Wednesday, December 10

भगवान श्री कृष्ण पर आस्था और विश्वास रखने वाले तमाम सनातनी लोग जिस जन्माष्टमी पर्व का पूरे साल इंतजार करते हैं, उसे आज देश भर में बड़ी धूम-धाम से मनाया जा रहा है. स्मार्त जहां 15 अगस्त 2025 को तो वहीं वैष्णव परंपरा से जुड़े लोग 16 अगस्त 2025 को अपने लड्डू गोपाल की पूजा करेंगे. हिंदू मान्यता है कि जो कोई व्यक्ति भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर श्री कृष्ण भगवान की विधि-विधान से पूजा करता है, उस पर पूरे साल कान्हा की कृपा बरसती है. आइए जन्माष्टमी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, मंत्र, आरती और महाउपाय के बारे में जानते हैं. 

कृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त 

पंचांग के अनुसार इस साल भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि 15 अगस्त 2025 की रात्रि को 11:50 बजे से लेकर 16 अगस्त 2025 को रात्रि 09:35 बजे रहेगी. चूंकि 16 अगस्त 2025 को अष्टमी तिथि पूरे दिन सूर्यास्त के बाद भी रात्रि 09:35 बजे तक रहेगी, इसलिए सभी वैष्णव और गृहस्थ लोग 16 को इस महापर्व को मनाएंगे. मथुरा में भी 16 अगस्त 2025 के दिन ही जन्माष्टमी का पावन पर्व मनाया जाएगा. 

जन्माष्टमी पूजा की सामग्री 

यदि आप चाहते हैं कि जन्माष्टमी की पूजा सुकून के साथ करें तो आपको पूजा से पहले सारी उसकी सामग्री इकट्ठा करके अपने पास रख लेना चाहिए. जन्माष्टमी की पूजा के लिए चौकी, उस पर बिछाने वाला पीला कपड़ा, कान्हा की मूर्ति अथवा उनका चित्र या फिर लड्डू गोपाल की मूर्ति, भगवान श्री कृष्ण का श्रृंगार करने के लिए वस्त्र, मोरमुकुट, मोर पंख, बांसुरी, आभूषण, शंख, तुलसी दल, अक्षत, रोली, चंदन, केसर, पुष्प, माला, शुद्ध जल, जल रखने के लिए पात्र, कलश, गंगाजल , दूध, दही, धूप, दीप, शुद्ध घी, मक्खन, पंचामृत, धनिया पंजीरी केसर, नारियल कपूर, पान, सुपारी, मौली, शक्कर, साफ कपड़ा, कान्हा के लिए झूला, आदि रख लें. 

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जन्माष्टमी पर कैसे करें कान्हा की पूजा

जन्माष्टमी के दिन स्नान-ध्यान करने के बाद ईशान कोण में चौकी पर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को पीला कपड़ा बिछाकर रखें. इसके स्वयं भी अपने लिए आसन बिछाएं और उस पर बैठकर सबसे पहले पवित्र जल से खुद पर और उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण पर छिड़कें. इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा को देखकर उनका ध्यान करते हुए पूजा को सफल बनाने की प्रार्थना करें. 

इसके पश्चात् भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या फिर लड्डू गोपाल को एक बड़े पात्र या फिर परात में रखकर  पहले से तैयार किये गये दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल मिलाकर बनाए गये पंचामृत से अभिषेक करें. इसके बाद उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराएं और साफ कपड़े से मूर्ति को पोंछकर कान्हा का वस्त्र, आभूषण आदि पहनाकर पूरा श्रृंगार करें. 

फिर उन्हें यदि उपलब्ध है तो गोपी चंदन या फिर रोली, हल्दी, या केसर का तिलक लगाएं. फिर भगवान को पुष्प-माला, दूर्वा अर्पित करें. इसके बाद भगवान को नैवेद्य, फल, पान, सुपारी आदि अर्पित करने के बाद उस पर से जल फेर दें. भगवान का विधि-विधान से पूजा करने के बाद भगवान श्री कृष्ण की चालीसा , मंत्र, स्तोत्र आदि का पाठ करें. पूजा के अंत में श्री कृष्ण की आरती करते हुए पूजा में कमीपेशी के लिए माफी और मनचाहा वरदान मांगें. 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूजा के नियम 

  • जन्माष्टमी पर पूजा करने वाले कृष्ण भक्त को तन और मन से पवित्र होकर ही पूजा करना चाहिए. 
  • जन्माष्टमी के दिन कृष्ण के साधक को किसी देवालय में जाकर कान्हा के दिव्य स्वरूप का दर्शन करना चाहिए. 
  • जन्माष्टमी के दिन अन्न का सेवन न करें, लेकिन यह नियम बच्चों, बुजुर्गो और मरीजों पर पूरी तरह से लागू नहीं होते हैं. जो लोग किसी कारणवश व्रत रखने में असमर्थ हैं, वे अपनी आस्था और सामर्थ्य के अनुसार जितना संभव हो सके उतने ही नियमों का पालन करें.  
  • जन्माष्टमी पर यदि किसी कारण देवालय न जा सकें या फिर घर में भी पूजा करने में असमर्थ हों तो उनकी मानसिक पूजा करें. 
  • जन्माष्टमी के दिन किसी पर क्रोध न करें और न ही किसी के लिए मुख से अपशब्द निकालें. 
  • जन्माष्टमी के दिन भगवान को उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाने के साथ तुलसी दल अवश्य अर्पित् करें. 
  • जन्माष्टमी की रात भगवान श्री कृष्ण की पूजा के बाद उनके मंत्र का जाप या फिर भजन कीर्तन करें. 
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भगवान श्री कृष्ण के मंत्र

ज्योतिषविदों के अनुसार यदि आप इस जन्माष्टमी पर भगवान श्री कृष्ण की मंत्र (Krishna Mantra) के जरिए साधना करना चाहते हैं या फिर उनकी कृपा से किसी मंत्र को सिद्ध करना चाहते हैं तो इसके लिए 15 अगस्त की रात्रि सबसे अधिक शुभ और फलदायी रहेगी. आप इस दिन अपनी आस्था और सुविधा के अनुसार नीचे दिये गये किसी भी मंत्र का जप कर सकते हैं.

ॐ कृष्णाय नमः
ॐ क्लीं कृष्णाय नमः
ॐ श्री कृष्णः शरणं ममः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय नम:

वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम्, 
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्.

हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, 
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे.

भगवान श्री कृष्ण की आरती

आरती कुंजबिहारी की, 
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला। 
श्रवन में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला। 
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की. 
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली.
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, 
कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की.
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की… आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं.
गगन सों सुमन रासि बरसै; 
बजे मुरचग मुधर मिरदंग, ग्वालिन संग; 
अतुल रति गोप कुमारी की.
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की… आरती कुंजबिहारी की… श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की… 

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा.
स्मरन ते होत मोह भंगा; 
बसी शिव शीश, जटाके बीच, हरै अघ कीच; 
चरन छवि श्रीबनवारी की.
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की… आरती कुंजबिहारी की… श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू 
चहुँ दिसि गोपि ग्वाल धेनू; 
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद; 
टेर सुनु दीन भिखारी की.
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की… आरती कुंजबिहारी की… श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है.)

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