Saturday, December 13

डॉक्टर्स को धरती पर भगवान कहा जाता है तो वह यूं ही नहीं कहा जाता है। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों ने एक ऐसे लड़के की सर्जरी कर उसकी आवाज वापस ली दी है जो पिछले 10 साल से ट्रैकियोस्टोमी ट्यूब के सहारे सांस ले रहा था।

13 साल के श्रीकांत को बचपन में सिर पर चोट लग गई थी और उसे लंबे समय तक वेंटिलेटर के सहारे पर रखा गया था। लंबे समय पर वेंटिलेटर पर रहने के चलते श्रीकांत की सांस की नली पतली हो गई थी। इसके बाद डॉक्टरों ने सांस लेने के लिए गले में एक छेद करके सांस की नली में ट्रैकियोस्टोमी ट्यूब डाल दी।

अब एक नई दिक्कत शुरू हुई। लंबे समय तक ट्रैकियोस्टोमी लगी होने के चलते वह सामान्य तरीके से सांस नहीं ले रहा था और इसका असर हुआ कि सांस की नली का इस्तेमाल ही बंद हो गया जिसके उसकी बोलने की क्षमता चली गई। डॉक्टरों ने बताया कि लड़के ने पिछले सात सालों ने न तो कुछ बोला था और न ही सामान्य तरीके से कुछ खाया था।

सर गंगाराम के नाक कान गला विभाग के सीनियर डॉक्टर मनीष मुंजाल ने पीटीआई को बताया कि जब मैने पहली बार रोगी को देखा तो लगा यह सांस की नली और वॉयस बॉक्स की बहुत ही मुश्किल सर्जरी होने जा रही है। मैने अपने 15 वर्षों की प्रैक्टिस में ऐसा कुछ नहीं देखा था। बच्चे को शत-प्रतिशत ब्लॉकेज था।

अब बारी थी बच्चे की सर्जरी की, इसके लिए अस्पताल ने ईएनटी, पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर और एनेस्थीसिया विभागों के डॉक्टरों की एक टीम गठित की। थौरेसिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ सब्यसाची बल ने कहा यह एक जटिल और चुनौतीपूर्ण सर्जरी है और इसमें विफलता का जोखिम बहुत हाई होता है। कभी-कभी तो इसमें मरीज की जान भी जा सकती है।

23 अप्रैल वह दिन था जब श्रीकांत को ऑपरेशन थियेटर के अंदर ले जाया गया। डॉक्टरों की टीम ने कुल मिलकर छह घंटे तक सर्जरी की। डॉ मुंजाल ने बताया लड़के के वॉयस बॉक्स के पास 4 सेमी की सेमी विंडपाइप (सांस की नली) पूरी तरह से खराब हो चुकी थी और इसे ठीक किया जाना असंभव था। इसलिए सर्जरी कर रही टीम की पहली चुनौती सांस की नली के ऊपरी और निचले खंडों को जिता संभव हो सके पास लाकर इस गैप को कम करना था।

इसके साथ ही श्वासनली के निचले हिस्से को सीने में उसके आस-पास के लगाव से मुक्त किया गया और वॉयस बॉक्स की ओर खींचा गया।

अभी इस सर्जरी का सबसे मुश्किल काम बाकी था और वह बुरी तरह से ब्लॉक हो चुकी क्रिकॉइड बोन को ऑपरेट करना था। यह हड्डी गले में वॉयस बॉक्स के नीचे स्थित होती है जो घोड़े के आकार की होती है। इसके दोनों तरफ सूक्ष्म तंत्रिकाएं होती हैं। इसका काम आवाज और श्वासनली की सुरक्षा करना होता है।

इस हड्डी के ऑपरेशन में मुश्किल यह थी कि अगर जरा भी गड़बड़ होती तो बच्चे की आवाज कभी भी वापस नहीं आती। हड्डी के हिस्से को चौड़ा करने के लिए ड्रिल की प्रणाली का उपयोग किया। अंत में श्वासनली के ऊपरी और निचली दोनों किनारों को एक साथ लाया गया और जोड़ा गया।

सर्जरी सफल रही लेकिन अभी भी चुनौतियां खत्म नहीं हुई थीं। सर्जरी के बाद की प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण था। श्रीकांत को सीने की दीवार में श्वासनली में रिसाव का जोखिम था जो घातक हो सकता था। उसे तीन दिनों तक आईसीयू में रखा गया जहां गर्दन के बल रखा गया। यही नहीं उसे कम प्रेशर वाला ऑक्सीजन सपोर्ट दिया गया ताकि कोई दर्दनाक हवा न लीक हो।

डॉक्टरों ने श्रीकांत को छुट्टी दे दी है और उसकी हालत स्थिर है। फिलहाल वह अपनी बोलने की प्रक्रिया को सुधार रहा है।

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