बिलासपुर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में उस समय हड़कंप मच गया जब दो शिक्षिकाएं ट्रांसफर आदेश लेकर जॉइनिंग के लिए पहुंचीं और दस्तावेजों की जांच में उनका आदेश फर्जी निकला। मामले में तत्काल कार्रवाई करते हुए जिला शिक्षा अधिकारी ने जॉइनिंग देने से इनकार कर दिया और रायपुर के राखी थाना में एफआईआर दर्ज करवाई गई। वहीं, हाई कोर्ट ने शिक्षिकाओं को पुराने कार्यस्थल पर वापस जॉइन करने के लिए 10 दिनों का समय दिया है।
क्या है मामला?
जांजगीर-चांपा में पदस्थ शिक्षिका ज्योति दुबे और सूरजपुर की श्रुति साहू कुछ दिन पहले बिलासपुर डीईओ कार्यालय में स्थानांतरण आदेश के साथ पहुंचीं। आदेश शनिवार को जारी बताया गया था, जिससे डीईओ अनिल तिवारी को शक हुआ। मंत्रालय में सत्यापन के बाद स्पष्ट हुआ कि आदेश फर्जी है।
जांच में सामने आया कि आदेश पर स्कूल शिक्षा विभाग के अवर सचिव आर.पी. वर्मा के फर्जी हस्ताक्षर थे और आदेश हूबहू सरकारी प्रारूप में तैयार किया गया था। आदेश क्रमांक एफ3–27/2025/20 का इस्तेमाल कर बिलासपुर ट्रांसफर का दावा किया गया था।
एफआईआर दर्ज, आदेश निरस्त
फर्जी आदेश का खुलासा होने पर अवर सचिव आरपी वर्मा ने रायपुर के राखी थाने में अज्ञात आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया है। डीईओ बिलासपुर ने दोनों शिक्षिकाओं को रिलीव कर आदेश निरस्त कर दिया।
हाईकोर्ट से राहत, 10 दिन का समय
शिक्षिकाओं ने डीईओ की कार्रवाई को हाईकोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि आदेश फर्जी है और उसी आधार पर निरस्त किया गया है।
शिक्षिकाओं के अधिवक्ता ने पूर्व स्कूल में वापस जॉइनिंग के लिए 10 दिन का समय मांगा, जिसे स्वीकार करते हुए जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की सिंगल बेंच ने उन्हें मोहलत दे दी।
यह मामला छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली और दस्तावेजों की प्रामाणिकता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। साथ ही यह चेतावनी भी है कि फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी सिस्टम को गुमराह करने की कोशिश कानूनी कार्रवाई की जद में आ सकती है। पुलिस अब मामले की गहराई से जांच कर रही है।