Tuesday, July 15

लाखों लोग हैं जो कोन से आइसक्रीम खाने के बाद कोन को चबाते हैं। उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में देवरिया स्थित किसानों एक समूह ने बाजरे से ‘कुल्हड़’ (kulhads) बनाया है। इसका इस्तेमाल चाय पीने के लिए और नाश्ते के रूप में खाने के लिए किया जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि ये ‘कुल्हड़’ ऐसे समय में आए हैं, जब 2019 में भारत के प्रस्ताव के बाद संयुक्त राष्ट्र (United Nations – UN) की ओर से साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (International Year of Millets) घोषित किया गया है। प्रयागराज में चल रहे माघ मेले (Magh Mela) में रागी और मक्के (ragi and maize) के मोटे दाने से बने इन पौष्टिक कुल्हड़ों को ‘चाय पियो और कुल्हड़ खाओ’ नाम दिया गया है। समूह के एक सदस्य अंकित राय (Ankit Rai) ने कहा कि इन ‘कुल्हड़ों’ की मांग पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कई गुना बढ़ रही है। अंकित ने आगे बताया कि बाजरे के फायदों को बढ़ावा देने के लिए हमने करीब दो साल पहले बाजरा से बने कुल्हड़ बनाए। हमारे पास एक खास तरह का सांचा है। जिसमें एक बार 24 कप बन सकते हैं। शुरुआती दौर में हमने देवरिया, गोरखपुर, सिद्धार्थ नगर और कुशीनगर समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश के छोटे गांवों में चाय विक्रेताओं के साथ जुड़े। अब, प्रयागराज, वाराणसी, लखनऊ और अन्य जिलों तक इन कुल्हड़ों की मांग बढ़ती जा रही है। इन कुल्हड़ों की कीमत के बारे में बात करते हुए अंकित का कहना है कि ऐसे कुल्हड को बनाने में 5 रुपये खर्च होते हैं। वहीं इसमें चाय भरकर 10 रुपये में बेच सकते हैं। कुल्हड़ इको-फ्रेंडली हैं।अंकित ने आगे बताया कि बाजारे से बने कुल्हड़ में किसी भी तरह का कचरा नहीं पैदा करते हैं और वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारत स्वच्छ मिशन का पालन कर रहे हैं। पुराने समय में बाजरा हमारे भोजन का मुख्य हिस्सा रहा है। यह सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। पर्यावरण के लिए भी काफी अच्छा है।

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