Friday, July 4

रायपुर । इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर और ‘‘अक्षय कृषि परिवार’’ संस्था द्वारा आज यहां प्राकृतिक एवं जैविक कृषि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कृषि सम्मेलन में छत्तीसगढ़ के सभी जिलों से आए किसानों को प्राकृतिक एवं जैविक प्रणाली के संबंध में विशेषज्ञों द्वारा विस्तृत जानकारी दी गई। सम्मेलन के दौरान किसानों को छत्तीसगढ़ में तिलहन फसलों के उत्पादन के बारे में कृषि वैज्ञानिकों एवं विषय विशेषज्ञों द्वारा तकनीकी मार्गदर्शन दिया गया। कृषि सम्मेलन के मुख्य अतिथि प्रख्यात विचारक एवं समाज सेवी श्री भागैय्या थे और अध्यक्षता कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री मनोज भाई सोलंकी, अध्यक्ष अक्षय कृषि परिवार, श्री गजानन डोंगे, उपाध्यक्ष अक्षय कृषि परिवार एवं छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं समाजसेवी डॉ. पूर्णेन्दु सक्सेना उपस्थित थे।


सम्मेलन के मुख्य अतिथि श्री भागैय्या ने प्राकृतिक एवं जैविक कृषि की अवधारणा, सिद्धान्त, प्रविधि तथा इसके लाभकारी पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए किसानों से प्राकृतिक एवं जैविक कृषि प्रणाली को अपनाने का आव्हान किया। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक एवं जैविक कृषि से खेतों में उपलब्ध संसाधनों का सदुपयोग होता है तथा भूमि के स्वास्थ्य एवं उर्वरता में वृद्धि होती है। उन्होंने कहा कि हमारे देश की प्राचीन परंपराओं में ऋषि कृषि की संकल्पना निहित है, जिसमें गौ आधारित प्राकृतिक एवं जैविक कृषि पद्धतियों का प्रयोग किया जाता था। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक एवं जैविक कृषि धरती माता को स्वस्थ रखने के साथ ही फसलों की गुणवत्ता में वृद्धि करती है तथा मानव, पशु-पक्षी, कीट-पतंगों, सूक्षम जीवों तथा पर्यावरण के स्वास्थ्य की भी रक्षा करती है। उन्होंने भूमि सुपोषण पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता जताई। श्री भागैय्या ने कहा कि अक्षय कृषि परिवार देश के विभिन्न राज्यों में प्राकृतिक एवं जैविक खेती को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है तथा इनके प्रयासों से देश में लाखों किसानो ने प्राकृतिक एवं जैविक कृषि को अपनाया है। उन्होंने उपस्थित कृषकों को रसायन मुक्त प्राकृतिक और गौ आधारित खेती करने का संकल्प दिलाया। उन्होंने किसानों से अनुरोध किया कि वे अपने खेतों पर अगली फसल के लिए जैविक पद्धति से बीज, खाद, कीट नाशक तथा अन्य सामग्री तैयार कर स्वावलंबी कृषि ओर बढ़ें।
अक्षय कृषि परिवार के अध्यक्ष श्री मनोज भाई सोलंकी ने सम्मेलन में किसानों को जैविक एवं प्राकृतिक कृषि की विधि, उपादानों तथा महत्व के बारे में जानकारी देते हुए खेतों पर ही जैविक खाद, कीट नाशक आदि के निर्माण के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अक्षय कृषि परिवार द्वारा देश भर मे जैविक एवं प्रकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है और उन्हें जैविक कृषि अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। श्री सोलंकी ने कहा कि जैविक कृषि फसल एवं पर्यावरण हितैषी होने के साथ-साथ किसानों की आर्थिक समृद्धि के लिए भी लाभकारी है। उन्होंने किसानों से जैविक एवं प्राकृतिक खेती अपनाने के साथ ही फसलों की कटाई उपरान्त प्रसंस्करण एवं विपणन प्रक्रिया को सुदृढ़ करने की सलाह दी। अक्षय कृषि परिवार के उपाध्यक्ष श्री गजानन डोंगे ने कहा कि भारत की प्राचीन परंपराएं, मान्यताएं एवं ज्ञान काफी समृद्ध है और उसमें संपूर्ण विश्व को एक इकाई मानते हुए मानव के साथ-साथ पशु-पक्षी, जीव-जनतुओं तथा पर्यावरण के सभी अंगों के संरक्षण एवं कल्याण की भावना निहित है।

उन्होंने कहा कि हमारे वेद पुराणों तथा धार्मिक ग्रंथों में गौ आधारित जैविक एवं प्राकृतिक कृषि पद्धतियों का उल्लेख किया गया है जो किसानों के साथ ही खेतों एवं पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है। यह दुर्भाग्य है कि हमने गुलामी के दौर में पाश्चात्य ज्ञान को महत्व देते हुए अपने प्राचीन और परंपरागत ज्ञान को भुला दिया जिसकी वजह से आज कृषि, पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। श्री डोंगे ने कहा कि विदेशी विचारकों का चिंतन खंडित चिन्तन है और समस्या के विशेष पहलुओं पर ही विचार करता है जबकि हमारा चिन्तन संपूर्ण चिन्तन है जो पूरे विश्व को एक इकाई मानकर धरती, प्रकृति एवं पर्यावरण की रक्षा करने में सक्षम है। श्री डोंगे ने कहा कि हरित क्रान्ति भारत के लिए जरूरी थी लेकिन उसके कारण हमारे कई महत्वपूर्ण परंपरागत बीज कृषि प्रणाली से बाहर हो गये। इसी प्रकार श्वेत क्रान्ति ने भी हमारी बहुमूल्य देशी गौ प्रजातियों को समाप्त कर दिया। कुछ सौ साल पहले भारत का हर गांव कृषि के मामले में स्वावलंबी था जहां अनाज से लेकर दलहन, तिहलन तथा फल सब्जियों का पर्याप्त उत्पादन होता था लेकिन बाजार आधारित कृषि ने गांवां को विपन्न बना दिया है। आज हमारा देश हर वर्ष केवल खाद्य तेलो के आयात पर 75 हजार करोड़ रूपये व्यय कर रहा है। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता हमारी प्राचीन परंपराओं और मान्यताओं को पुनर्जीवित करने तथा उन पर अमल करने की है। प्राकृतिक एवं जैविक कृषि प्रणाली के द्वारा हम फिर से भारत को सोने के चिड़िया बनाने में समर्थ होंगे। आज पूरा विश्व भी भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है। सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने विश्वविद्यालय के अनुसंधान प्रक्षेत्रों तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा जैविक एवं प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में किये जा रहे कार्यां की जानकारी दी। सम्मेलन को डॉ. पूर्णेन्दु सक्सेना ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं समाजसेवी डॉ. टोपलाल वर्मा भी उपस्थित थे।
एक दिवसीय कृषि सम्मेलन के प्रथम तकनीकी सत्र के दौरान प्राकृतिक एवं जैविक खेती के लाभ, उनमें उपयोग होने वाले पदार्थां की उत्पादन तकनीक एवं उपयोग विधि, जैविक खाद एवं जैव उर्वरकों का उपयोग, जैविक कृषि में कीट नियंत्रण आदि के बारे में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विस्तार से जानकारी दी गई। द्वितीय तकनीकी सत्र में छत्तीसगढ़ में तिलहन फसलों की वर्तमान स्थिति एवं संभावनाएं, प्रमुख तिलहन फसलों की उन्नत उत्पादन तकनीक विशेषकर सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, कुसुम तथा अलसी के उत्पादन तकनीक के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।

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