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Wednesday, August 13

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को रामलला जी के जन्म स्थान का जीर्णोद्धार प्रक्रिया प्रारंभ की। दशकों से लंबित भूमि पूजन का समय अभिजीत मुहूर्त में रखा गया। इस आयोजन की पूरे देश व दुनिया में चर्चाए थीं। इसके बीच अभिजीत मुहूर्त की भी विशेष चर्चा रही जिस समय काल में इस कार्य को प्रारंभ किया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने निर्धारित समय दोपहर 12.15 बजे पवित्र अभिजीत मुहूर्त में आधारशिला रखी। इसमें नौ ईंटों का प्रयोग किया गया, जो चार दिशाओं, चार कोणों और स्थान देवता की परिचायक हैं। इससे पूर्व करीब 10 मिनट तक प्रधानमंत्री ने रामजन्मभूमि, स्थान-वास्तु सहित आधारशिला में प्रयुक्त होने वाली ईंटों का पूजन किया। ज्योतिष की दृष्टि से अभिजीत मुहूर्त अपने आप में अत्यंत शुभ माना जाता है। यहां जानिये इस मुहूर्त की क्या विशेषता है।
क्या है अभिजीत मुहूर्त
सामान्य तौर पर साल के 365 दिन में 11.45 से 12.45 तक के समय को हम अभिजीत मुहूर्त कह सकते हैं। प्रत्येक दिन का मध्य-भाग (अनुमान से 12 बजे) अभिजीत मुहूर्त कहलाता है, जो मध्य से पहले और बाद में 2 घड़ी अर्थात 48 मिनट का होता है। दिनमान के आधे समय को स्थानीय सूर्योदय के समय में जोड़ दें तो मध्य काल स्पष्ट हो जाता है।
श्री राम का जन्म हुआ था इसी समय
यह माना जाता है कि भगवान श्री राम का जन्म भी अभिजीत मुहूर्त में ही हुआ था, यही कारण है कि राममंदिर के भूमिपूजन के लिए अभिजीत मुहूर्त को ही तय किया गया। 5 अगस्?त, बुधवार को भगवान श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने यहां आयोजन के दौरान करीब 40 किलोग्राम भार की एक चांदी की ईंट श्रीराम शिला को समर्पित की। इसके अलावा साढ़े तीन फीट गहरी भूमि में चांदी की पांच शिलाएं रखी गईं, जो 5 नक्षत्रों का प्रतीक हैं।
12 मिनट इधर, 12 मिनट उधर का बड़ा महत्व
वैसे तो 30 मुहूर्त होते हैं दिन के पूरे 24 घंटे में परंतु सभी के साथ-साथ अभिजीत मुहूर्त का अपना एक विशेष स्थान है। अभिजीत मुहूर्त सूर्योदय से सूर्यास्त के मध्य पडऩे वाला वह समय होता है जिसमें मध्य से 24 मिनट इधर और 24 मिनट उधर का जो समय काल है वह अभिजीत मुहूर्त कहलाता है पर इसमें मध्य से 12 मिनट इधर और 12 मिनट उधर तो अत्याधिक शुभ कहलाते हैं। इस समय में कोई भी शुभ कार्य करना अच्छा माना जाता है। आपका कोई भी शुभ अभीष्ट कार्य है इस काल के दौरान हो तो उसमें जीत मैं कोई संशय नहीं रहता यह भगवान श्री हरि विष्णु के चक्र के समान शक्तिशाली मुहूर्त है। जब आपको कोई भी कार्य है बहुत शीघ्रता से करना हो और शुभ मुहूर्त बहुत दिनों बाद आ रहे हो तो दिन के इस विशेष काल में आप अपने कार्य को प्रारंभ कर सकते हैं यह अनादि अनंत काल से ऋषियों मुनियों योगियों ज्योतिषाचार्य के द्वारा शोधित अत्याधिक शुभ मुहूर्त माना जाता है।
इस मुहूर्त में होते हैं देव पूजा, शुभ कार्य
अभिजीत मुहूर्त को मूल रूप से देव मुहूर्त या देव योग कहा जाता है। मध्य प्रदेश के सीहोर के ज्योतिष पंडित गणेश शर्मा के अनुसार इस मुहूर्त में देव पूजा, शुभ कार्य संपन्न किए जाते हैं। यह मूहर्त अन्य मूहर्त से अलग है। इसमें किया कार्य सिद्ध होता है इसीलिए इसका नाम अभिजीत मूहर्त रखा गया है। हाल ही में रक्षाबंधन पर बहनों ने इस मुहूर्त में ही भाइयों की कलाई पर राखी बांधी।

पुराने समय में राजा अभिजीत मुहूर्त में करते थे शपथ ग्रहण
सभी ज्ञानी जनों के द्वारा शोध करने के बाद यह माना जा सकता है कि कोई भी कार्य करना अच्छा होता है पुराने समय में तो राज्य में शपथ ग्रहण समारोह दिन के 12:00 बजे उत्तम माना जाता रहा है जो कि अभिजीत मुहूर्त है। बहुत से ज्ञानी जनों का मानना है जिस प्रकार दिन के मध्यकाल को अभिजीत मुहूर्त कहा जाता है वह रात्रि के मध्यकाल में भी आता है। जो अधिकतर वर्ष में 12:00 बजे के आसपास ही होता है चाहे रात्रि में चाहे दिन में परंतु दिन के अभिजीत मुहूर्त की विशेष मेहता होती है इसलिए समय देश काल का अनुसरण करते हुए अयोध्या में भगवान श्री राम जन्मस्थली का कार्य प्रारंभ होने जा रहा है वह अनुचित नहीं है। हालांकि मुहूर्त देखने के लिए चौघडय़िा राहुकाल आदि का भी वेध देखा जाता है।
गुरु गोविंद सिंह ने इसी मुहूर्त को देखकर बनवाई थी सिखों की पगड़ी
हालांकि कोई प्रमाणिकता तो नहीं है परंतु यह माना जाता है के सिखों के गुरु गुरु गोविंद सिंह जी इस मुहूर्त का विशेष उपयोग करते थे वह बहुत ज्ञानी जन थे उन्होंने सिखों का गुरु करने के लिए पगड़ी बनाई दस्तार दी। शनि उच्च करने के लिए कड़ा दिया शुक्र उच्च करने के लिए कंघा मंगल उच्च करने के लिए कृपाण और राहु की उच्चता के लिए कचछा दान दिया अर्थात सिखों को उनको धारण करने का आदेश दिया। सिख सेना भी अपनी दुश्मन सेना पर इसी समय पर हमला करती थी जिससे उनकी विजय सुनिश्चित होती थी। (एजेंसी)
(ज्योतिषीय आंकलन संबंधी जानकारी पंडित बृज मोहन शर्मा गन्नौर सोनीपत के अनुसार)

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