पिछले दिनों इंडियन आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवाणे ने एक ऐसी शख्सियत को सम्मानित किया है जो न तो आर्मी ऑफिसर है और न ही अपने बारे में कुछ बता सकता है. यह एक बेजुबान है और इस समय सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. हम बात कर रहे हैं एक घोड़े की जिसका नाम रियो है और पिछले दिनों जनरल नरवाणे ने इसे प्रशस्ति पत्र देकर सम्?मानित किया. रियो बाकी घोड़ों से काफी अलग है और सेना का लाडला है. गणतंत्र दिवस की परेड पर रियो ने एक बार फिर राजपथ की परेड पर अपना जलवा बिखेरा है.
घुड़सवार रेजीमेंट का हिस्सा
रियो सेना की 61 कैवलरी यानी घुड़सवार रेजीमेंट का हिस्सा है और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड पर वह 18वीं बार राजपथ पर नजर आया था. सेना प्रमुख ने असाधारण सेवा के लिए रियो की पीठ थपथपाई है. 22 साल के रियो की पीठ पर चमकीली कालीन सजाई गई और गुड़, गाजर खिलाकर उसकी आवभगत की गई. सेना प्रमुख ने रियो को कमेंडेशन कार्ड भी दिया. सेना प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने बताया कि करियप्पा परेड ग्राउंड पर हाई टी के मौके पर आर्मी चीफ ने सेनाओं के प्रति रियो की सेवाओं को पहचान देने के मकसद से देखते उसे सम्मानित किया. रियो के अलावा सपोर्टिंग स्टाफ को भी सम्मानित किया गया है.
4 साल से राजपथ पर रियो का जलवा
रियो अब गणतंत्र दिवस के आयोजनों के लिए कोई अजनबी नहीं है और इस बार उसने 15वीं बार दल के कमांडर को परेड में अपनी पीठ पर बैठाया है. सेना सूत्रों की तरफ से बताया गया कि रियो ने हर साल अपने क्लास को बरकरार रखा है. उसे प्रशस्ति पत्र मिलना निश्चित तौर पर एक गौरवशाली पल है. जनरल नरवाणे ने रियो को रग से सम्मानित करने के बाद उसकी पीठ थपथपाई. रियो हनोवरियन ब्रीड का घोड़ा है. उसका जन्म उत्तर प्रदेश के सहारनपुर स्थित रेमाउंट ट्रेनिंग स्कूल एंड डिपो में हुआ था. रियो की उम्र 4 साल की थी तब से ही वह गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा ले रहा है. कैप्टन दीपांशु शेयोरण ने 72वीं गणतंत्र दिवस के मौके पर परेड में दल के कमांडर के तौर पर रियो की पीठ पर सवारी की थी. कैप्टन दीपांशु को भी इस मौके पर सम्मानित किया गया है.
रियो के नाम है एक रिकॉर्ड
रियो दुनिया का इकलौता घोड़ा है जो कैवलरी रेजीमेंट में है और अभी तक सर्विस में है. कैप्टन दीपांशु को तीसरी बार सम्मानित किया गया है. रियो की डाइट में जौ, भूसी, चना और घास शामिल है. जबकि गाजर और गुड़ उसका पसंदीदा है. सेना की 61 कैवलरी रेजीमेंट का गठन सन् 1953 में हुआ था. यह रेजीमेंट जयपुर में है और गठन होने के बाद से हर वर्ष गणतंत्र दिवस का मुख्य आकर्षण होती है. इस रेजीमेंट को छह शाही घरानों की सेनाओं से मिलाकर तैयार किया गया था जिसमें मैसूर लैंसर्स, जोधपुर लैंसर्स और ग्वालियर लैंसर्स शामिल थी. इस रेजीमेंट ने इजरायल में महत्वपूर्ण हाइफा की लड़ाई में हिस्सा लिया था. रेजीमेंट के हिस्से कई युद्ध सम्मान और प्रशंसा आई है. इसके अलावा पोलो स्पोर्ट्स में रेजीमेंट को 12 बार अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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