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मक्के की फसल में फाॅल आर्मी कीट के प्रकोप से निजात दिलाएगी ‘‘चमन बहार तकनीक‘‘

छत्तीसगढ़ के अंर्तगत मुख्यतः रायपुर, बलौदाबाजा़र, गरियाबंद, महासमुंद, धमतरी सहित सभी जिलो में मक्के के फसल का उत्पादन किया जा रहा है। छ.ग. राज्य में वर्ष 2019-20 में मक्के के फसल का कुल उत्पादन 8429.29 मिलियन टन रहा। मक्के के फसल में आजकल फॉल आर्मी वर्म कीट का प्रकोप देखा जा रहा है।यह बाहरी नाशी जीव (इनवेसिव पेस्ट) है। जो फसल पर फौज की तरह सामूहिक रूप से आक्रमण करता है। जिसका वैज्ञानिक नाम स्पोडोप्टेरा फुजीपरडा है। यह कीट मक्का के अलावा ज्वार, बाजरा सहित अन्य फसलों को नुकसान पहुंचता है। फॉल आर्मी वर्म कीट हमारे देश में सर्वप्रथम कर्नाटक प्रदेश में 2018 में देखा गया, जो धीरे-धीरे पूरे देश मे पैर पसार रहा है। इस कीट की इल्ली मक्के के छोटे-छोटे पौधों को जड़ से काटकर जमीन में गिरा देती है। पत्तियों के हरे भाग को खाती है, जिससे सफेद धब्बे दिखाई देने लगते है। यह कीट पुष्प अवस्था में पूरे पौधे की पत्ती, नर मंजरी एवं भुट्टे को नुकसान पहुंचते हैं। इल्लियां प्रायः पोंगली में छिपी होती है। अनुकूल मौसम में यह कीट 35 से 40 दिनों में जीवनचक्र पूरा कर लेता है। फसल पर कीट के प्रकोप प्रभावित क्षेत्रो में ‘‘चमन बहार तकनीक‘‘ लोकप्रिय है।

क्या है चमन बहार तकनीक? निम्नलिखित अनुशंसित कीटनाशकों की मात्रा को 1 किलो बारीक रेत में मिक्स कर पुरानी पानी बोतल में भर लेते है। ढक्कन में चार पांच छेद ऐसे करते है जिससे रेत धीरे धीरे गिरे, फिर उसे मजदूरों की सहायता से मक्के के प्रभावित शीर्ष तने में 10 से 20 ग्राम के आस-पास रेत को गिराते है, इससे एक तो इल्ली का मुखांग रेत में काम नही करता दूसरी तरफ कीटनाशक के प्रभाव से मादा कीट अंडे देने हेतु नही बैठ पाती। यह काफी कारगर उपाय है। चूंकि गांव में पान बनाने के समय चमन बहार को इसी तरीके से छिड़का जाता है इसलिए इसे ‘‘चमन बहार टेक्निक‘‘ कहते है।

कीटनाशकः- chlorpyrifos 50 + cypermethrin 5% EC का 100 मिली लीटर को 1 किलो बारीक रेत में मिक्स करें। या स्पाईनोटेराम 11.7% या थायोमेथाक्सम के साथ 12.6% लेम्डासाईहेलोथ्रिल 9.5% का 100 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ के का छिड़काव करें।

चमन बहार तकनीक से फायदे:-

1. किसानो की आर्थिक स्थिति को देखते हुए कम लागत् में अत्याधिक असरदार तकनीक है।

2. यह बहुत प्रभावशाली तकनीक है, क्योंकि इसके प्रयोग से कीटनाशकों का सदुपयोग हो रहा है जिससे पूरी फलस विषैली नही होती है।

3. इस तकनीक में समय और श्रमिक दोनो की बचत होती है। और वातावरण में कीटनाशको का प्रदुषण कम होता है।

साभारः- डाॅ. गजेन्द्र चंद्राकर (वरिष्ठ वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर।

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