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Wednesday, December 10

रायगढ़ । वर्ष 2021 की गर्मी रायगढ़ वन मंडल के लिए खतरनाक साबित हो गई। यहां तीन माह मलतब 90 दिनों में 1216 जगह के जंगलो में आग लग चुकी है और इस आकड़े में महज सौ जगह ही ऐसा है, जो जंगल के बाहर का क्षेत्र है। शेष 1116 जगह वनभूमि है। अगर जनवरी से मार्च माह में दावानल को लेकर रायगढ़ वन मंडल के रेंज स्तर के आकड़ो पर नजर डाली जाए, तो सबसे खराब स्थिति रायगढ़ वन परिक्षेत्र की रही है। जबकि इससे पूर्व ऐसी स्थिति रायगढ़ की देखने को नहीं मिली थी। इसके बाद सारंगढ़, घरघोड़ा, बरमकेला गोमर्डा, तमनार व सारंगढ़ गोमर्डा और अंतिम में खरसिया वन परिक्षेत्र की है। अब स्थिति यह है कि जंगल में आग लगने के लिए कोई खास जगह ही नहीं बची है।
जब जंगल धू धू कर जल रहा था, तो रेंज अफसर से लेकर हरेक अधिकारी आग पर काबू पा लेने की बात कह रहे थे। पर उन अधिकारियों के सभी दावे आज खोखले साबित हो चुके हैं और धन्य है कि इतने बड़े क्षेत्र के जंगल में आग लगने के बाद भी विभाग के उच्च अधिकारी लापरवाही पर कार्रवाई करना उचित नहीं समझे। बल्कि अधिकारी उन लोगों पर इल्जाम डालने में लगे हैं, जो महुआ बिनने के लिए जंगल जाते हैं और किसी पेड़ के नीचे महुआ के लिए आग लगाते हैं, पर अपने उन कर्मचारियों को दोषी नहीं मानते, जो जंगल जाने से ही परहेज करते हैं। जबकि ईमानदारी से अगर बीटगार्ड जंगल का भ्रमण करे, तो दावानल के साथ ही वन अपराध में काफी कमी आएगी।
00 एक नहीं बार बार लगी आग :-
वन मंडल के हर रेंज में एक से दो बार एक ही जगह पर दावानल की घटना घटित हुई। अगर बात सिर्फ रायगढ़ वन परिक्षेत्र की हो, तो रायगढ़ के गजमार पहाड़ी में चार से पांच बार दावानल की घटना घटित हुई। इसके बाद भी रेंजर व डिप्टी रेंजर की नींद नहीं खुली और घर व कार्यालय में बैठे बैठे आग बुझा लेने की बात कहते रहे। यही कारण है कि रायगढ़ वन परिक्षेत्र के गजमार पहाड़ी, लोईंग, खैरपुर, बोइरदादर, रेगड़ा सहित सभी बीट के जंगल में आग लगने की घटना घटित हुई। यही नहीं रेल कॉरीडोर का कूप जलने व लाम्हीदरहा प्लांटेशन जलने का भी मामला पिछले दिनों सूर्खिंयों में था।
00 विभाग की नजर में सूखे खास पत्ते ही जले :-
विभाग के शासकीय दस्तावेजों में दावानल से सिर्फ सूखे घास पत्ते ही जलने का उल्लेख किया गया है। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल विपरित है।
जानकारों की माने तो दावानल से सबसे ज्यादा नुकसान वन व वन्यप्राणियों दोनों को होता है। वन्यप्राणी विचलित होकर इधर उधर भागते हैं और कुत्तें व ग्रामीणों का शिकार बन जाते हैं। वहीं बांस व अन्य इमारती पेड़ भी जल जाते हैं। साथ ही पक्षियों के अंडे सहित कई प्रकार के छोटे कीड़े मकोड़ों की भी इससे जाने चली जाती है।
00 फायर वाचर के बाद भी जल रहे जंगल :-
सभी वन मंडल को शासन द्वारा अग्नि सुरक्षा के नाम पर राशि आबंटित की जाती है। साथ ही हर बीट में फायर वाचर रखने की भी अनुमति मिलती है, पर अग्नि सुरक्षा के नाम पर विभाग के अधिकारी महज खानापूर्ति ही करते हैं। लाईन कटाई दिखावे मात्र का होता है, तो हर बीट में फायर वाचर रखने के बाद भी दो से चार बार उस बीट में आग लग जाना कई प्रकार के सवालों को जन्म दे रहे हैं।

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