Saturday, December 13

रायपुर। राज्य के पेंशनरों की समस्याओं को लेकर भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री एवं छत्तीसगढ़ राज्य सँयुक्त पेंशनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव ने ब्यूरोक्रेसी पर आरोप लगाया है कि पेंशनरों के मामले में मध्यप्रदेश सरकार पर आर्थिक निर्भरता के बाध्यता के लिये ब्यूरोक्रेसी की लापरवाही जम्मेदार है और ब्यूरोक्रेसी द्वारा राज्य विभाजन के इन 20 वर्षो में मध्यप्रदेश के लगभग 5 लाख पेसनरो को छत्तीसगढ़ सरकार के खजाने से भुगतान में अरबों रुपये के हुए नुकसान से अंधेरे में रखने को आश्चर्य जनक निरूपित किया है। उन्होंने पेंशनरों की आर्थिक दुर्दशा पर ब्यूरोक्रेसी के साथ साथ सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो को चिन्ता नही होने को दुर्भाग्यजनक जताते हुये उन्होंने छत्तीसगढ़ निर्माण के 20 वर्षो बाद भी राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 को हटाने तथा सेन्ट्रल पेंशन प्रोसेसिंग सेल को रायपुर लाने में आज तक ध्यान नही देने पर चिन्ता जाहिर किया है। इन सभी मामलों पर ब्यूरोक्रेसी ही मुख्यरूप से जिम्मेदार है। इसलिए जिम्मेदारी तय कर छत्तीसगढ़ सरकार को उन पर कार्यवाही करनी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह के मामलों पर पुनरावृत्ति न हो। जारी विज्ञप्ति में उन्होनें आगे बताया है कि दोनो राज्यो के बीच पेंशनरी दायित्व का बंटवारा नही होने से पेंशनरों को मिलनेवाली आर्थिक मामले मध्यप्रदेश के सहमति के बिना लटकी हुई है, चाहे महंगाई राहत का मामला हो या छटवें और सातवें वेतनमानों का एरियर हो अथवा सेवानिवृत्त उपादान की रकम, ये सभी दोनो राज्यों में आपसी सहमति नही होने से भुगतान नही हो रहा है। इसी तरह पेंशनरों प्रकरण में कोष लेखा एवं पेंशन से पीपीओ जारी होने के बाद अंतिम जांच के लिये सेंट्रल पेंशन प्रोसेसिंग सेल स्टेट बैंक गोविंदपुरा भोपाल शाखा को भेजा जाता है, जहाँ दोनो राज्यों के प्रकरणों की अधिकता होने के कारण कई महीनों के बाद जांच प्रक्रिया पूरी होती है और पेंशन नही मिलने में देरी से आर्थिक और सामाजिक शोषण के शिकार बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि पेंशनरों की समस्याओं पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो की बेरुखी है, क्योंकि जब भाजपा की सरकार रही तो उन्हें बार बार अवगत कराने के बाद भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया और अब लगभग 2 साल से राज्य के सत्ता में काबिज कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री और जिम्मेदार अधिकारियों से लगातार चर्चा, ज्ञापन और धरना, प्रदर्शन आदि के माध्यम अवगत कराने बाद भी स्थिति जस के तस बनी हुई है।

जारी विज्ञप्ति में बताया है कि धारा 49 को हटाकर पेंशनरी दायित्व का बंटवारा आपस मे नही होने के कारण नियमो के तहत 74 प्रतिशत राशि का भुगतान मध्यप्रदेश सरकार को और 26 प्रतिशत राशि का भुगतान छत्तीसगढ़ सरकार को मध्यप्रदेश के 05 लाख और छत्तीसगढ़ के 01लाख पेंशनरों इसतरह कुल 6 लाख से अधिक पेंशनर और परिवारिक पेंशनरों मिलकर करना होता है इसके लिए दोनो राज्य सरकारों में आपसी सहमति नही होने पर कोई भी भुगतान करना सम्भव नही हैं और इसी भुगतान के खेल में छत्तीसगढ़ सरकार को इन 20 वर्षो में अरबो रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। जो लगातार जारी हैं। उन्होनें उदाहरण देते हुये बताया है कि प्रत्येक पेंशनर को नियमानुसार 74 प्रतिशत राशि मध्यप्रदेश द्वारा और 26 प्रतिशत राशि छत्तीसगढ़ द्वारा दिया जाना है अर्थात 100 रुपये में 6 लाख पेंशनर को मध्यप्रदेश 74 प्रतिशत और इन्ही सभी पेंशनरों को 26 प्रतिशत छत्तीसगढ़ सरकार के खजाने से देने पड़ेंगे। हिसाब लगाने पर इसमें मध्यप्रदेश को 44 करोड़ 44 लाख व्यय करना पड़ेगा और छत्तीसगढ़ सरकार को 1 करोड़ 56 लाख व्यय होगा। परन्तु यदि मध्यप्रदेश अपने 5 लाख पेंशनर को 100 त्न भुगतान करता है उसे 5 करोड़ और छत्तीसगढ़ सरकार अपने 1 लाख पेंशनरों के केवल 1 करोड़ खर्च करने होंगे। इस तरह केवल 100 रुपये के भुगतान मे ही छत्तीसगढ़ शासन को 56 लाख रुपए का नुकसान हो रहा है। इसीलिए मध्यप्रदेश सरकार जानबूझकर 20 साल से पेंशनरी दायित्व को टालते आ रही है। इसी तरह सेन्ट्रल पेंशन प्रॉसेसिंग सेल स्टेट बैंक गोविदपुरा भोपाल में दोनों ही राज्य के पेंशन प्रकरणों का अंतिम निराकरण करने का काम होता हैं और एक अकेले शाखा में दोनो राज्यों के काम निपटाने में अनावश्यक देरी होना स्वाभाविक है,इसलिए छत्तीसगढ़ राज्य में पृथक सेल की स्थापना की बहुत जरूरत पर भी चिन्ता नहीं है। ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ के साथ साथ उत्तराखंड और झारखंड राज्यों का निर्माण भी सन 2000 में ही हुआ था दोनो ही राज्य सरकारों ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 और सेन्ट्रल पेंशन प्रोसेसिंग सेल की समस्या से वर्षो पूर्व निजात पा ली हैं और अपने राज्य के पेंशनरों के बारे में अकेले निर्णय लेने में सक्षम है, परन्तु छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश आपसी सहमति के चलते पेंशनरों के साथ खिलवाड़ करने में मस्त है और 20 वर्षो से लंबित इस दोनो मामले को जानबूझकर टाल रहे हैं।

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