भारतीय इतिहास के कालखंड में कुछ तिथियां केवल कैलेंडर की तारीखें नहीं होतीं, बल्कि वे सभ्यता के नए सूर्योदय की साक्षी बनती हैं। 22 जनवरी 2024 को जब रामलला नव-निर्मित मंदिर में विराजे तब पूरी दुनिया ने भारत की सांस्कृतिक चेतना का पुनरोदय देखा। अब, उसी श्रृंखला में 25 नवंबर की तिथि एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ने जा रही है। अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण कार्य अब अपने औपचारिक समापन की ओर है, और इस पूर्णता का उद्घोष मंदिर के शिखर पर फहराने वाले विशाल ध्वज के साथ होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ध्वजारोहण करेंगे, यह ध्वजारोहण मात्र एक कर्मकांड नहीं, बल्कि सदियों के संघर्ष, त्याग और तपस्या की ‘पूर्णाहूति’ का प्रतीक है। यह ध्वज न केवल मंदिर की ऊंचाई को स्पर्श करेगा, बल्कि भारत के आत्मसम्मान और सनातन आस्था के उस शिखर को भी छुएगा, जिसकी प्रतीक्षा पीढ़ियों ने की है। मंदिर निर्माण की यह यात्रा सुगम नहीं थी। इसमें सदियों का अभूतपूर्व धैर्य, अनगिनत बलिदान और न जाने कितने ही कारसेवकों और रामभक्तों की मूक तपस्या शामिल है। भारत के कण-कण में राम रचे-बसे हैं। राम केवल एक देवता नहीं, बल्कि भारत की पहचान हैं।
जब गत वर्ष रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई थी, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भावुक हो उठे थे। उनका वह संबोधन आज भी प्रासंगिक है और इस ध्वजारोहण की पृष्ठभूमि तैयार करता है। उन्होंने कहा था कि यह मंदिर, मात्र एक देव मंदिर नहीं है। ये भारत की दृष्टि का, भारत के दर्शन का, भारत के दिग्दर्शन का मंदिर है। ये राम के रूप में राष्ट्र चेतना का मंदिर है। यही जन-जन की भावना भी है। राम भारत के ‘आधार’ हैं और ‘विचार’ भी। राम ‘विधान’ हैं और ‘चेतना’ भी। प्रधानमंत्री ने राम के व्यक्तित्व को भारत की आत्मा से जोड़ते हुए कहा था कि राम ‘प्रवाह’ भी हैं और ‘प्रभाव’ भी। वे ‘नेति’ भी हैं और ‘नीति’ भी। राम की यह व्यापकता—जो ‘विभु’, ‘विशद’ और ‘विश्वात्मा’ है—अब उस ध्वज के रूप में नभ को चूमेगी जो मंदिर के शिखर पर स्थापित होगा।सनातन धर्म में ‘काल’ (समय) का विशेष महत्व है। किसी भी शुभ कार्य की सफलता ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति पर निर्भर करती है। राम मंदिर के ध्वजारोहण के लिए 25 नवंबर को जिस समय का चयन किया गया है, वह ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत दुर्लभ और फलदायी है। ध्वजारोहण का समय दोपहर 11 बजकर 52 मिनट से अपराह्न एक बजे तक निर्धारित हैं। ज्योतिष शास्त्र में अभिजीत मुहूर्त को सभी मुहूर्तों में ‘सर्वश्रेष्ठ’ माना गया है। यह दिन के आठवें मुहूर्त का मध्य भाग होता है। मान्यता है कि यह वह कालखंड है जिसमें भगवान श्रीहरि विष्णु ने दुष्टों का विनाश करने के लिए अवतार लिया था। इस मुहूर्त में शुरू किया गया कोई भी कार्य निश्चित रूप से सफल होता है और ‘विजय’ प्रदान करता है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि राम मंदिर का भूमि पूजन और रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा, दोनों ही इसी अभिजीत मुहूर्त में संपन्न हुए थे। अब ध्वजारोहण भी उसी नक्षत्र-योग में हो रहा है।
ध्वज पर अंकित चिन्ह:
• सूर्य: ध्वज पर सूर्य देव का चिन्ह अंकित है। चूकिं भगवान राम ‘सूर्यवंशी’ हैं, इसलिए यह चिन्ह उनके कुल के तेज, ऊर्जा और प्रकाश का प्रतिनिधित्व करता है।
• ॐ (ओम): केंद्र में अंकित ‘ॐ’ ब्रह्मांड का नाद है, जो आध्यात्मिकता और परम चेतना का प्रतीक है।
• कोविदार वृक्ष: सबसे विशेष बात यह है कि ध्वज पर ‘कोविदार वृक्ष’ का चित्र अंकित है। वाल्मीकि रामायण में अयोध्या के राजवंश के प्रतीक के रूप में कोविदार वृक्ष का उल्लेख मिलता है। यह चिन्ह इस ध्वज को सीधे त्रेतायुग की अयोध्या से जोड़ता है। यह बताता है कि यह मंदिर केवल पूजा का स्थल नहीं, बल्कि हमारी ऐतिहासिक वंशावली का जीवंत स्मारक है।













