहा, “छत्तीसगढ़ में नौकरशाही की मनमानी और कानून की अनदेखी का यह उदाहरण है। सरकार को इन अफसरों पर कार्रवाई करनी चाहिए।”

8 अक्टूबर को न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने सभी पांच IAS अधिकारियों को नोटिस जारी कर यह स्पष्टीकरण मांगा है कि क्यों न उनके खिलाफ न्यायालयीन अवमानना अधिनियम 1971 के तहत कार्रवाई शुरू की जाए।

न्यायालय के आदेश की अवहेलना
अफसरों पर आरोप है कि उन्होंने सुनील तिवारी को संभावित विभागीय कार्रवाई से बचाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया। उच्च न्यायालय ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि यह मामला न केवल न्यायालय की अवमानना है बल्कि लोकसेवक पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने का भी है।

सरकार की भूमिका पर सवाल
मामले ने राज्य सरकार की सुशासन व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए हैं। सरकार की निष्क्रियता और नौकरशाही की मनमानी का यह मामला सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर दोषियों पर कार्रवाई कब होगी? सरकार का अगला कदम इस विवाद में महत्वपूर्ण होगा। अफसरों की जवाबदेही और कानून के प्रति उनका रवैया सुशासन के दावों की सच्चाई को उजागर करेगा।

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