Thursday, December 11

धमतरी. जीआईएस आधारित जल संरक्षण योजना के सफल संचालन के लिए छत्तीसगढ़ ने उपलब्धि हासिल की है. 21 अप्रैल को सिविल सर्विस डे के अवसर पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में आईएएस नम्रता गांधी को प्रधानमंत्री पुरस्कार 2023 से सम्मानित किया गया। उन्होंने धमतरी में कलेक्टर रहते हुए अपने कार्यकाल के दौरान जिले में पानी की समस्या को ध्यान में रखते हुए जल संरक्षण पर विशेष काम किया था। नम्रता गांधी ने पुरस्कार प्राप्त करने के बाद इसे टीम धमतरी को समर्पित किया है। नम्रता गांधी ने अपने संदेश में कहा कि जल संरक्षण और फसल चक्र परिवर्तन जैसे व्यापक विषयों पर सफलता केवल टीम वर्क से ही संभव है। सभी की भागीदारी से धमतरी में पानी बचाने और इसके प्रति आमजनों को जागरूक करने के लिए जो प्रयास किया गया, यह पुरस्कार उसकी सफलता को स्वयं ही बताता है। नम्रता गांधी ने जिले के सभी अधिकारियों-कर्मचारियों, जनप्रतिनिधियों, स्वयंसेवी संस्थाओ, औद्योगिक संस्थानों के साथ-साथ सभी जिलेवासियों को भी इस पुरस्कार के मिलने पर बधाई और शुभकामनाएं दी है और उन सभी के सकारात्मक सहयोग के लिए आभार भी व्यक्त किया है।
पानी बचाने जल शक्ति मंत्रालय के विशेषज्ञों की ली मदद

उल्लेखनीय है कि धमतरी की पूर्व कलेक्टर नम्रता गांधी के कार्यकाल के दौरान धमतरी जिले में पानी की समस्या को ध्यान में रखते हुए जल संरक्षण पर विशेष काम किए गए। जीआईएस आधारित जल संरक्षण अभियान का संचालन किया गया। इसके तहत पानी बचाने के लिए बनाई जाने वाली सभी संरचनाओं की जीआईएस मैपिंग कराई गई। जिले के सभी गांवों में क्लार्ट एप्प के माध्यम से भूमि की आंतरिक संरचना का परीक्षण कर वहां भूजल स्तर बढ़ाने में उपयोगी जल संरचनाएं बनवाई गईं। पानी बचाने के इस अभियान में जल शक्ति मंत्रालय के विशेषज्ञों की भी मदद ली गई।
सभी बड़े भवनों में अनिवार्य किया रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

जिले के सभी बड़े भवनों, निजी स्कूलों, अस्पतालों, रेस्टोरेंटों में रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और रूफ टॉप स्ट्रक्चर बनाना अनिवार्य किया गया। पानी की समस्या से जूझने वाले गांवों में जरूरी बैठकें कर जल संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक किया गया, उन्हें रैन वाटर हार्वेस्टिंग, रूफटॉप स्ट्रक्चर, बेस्ट वाटर मैनेजमेंट की तकनीकों की जानकारी दी गई। इस अभियान में जनजागरूकता के लिए जिला स्तर पर अधिकारियों, निजी संस्थान संचालकों की कार्यशालाएं आयोजित की गईं। रैलियों, प्रभात फेरियों, दीवार लेखन-नुक्कड़ नाटकों के साथ-साथ आधुनिक प्रचार-प्रसार के तरीकों एनीमेटेड वीडियो-ऑडियो आदि के माध्यम से लोगों में जल संरक्षण की अलख जगाई गई। इस काम में स्वयं सेवी संस्थाओं की भी मदद ली गई।
फसल चक्र परिवर्तन के बारे में गांवों में फैलाई जागरूकता

ग्राम पंचायतों में फसल चक्र परिवर्तन के बारे में जागरूकता फैलाई गई। स्थानीय स्तर पर पेड़ लगाने, पेड़ों पर रक्षासूत्र बांधने, शादी-ब्याह और उत्सवों में बहू-बेटियां को उपहार में पौधे देने जैसे सफल प्रयोग किए गए। इस अभियान की सफलता में तत्कालीन कलेक्टर नम्रता गांधी के नेतृत्व में शहरी और ग्रामीण सभी लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। नगरीय क्षेत्रों के तालाबों की सफाई से लेकर निस्तारी पानी और बारिश के पानी की समुचित निकासी करने, ड्रेनेज सिस्टम विकसित करने के लिए भी योजना बनाई गई। भारतीय जैन संगठना, साथी समूह जैसी कई स्वयं सेवी संस्थाओं ने भी इस काम में सहयोग किया। तालाबों को पुनर्जीवित कर जलधारण क्षमता बढ़ाई गई।
जिले में लगाए गए 11 लाख पौधे

तालाबों से निकली मिट्टी से खेतों की उर्वरा शक्ति में बढ़ोत्तरी हुई। जिले की 225 औद्योगिक इकाईयों ने केन्द्रीय भूजल बोर्ड मानकों के आधार पर बारिश के पानी को बचाने के लिए जल संरचनाओं का निर्माण कराया। राईस मिलां में वाटर फ्लो मीटर लगाए गए। जिले के आदिवासी क्षेत्रों में जल संरक्षण के लिए तालाब और डबरियां बनाई गईं। गांव के पास से गुजरने वाले नालों पर डाईक बनाए गए, ताकि गांव में पानी का जलस्तर बढ़े। जिले में लगभग 11 लाख पौधों का रोपण इस दौरान किया गया।

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