रायपुर .छत्तीसगढ़ के बस्तर में ‘देसी बीयर’ के नाम से मशहूर सल्फी के पेड़ तेजी से सूखते जा रहे हैं. यही हाल रहा तो सल्फी का रस बेचने वाले बस्तर के गरीब आदिवासी और तंगहाल हो जाएंगे. सल्फी का पेड़ बस्तर के लिए विशेष महत्व रखता है. इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि जब बेटियों की शादी आम बस्तरियों से की जाती है तो दहेज में सल्फी का पेड़ दिया जाता है . सल्फी के एक पेड़ को एक एकड़ खेत के बराबर माना जाता है.कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, सल्फी का पेड़ ऑक्सीफोरम फिजिरियम नामक फंगस के कारण सूख रहे हैं.आदिवासी अपने आंगन या खेतों की मेड़ पर पेड़ लगाते हैं. सल्फी का पेड़ 40 फीट तक ऊंचा हो सकता है और 9 से 10 साल के बाद सल्फी (रस) देने शुरू करता है. इसका ताजा रस स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है तो बासी होने पर खमीर उठना शुरू हो जाता है और इसके सेवन से नशा देने का काम करता है.सुबह और शाम दो बार सल्फी का रस निकाला जाता है. सल्फी के पेड़ अब संक्रामक रोग के शिकार हो रहे हैं. बस्तर के सल्फी के पेड़ों को विशेष रूप से बचाने के लिए पहले से ही वैज्ञानिक शोध शुरू हो चुके हैं.कुछ समय से बस्तर के सल्फी के पेड़ अचानक सूखते जा रहे हैं. बस्तर में आदिवासी आय के साधन वाले सल्फी के पेड़ों के सूखने से चिंतित हैं. सल्फी के पेड़ सूखने की समस्या की ओर राज्य सरकार का ध्यान गया है. कृषि वैज्ञानिक ऑक्सीफोरम फिजिरियम फंगस का इलाज ढूंढ़ रहे हैं.
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