भगवान भोलेनाथ की मूर्ति या शिवलिंग पर श्रृंगार के लिए तुलसी, केतकी, केवड़ा फूल, मेहंदी, हल्दी, कुमकुम, रोली, सिंदूर, खंडित अक्षत, तिल, नारियल या नारियल पानी से अभिषेक नहीं किया जाता. मान्यता है कि यह सब दूसरे देवताओं के श्रृंगार सामान हैं, जबकि शिवजी का श्रृंगार सिर्फ भस्म से किया जाता है. मगर शिवजी को तुलसी पत्र नहीं चढ़ाए जाने के पीछे अनूठी कहानी है.पौराणिक कथाओं के अनुसार जलंधर नामक असुर की पत्नी वृंदा के अंश से तुलसी जी उत्पन्न हुई थीं. बाद में इन्हें श्रीहरि भगवान विष्णु ने पत्नी के रूप में स्वीकार किया. इस कारण तुलसी जी को शिव पूजा में अर्पित नहीं किया जाता है. इसके अलावा किवदंती है कि जलंधर राक्षस का आतंक हर जगह छाया था, लेकिन उसकी पतिव्रता पत्नी वृंदा के तप के चलते उसे कोई भी मार नहीं सकता था. त्राहि-त्राहि कर रहे लोगों को बचाने के लिए विष्णुजी ने छल रचा और वृंदा के पति का वेष धारण कर उसका धर्म भ्रष्ट कर दिया. इसके बाद भगवान शिव ने जलंधर का वध कर डाला. तब पवित्र तुलसी ने खुद को भोलेनाथ को अपने स्वरूप से वंचित करते हुए श्राप दे दिया कि वह कभी भी उनकी पूजन सामग्री में शामिल नहीं होंगी. मान्यता है कि तभी से शिवजी को कभी तुलसी पत्र अर्पित नहीं किया जाता है. इसी तरह मेहंदी चूंकि माता पर्वती के 16 श्रृंगार का हिस्सा है, इसलिए भोलेनाथ सिर्फ अर्द्धनारेश्वर अवतार में इसे उपयोग करते हैं, बाकी स्वरूपों में भस्म ही उनका श्रृंगार है. इसके अलावा हल्दी विष्णुजी और सौभाग्य से जुड़ी है, इसलिए यह शिवजी को नहीं चढ़ाई जाती है.
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