सक्षम कानून से मिलेगा न्याय
अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र सामाजिक बहिष्कार पर आयोजित संगोष्ठी में कहा सामाजिक बहिष्कार के कारण हजारों परिवार अन्याय के शिकार हो रहे हैं .सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ कानून बनने से पीडि़त परिवारों को न्याय मिल सकेगा. छत्तीसगढ़ में निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में सामाजिक बहिष्कार जैसे मानवीय मुद्दे को चुनावी घोषणा-पत्र में शामिल किए जाने की आवश्यकता है, इस हेतु समिति की ओर से सभी राजनेताओं को पत्र लिखा है. डॉ दिनेश मिश्र ने कहा सामाजिक बहिष्कार जैसी सामाजिक कुरीति से प्रदेश में हजारों परिवार प्रभावित हैं तथा गाँवों में हुक्का-पानी बंद होने के कारण अमानवीय व्यवहार से जूझ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ से स्वप्नद्रष्टा डॉ खूबचंद बघेल सहित अनेक प्रमुख व्यक्तियों को भी सामाजिक बहिष्कार प्रभावित होने के मामले भी सामने हैं. और आज भी सामाजिक रीति-रिवाजों की आड़ लेकर सामाजिक बहिष्कार के मनमाने फरमान जारी करने की प्रथा अब बड़ी सामाजिक कुरीति के रूप में सामने आ गई है। उन्होंने जनजागरण अभियान के दौरान विभिन्न स्थानों का दौरा करने के दौरान पाया कि सामाजिक बहिष्कार के हजारों मामले सामने आये हैं जिन्हें किसी न किसी कारणों से समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है। जिन्हें गाँव में दूध, राशन, मजदूर यहाँ तक कि बात करने तक पर जुर्माना करने की घोषणा कर दी गई है। बहिष्कृत व्यक्ति को शादी, मृत्यु, पर्व, त्यौहार, सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सार्वजनिक उपयोग के स्थल जैसे बाजार, तालाब, नदी के उपयोग से वंचित कर दिया जाता है। समिति सामाजिक बहिष्कार की सजाओं के विरोध में तथा उन्हें न्याय दिलाने एवं कानून बनाने के लिए अभियान चला रही है।
डॉ. दिनेश मिश्र ने मानवाधिकार संगठनों द्वारा बैरन बाजार में आयोजित संगोष्ठी में कहा कि सामाजिक बहिष्कार के फरमान से बहिष्कृत व्यक्ति का जीवन कठिन हो जाता है। किसी भी व्यक्ति व उसके परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है तथा किसी का समाज से बहिष्कार करने की सजा मृत्यु दण्ड से भी कठोर सजा है क्योंकि मृत्यु दण्ड में वह व्यक्ति एक बार में अपने जीवन से मुक्त हो जाता है परंतु समाज से बाहर निकाले व्यक्ति व उसके परिवार को घुट-घुट कर जीवन बिताना पड़ता है तथा यही नहीं उसके परिवार व बच्चों को भी प्रतिदिन सामाजिक उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। डॉ. मिश्र ने कहा कि उन्हें जानकारी मिली है कि कुछ समाजों में उनके तथाकथित ठेकेदारों ने सामाजिक बहिष्कार को खत्म करने के लिए बकायदा रेट लिस्ट तक तय कर दी है जिसमें यदि वह व्यक्ति किसी कार्यक्रम में शामिल होता है रू 15000/-जुर्माना, यदि बीपीएल कार्डधारी है तो 35000/-जुर्माना, यदि उसका परिवार साथ देता है 50000/-जुर्माना, यदि मध्यम परिवार का व्यक्ति है उसे पचास हजार से पचहत्तर हजार रूपये जुर्माना, यदि उच्च परिवार से व्यक्ति है तो उसे एक लाख से डेढ़ लाख रूपये तक जुर्माने का प्रावधान रखा गया है। जो अनुचित और गैर संवैधानिक हैं हमारे संविधान हर व्यक्ति को समान अधिकार प्रदान करता.ऐसे में किसी भी समाज या जातिगत संगठन को यह अधिकार नहीं है कि किसी व्यक्ति का हुक्का पानी बंद करे. डॉ. मिश्र ने कहा उनके पास कुछ पीडि़त लोगों की रसीदें हैं जिनसे लाख रूपये तक जुर्माना वसूला गया है। उनके पास कुछ ऐसे भी मामले आये हैं जिनमें किसी सदस्य की मृत्यु होने पर दाह संस्कार में समाज के लोगों को शामिल करने के लिए दस हजार रूपये तक जुर्माना लिया गया है।जो शर्मनाक व अनुचित है. डॉ. मिश्र कहा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में विभिन्न राजनैतिक पार्टियों को अपने घोषणा-पत्र में सामाजिक बहिष्कार जैसे अहम मुद्दे को शामिल किया जाना चाहिए तथा उसके निराकरण के लिए सक्षम कानून बनाने की घोषणा की जाती है तो हजारों निर्दोष व्यक्तियों को न केवल संबल मिलेगा बल्कि भविष्य में बहिष्कार की प्रताडऩ़ा से बचाया जाना संभव होगा। समिति इस सम्बंध में पीडि़तों से सम्पर्क कर रही है तथा उनकी समस्याओं के निराकरण का प्रयास कर रही है,पर सक्षम कानून बनने से पीडि़तों को शीघ्र न्याय मिलेगा.संगोष्ठी में सामाजिक संगठनों के साथ बहिष्कार से पीडि़त परिवार भी उपस्थित रहे.