जम्मू-कश्मीर के पहलगाम से लगभग 8-10 किलोमीटर दूर बसी आरू वैली, कश्मीर के पर्यटन का एक अनमोल हिस्सा रही है. इसे पहलगाम का सबसे खूबसूरत स्थान माना जाता है. अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता, बर्फ से ढके पहाड़ों और हरे-भरे घास के मैदानों के लिए प्रसिद्ध, यह ट्रेकर्स का स्वर्ग हमेशा से सुरक्षित रहा है. यहां तक कि कश्मीर के सबसे अशांत समय में भी. इसकी सुरक्षित और शांत गंतव्य के रूप में प्रतिष्ठा ने इसे हमेशा पर्यटकों से भरा रखा, भले ही घाटी का बाकी हिस्सा उथल-पुथल में हो.
लेकिन हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने इस शांत और खूबसूरत घाटी पर गहरा प्रभाव डाला है, जिससे यह सुनसान हो गई है. एक बार जीवंत रही यह घाटी अब खामोश और सुनसान है, जहां खाली पगडंडियां और बंद दुकानें हैं. स्थानीय निवासी, जो कुछ दिन पहले तक पर्यटन से जुड़े कामों में व्यस्त थे, अब क्रिकेट खेलकर या खाली बैठकर समय बिता रहे हैं.
फिरोज अहमद, एक स्थानीय फोटोग्राफर जो पर्यटकों के लिए घाटी की सुंदरता को कैमरे में कैद करता है, 22 अप्रैल के उस दिन को याद करते हैं जब पहलगाम की बैरसन घाटी में आतंकी हमला हुआ. वह बताते हैं, “दोपहर 2:00-2:30 बजे के आसपास खबर फैली और 10-15 मिनट में पूरी घाटी खाली हो गई. 3:00 बजे तक यहां कोई नहीं बचा. इस तेज़ी से हुए पलायन से उस सदमे और डर का अंदाज़ा लगता है जो पर्यटकों में फैल गया.”
लोगों को हो रहा आर्थिक नुकसान
आतंकी हमले का प्रभाव केवल जानमाल के नुकसान और सुरक्षा चिंताओं तक सीमित नहीं है. इसने स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गहरी चोट पहुंचाई है, जो पूरी तरह से पर्यटन पर निर्भर है. आरू वैली के निवासी, चाहे होटल मालिक हों, घोड़ा वाले, दुकानदार हों या साहसिक टूर ऑपरेटर, अपनी आजीविका रातोंरात खत्म होती देख रहे हैं. कई लोगों ने इस पर्यटन सीजन की उम्मीद में भारी निवेश किया था, जिसमें होटल और गेस्टहाउस अगले दो-तीन महीनों के लिए पूरी तरह बुक थे. कुछ ने तो घोड़े, वाहन या फोटोग्राफी उपकरण खरीदने के लिए कर्ज़ भी लिया था, क्योंकि पिछले कुछ सालों की स्थिरता ने उन्हें भविष्य के प्रति आश्वस्त किया था.
फिरोज़ अहमद, जो फोटोग्राफी से प्रतिदिन ₹500-1,500 कमा लेते थे, अब बिना आय के दिन काट रहे हैं. वह कहते हैं, “पिछले पांच-छह दिनों से हम खाली बैठे हैं. कैमरे में बिक्री के लिए तस्वीरें भरी पड़ी हैं.”
घोड़ा वालों और टैक्सी चालकों की कहानी भी ऐसी ही है. एक घोड़ा वाले ने हाल ही में नया घोड़ा खरीदा था, उम्मीद थी कि पर्यटकों की भीड़ से अच्छी कमाई होगी, लेकिन अब वह कर्ज़ के बोझ तले दब गया है. जून में विदेशी ट्रेकर्स के आगमन के लिए बुकिंग रद्द होने से समुदाय हताश है.
तौसीफ अहमद, एक टूर ऑपरेटर जो आरू वैली और नारनाग, तरसार जैसे अन्य गंतव्यों में ट्रेकिंग का आयोजन करते हैं, ने इस सीजन के लिए अधिकतम बुकिंग हासिल की थी. वह कहते हैं, “यह साल शानदार होने वाला था. लेकिन हमले के बाद बुकिंग रद्द हो रही हैं. यह एक बड़ा झटका है. कई लोगों के लिए यह नुकसान केवल आर्थिक नहीं, बल्कि भावनात्मक भी है, क्योंकि उनकी समृद्ध सीजन की उम्मीदें चूर हो गई हैं.”
आरू वैली को मिली थी ट्रैकर्स के स्वर्ग की उपाधि
आरू वैली की कश्मीर के सबसे कठिन समय में भी पर्यटकों को आकर्षित करने की अनूठी क्षमता इसकी सुंदरता और यहां के लोगों के आतिथ्य का प्रमाण है. 2008, 2010 और 2016 में, जब हिंसा और अशांति ने घाटी के अधिकांश हिस्सों को प्रभावित किया, आरू वैली में देशी और विदेशी पर्यटक, खासकर साहसिक सैलानी आते रहे. कोविड-19 महामारी के दौरान भी, जब कश्मीर में पर्यटन ठप हो गया था, आरू में ट्रेकर्स की थोड़ी-बहुत आवाजाही बनी रही, जिसने इसे ट्रैकर्स का स्वर्ग की उपाधि दिलाई.
कश्मीरी लोग लंबे समय से क्षेत्र के पर्यटन उद्योग की रीढ़ रहे हैं, जो गाइड, मेजबान और रक्षक की भूमिका निभाते हैं. तौसीफ अहमद इस रिश्ते को रेखांकित करते हैं और कहते हैं, “पर्यटक हम पर भरोसा करते हैं. मेरे साथ ट्रेकिंग करने वाले कई लोग तीन अलग-अलग अभियानों के लिए लौटे, क्योंकि उन्हें कश्मीरियों की सुरक्षा और गर्मजोशी पर विश्वास है.”
स्थानीय गाइडों की कहानियां, जैसे कि तरसार मार्सर में ट्रैकिंग दुर्घटना या राफ्टिंग हादसे में पर्यटकों को बचाने के लिए अपनी जान देने वाले, समुदाय की गहरी जिम्मेदारी की भावना को दर्शाती हैं.
खाली पड़ी हैं घाटी की सड़कें
आज, आरू वैली एक भूतिया शहर की तरह दिखती है. आजतक की टीम ने घाटी की ओर जाने वाली सड़क पर कोई पर्यटक वाहन नहीं देखा, केवल कुछ आवारा घोड़े रास्तों पर चरते दिखे. जीवंत बाज़ार, जहां कभी दुकानदारों की बातचीत और ढाबों पर चाय की खनक गूंजती थी, अब बंद हैं. बर्फ से ढके चमकते पहाड़ों और सूर्यास्त के सुनहरे प्रकाश का शानदार दृश्य इस सर्वव्यापी खामोशी से तीखा विरोधाभास प्रस्तुत करता है.