श्री आनंदपुर ट्रस्ट की स्थापना 22 अप्रैल 1954 में की गयी थी. यह ट्रस्ट आश्रम निवासियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है. श्री आनंदपुर धाम में प्रधानमंत्री के आने से क्षेत्रीय लोगों में आशा जगी है, कि कुछ सौगात क्षेत्र को प्रधानमंत्री देकर अवश्य जाएंगे.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुक्रवार 11 अप्रैल को मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले में ईसागढ़ तहसील के आनंदपुर धाम आ रहे हैं. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी गुरु जी महाराज मंदिर में दर्शन और पूजा-अर्चना करेंगे और आनंदपुर धाम स्थित मंदिर परिसर का भ्रमण भी करेंगे. आध्यात्मिक और पारमार्थिक उद्देश्य से स्थापित आनंदपुर धाम 315 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है. यहां आधुनिक गौशाला संचालित है, जिसमें 500 से अधिक गौवंश है. आनंदपुर ट्रस्ट यहाँ कृषि कार्य भी कर रहा है. आइए जानते हैं यह तीर्थ के बारे में.
कब से चल रहा है ट्रस्ट? क्या काम होता है?
श्री आनन्दपुर ट्रस्ट ग्राम सुखपुर तहसील ईसागढ़ में 1977 से चैरिटेबल अस्पताल संचालित है. यहां मरीजों के लिए 125 बिस्तरों की व्यवस्था है. अस्पताल में प्रतिदिन लगभग 600 मरीजों की ओ.पी.डी. संचालित है. यहां एमडी फिजिशियन, डेंटल स्पेशलिस्ट, एमएस जनरल सर्जरी, एम.एस. आर्थोपेडिक, कॉर्डियोलॉजिस्ट, फिजियोथेरेपिस्ट तथा नेत्रसर्जन पदस्थ है. वर्ष में विशेष स्वास्थ्य शिविर भी यहां आयोजित किये जाते हैं. ट्रस्ट द्वारा आनंद प्राथमिक विद्यालय सुखपुर, आनंद माध्यमिक विद्यालय आनंदपुर तथा आनंद मिडिल स्कूल ग्राम सुखपुर में संचालित हैं, जिसमें 62 शिक्षक-शिक्षिकाएं पदस्थ हैं एवं 1215 छात्र-छात्राएं अध्यनरत हैं.मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले की ईसागढ़ तहसील मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूर श्री आनंदपुर धाम नाम से एक आश्रम बना हुआ है. जो परमहंस अद्वैत मत का वर्तमान में सबसे महत्वपूर्ण धाम माना जाता है. श्री परमहंस अद्वैत मत का विश्वव्यापी, भक्ति-परमार्थ का प्रमुख सत्संग केन्द्र श्री आनन्दपुर है. इस विशाल आश्रम से सम्बन्धित परमार्थ के केन्द्र एवं सत्संग आश्रम सम्पूर्ण भारत में हैं.
योग द्वारा आत्मा को परमात्मा में एकाकार करना
परमहंस अद्वैत मत उत्तरी भारत में पंथों का एक समूह है. इसकी स्थापना श्री 108 श्री स्वामी अद्वैत आनन्द जी महाराज प्रथम पादशाही जी ने की थी. इन्हें परमहंस दयाल जी महाराज के नाम से भी जाना जाता है. इस मत का लक्ष्य सुरत-शब्द-योग द्वारा आत्मा को परमात्मा में एकाकार करना है. इस मत का मूल सिद्धांत है कि जिज्ञासुओं को दीक्षित करके निष्काम सेवा, सुमिरण-ध्यान और आत्मोन्नति के अन्य साधन बताकर भक्त्ति के पथ पर अग्रसर किया जाए. इस मत परंपरा में अब तक छः गुरु हुए हैं. जिन्हें पादशाही कह कर संबोधित करने की परंपरा है.