Saturday, December 13

 हिंदू धर्म में आश्विन मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है क्योंकि इन्हीं 15 दिनों में पितरों की मुक्ति के लिए विशेष रूप से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किए जाते हैं. सनातन परंपरा में जिन तीन प्रमुख ऋण को चुकाने की बात कही गई है, उसमें से एक पितृ ऋण को चुकाने का यह शुभ अवसर होता है. यही कारण है कि लोग इस पितृपक्ष का पूरे साल इंतजार करते हैं. आज आश्विन मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा का श्राद्ध होगा. आइए विस्तार से जानते हैं कि आखिर पितरों का श्राद्ध कब और कैसे किया जाता है.

कब और कैसे देना चाहिए पितरों को जल

हिंदू मान्यता के अनुसार पितरों को जल देने के लिए प्रतिदिन स्नान-ध्यान के बाद साफ कपड़े पहन कर जल देना चाहिए. पितरों को जल देने से पहले सूर्य देवता को पूर्व दिशा में अक्षत और रोली मिलाकर जल दें. इसके बाद जल में जौ मिलाकर उत्तर दिशा की ओर सप्तऋषियों को जल दें. ऋषियों को जल देते समय जनेउ कंठी में धारण करना चाहिए. इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तिल के साथ अपने पितरों को जल दें.

पितरों को जल आप अंजुलि या फिर तांबे के लोटे से दे सकते हैं. पितरों को जल देने के लिए स्टील या प्लास्टिक के लोटे का प्रयोग न करें. पितरों को जल देते समय जनेउ दाएं कंधे पर कर लें और जल देने के पश्चात दुबारा सीधा कर लें. पितरों के तर्पण या फिर कहें जल देने के लिए सबसे उत्तम मुहुर्त कुतुप काल होता है जो कि सुबह 11 बजकर 53 मिनट से दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा.

पितरों को जल देते समय इस बात का रखें ध्यान

पितरों को दिया जाने वाला जल ऐसी जगह न दें जहां उस पर कोई पैर रखकर आए जाए. इससे बचने के लिए आप पितरों को दिये जाने वाले जल को किसी पात्र में दें और उसके बाद किसी पौधे की जड़ में डाल दें. यदि संभव हो तो पितरों को जल किसी पवित्र नदी, सरोवर, समुद्र आदि में देना चाहिए.

पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने का धार्मिक महत्व

हिंदू मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितर तमाम रूपों में पृथ्वी पर आते हैं और अपने कुल के लोगों द्वारा श्राद्ध, तर्पण आदि के जरिए जल और अन्न कव्य और हव्य के रूप में ग्रहण करते हैं. पितृपक्ष में विधि-विधान से श्राद्ध और तर्पण करने पर पितर प्रसन्न और संतुष्ट होते हैं और अपना आशीर्वाद बरसाते हैं. जिससे जातक को सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है. मान्यता है कि पितरों के संतुष्ट होने पर कुल की वृद्धि होती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है.)

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