Saturday, May 17

केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे तलाक के मामले में फैसला सुनाया, जिसने सबको हैरान कर दिया। एक महिला ने अपने पति पर आरोप लगाया कि वह उसके साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाता था, न ही बच्चे पैदा करने में रुचि रखता था। वह अपना ज्यादातर समय मंदिरों और आश्रमों में बिताता था और पत्नी पर भी आध्यात्मिक जीवन जीने का दबाव डालता था। कोर्ट ने इसे मानसिक क्रूरता मानते हुए महिला को तलाक की मंजूरी दे दी। महिला ने कोर्ट में बताया कि शादी के बाद से ही पति का व्यवहार पूरी तरह बदल गया था। वह न सिर्फ शारीरिक संबंधों से दूर भागता था, बल्कि उसने पत्नी को पढ़ाई छोड़ने के लिए भी मजबूर किया। उसने कोर्ट में कहा, “पति के लिए शादी का मतलब सिर्फ आध्यात्मिक जीवन जीना था, लेकिन मैं एक सामान्य विवाहित जीवन चाहती थी।”

पहले दिया दूसरा मौका, फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
महिला ने 2019 में पहली बार तलाक के लिए याचिका दायर की थी। पति ने सुधरने का वादा किया, तो उसने याचिका वापस ले ली। 2022 में जब हालात जस के तस रहे, तो उसने फिर से तलाक के लिए कोर्ट का रुख किया। जब फैमिली कोर्ट ने महिला की याचिका पर तलाक का आदेश दिया, तो पति ने हाई कोर्ट में अपील की। पति ने कहा कि उसकी आध्यात्मिक जीवनशैली को गलत तरीके से समझा गया। उसका कहना था, “मेरी पत्नी ने खुद अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने तक बच्चा न पैदा करने का फैसला लिया था। मैंने उस पर कोई दबाव नहीं डाला।” लेकिन हाई कोर्ट ने उसकी दलीलों को खारिज कर दिया।

कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस देवन रामचंद्रन और एमबी स्नेलता की बेंच ने इस मामले पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा, “कोई भी जीवनसाथी दूसरे पर अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं को थोपने का हकदार नहीं है।” कोर्ट ने माना कि पति का पत्नी को आध्यात्मिक जीवन अपनाने के लिए मजबूर करना और वैवाहिक जिम्मेदारियों को अनदेखा करना मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है। इसलिए, हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए तलाक को सही ठहराया।

WhatsAppFacebookTelegramGmailShare
Share.

Comments are closed.

chhattisgarhrajya.com

ADDRESS : GAYTRI NAGAR, NEAR ASHIRWAD HOSPITAL, DANGANIYA, RAIPUR (CG)
 
MOBILE : +91-9826237000
EMAIL : info@chhattisgarhrajya.com
May 2025
M T W T F S S
 1234
567891011
12131415161718
19202122232425
262728293031  
Exit mobile version