किसी भी लक्ष्य की साधना के लिए गुरु का होना नितांत अनिवार्य है, क्योंकि हर व्यक्ति के लिए लक्ष्य बनाना तो आसान है, लेकिन उस लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाये यह हमें गुरु ज्ञान से ही प्राप्त होता है। किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले जो आवश्यक है वह है एकाग्रता और हमें मन को एकाग्र करना गुरु ही सीखाते है। दीक्षा के समय गुरु के द्वारा एक मंत्र दिया जाता है जिसे गुरु मंत्र देते है, उसी गुरु मंत्र के जरिये हम अपने मन को एकाग्र करते हुए अपनी मंजिल तक पहुंच सकते है। ऐसे ही आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री अरुण चौबे जी महाराज है जो अपने शिष्यों को मन को कैसे एकाग्र किया जाये इसकी शिक्षा देते है। वैसे भी कहा जाता है कि गुरु के मुख से निकली हर वाणी अनमोल होती है क्योंकि वे ध्यान में इतने गहरे उतर जाते है कि उन्हे आत्मज्ञान की प्राप्ती हो जाती है। गुरु शब्द बहुत बड़ा है एक मानव पूर्ण रूप से उसकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकता हैं। जीवन में किसी लक्ष्य की साधना के लिए गुरु का होना नितांत अनिवार्य हैं। गुरु भक्ति एक साधक को अन्धकार से ज्ञान रुपी प्रकाशमान संसार में ले जाती हैं। समाज के पथ प्रदर्शन एवं प्रगति में गुरुओं का बड़ा महत्व हैं। सच्ची गुरु भक्ति व्यक्ति के सभी उद्देश्यों को पूर्ण करवाती हैं। एक बालक के प्रथम गुरु उनकी माता होती हैं जो बच्चें का लालन पोषण कर उन्हें उठना, बैठना, चलना तथा बोलना सीखाती हैं। वह अपने बालक की समग्र आवश्यकताओं को पूरा कर उसके बचपन को स्वर्णिम बनाती हैं।
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