देश, प्रदेश सहित जिले में भी गिरते हुए भूजल स्तर को ध्यान में रख जिला प्रशासन द्वारा जल एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक जनजागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इनमें से एक है जल संरक्षण, भूमि की उर्वरता बनाए रखने के लिए फसल चक्र परिवर्तन अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित करना। जिला प्रशासन द्वारा धमतरी जिले के गांव-गांव में जहां जल संरक्षण के लिए जल जगार महोत्सव आयोजित किया गया, वहीं ग्रीष्मकालीन धान के बदले दलहन, तिलहन और नगदी फसल अपनाने हेतु फसल चक्र परिवर्तन शिविर भी आयोजित किए गए। नतीजन जिले के ग्राम परसतराई, लोहरसी, रांवा, गुजरा, गोहाननाला और बगदेही के ग्रामीणों ने ग्राम विकास समिति की बैठक आहूत कर ग्रीष्मकालीन धान के बदले दलहन, तिलहन और नगदी फसल लेने तथा धान को हतोत्साहित करने का निर्णय लिया।
जिले में कृषि एवं संबंधित विभागों द्वारा अब तक 182 गांवों में फसल चक्र परिवर्तन शिविर आयोजित किए गए, वहीं 48 गांव में विशेष शिविर लगाया गया। इसके साथ ही RAWE (ग्रामीण कृषि कार्य के अनुभव) के माध्यम से 5 गांवों में विशेष गतिविधियां आयोजित की गईं। इनमें लगभग 12 हजार चार सौ से अधिक किसान शामिल हुए और ग्रामीणों को जागरूक किया। इसके अलावा कृषि और उद्यानिकी महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने भी गांवों का भ्रमण कर किसानों को दलहन, तिलहन और नगदी फसलों से होने वाले लाभ की जानकारी दी गई। जिले में रबी वर्ष 2024-25 में दलहन, तिलहन की खेती के लिए अब तक 3 हजार 188 क्विंटल 59 किलोग्राम बीज का वितरण किसानों को किया गया। इनमें समिति से एक हजार आठ क्विंटल आठ किलोग्राम, बीजग्राम/प्रदर्शन से एक हजार 874 क्विंटल 51 किलोग्राम और नगद 306 क्विंटल बीज शामिल हैं। जबकि रबी वर्ष 2023-24 में समितियों से 38 क्विंटल 65 किलोग्राम ही दलहन, तिलहन का बीज वितरित किया गया था। इस तरह इस वर्ष रबी फसल के लिए समितियों से दलहन, तिलहन बीज वितरण में इजाफा हुआ है। गौरतलब है कि इस वर्ष जिले की लगभग 25 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फसल चक्र अपनाने का लक्ष्य रखा गया है।
रबी ऋण वितरण वर्ष 2024-25 के तहत जिले के सभी 11 समितियों के माध्यम से दो हजार 602 सदस्यों को कुल 6 करोड़ 72 लाख 8 हजार रूपये का ऋण वितरण किया गया। इनमें 6 करोड़ 60 लाख 5 हजार रूपये नगद और 12 लाख 3 हजार रूपये सामग्री के तौर पर वितरित किया गया। बता दें कि जिला प्रशासन द्वारा किसानों को पानी का सदुपयोग करने की लगातार समझाईश दी जा रही है। ग्रीष्मकाल में पानी की भयावहता को रोकने के लिए इसमें स्थानीय ग्रामीण भी बढ-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।