भारत और पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशकों (DGMOs) के बीच आज एक अहम बातचीत होने जा रही है. यह संपर्क दोनों देशों के बीच इस हफ्ते हुई सीजफायर सहमति के बाद पहली औपचारिक वार्ता होगी.बातचीत दोनों देशों के सैन्य मुख्यालयों के बीच एक सुरक्षित हॉटलाइन के जरिये होती है.
यह हॉटलाइन नई दिल्ली स्थित भारतीय सेना मुख्यालय और पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित जनरल मुख्यालय को जोड़ती है. 1971 के युद्ध के बाद इस माध्यम की नींव रखी गई थी. यह अमेरिका और रूस के बीच शीत युद्ध के दौर में स्थापित ‘हॉटलाइन’ की तर्ज पर तैयार की गई थी, जिसका उद्देश्य रियल टाइम में सेना के बीच संवाद,किसी संकट की स्थिति में उसका समाधान और तनाव के हालात में में जल्द से जल्द एक दूसरे को जानकारी पहुंचाना है.
क्या है हॉ़टलाइन?
यह कोई मोबाइल या इंटरनेट आधारित सेवा नहीं है, बल्कि एक स्थिर, एन्क्रिप्टेड और सेफ लैंडलाइन है, जो सिर्फ दोनों देशों के DGMOs के ऑफिस से संचालित की जाती है. इसमें किसी भी तरह की राजनीतिक या राजनयिक दखल नहीं होता. इसके पीछे का मकसद किसी भी घटना पर फौरन और साफ सैन्य संवाद मुहैया कराना है.
इस हॉटलाइन का इस्तेमाल सामान्यत: हफ्ते में एक बार मंगलवार को होता है, लेकिन जब कभी सीमा पर गोलीबारी, सैन्य तनाव या कोई इमरजेंसी होती है, तो इसे फौरन एक्टिव किया जाता है.
यह बातचीत ऐसे वक्त हो रही है जब सीमा पर हालात एक बार फिर संवेदनशील बने हुए हैं. दोनों पक्षों ने इस बातचीत के जरिए सीजफायर समझौते को दोहराया, सैनिकों की तैनाती पर चर्चा की और भविष्य में संकट से निपटने के लिए एक-दूसरे के नजरिये को समझा है.
कब हुई शुरू?
इतिहास के पन्नों में देखें तो यह हॉटलाइन शुरू में केवल संकट के समय सक्रिय होती थी, लेकिन धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल सामान्य सैन्य प्रबंधन, सीजफायर की निगरानी, सैन्य अभ्यास की जानकारी और यहां तक कि 1998 में दोनों देशों द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों के दौरान सूचना शेयर करने में भी होने लगा.
पाकिस्तान की सेना ने इस बातचीत में द्विपक्षीय स्थिरता और परस्पर सम्मान के प्रति प्रतिबद्धता जताई, वहीं भारत ने यह साफ किया कि धमकी की भाषा से कोई समाधान नहीं निकलेगा. दोनों देशों ने इस बात को दोहराया कि यह हॉटलाइन किसी भी संकट के समय संवाद का पहला और सबसे विश्वसनीय जरिया बनी हुई है.