Thursday, December 11

रायपुर। 20 वी राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस में प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ डॉ .दिनेश मिश्र ने कोविड काल में स्वास्थ्य जागरूकता एवं अंधविश्वास विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कोरोना वायरस पर वैज्ञानिक तरीकों से ही नियंत्रण पाना सम्भव है. आज भी आम जन में वैज्ञानिक सोच बढ़ाने की आवश्यकता है. 20 वी राष्ट्रीय विज्ञान संचार कांग्रेस में डॉ.मनोज पटेरिया, डॉ.आशुतोष शर्मा (सचिव केंद्रीयविज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय,), डॉ नकुल पराशर (डायरेक्टर विज्ञान प्रसार), डॉ रिकार्डो वेस्ली(ब्राजील) सहित अनेक विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे. राष्ट्रीय विज्ञान संचार कॉंग्रेस मे डॉ दिनेश मिश्र ने कहा कि देश में कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या 1 करोड़ को पार कर गयी है और अभी भी संक्रमण के नए मामले आते जा रहे हैं इस संदर्भ में एक राहत की बात यह है कि हमारे देश में कोविड से संक्रमित मरीजों में मृत्यु की दर अत्यंत कम 1.5 प्रतिशत है वही कोविड से संक्रमित मरीजो की पुन: स्वस्थ होने का रिकवरी रेट 95.5 प्रतिशत है. पहले यह माना जाता था कि गर्म मौसम में संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया और वायरस की सक्रियता कम होने लगती है तथा संक्रमण की दर कम हो जाती है पर कोरोना वायरस के मामले में ऐसा नही रहा देश में भरी गर्मी में 45 डिग्री तापमान पर भी संक्रमण नही थमा, हजारों की संख्या में नए मामले सामने आते रहे, और इन सबके पीछे जिम्मेदार मन गया वायरस में होने वाला म्यूटेशन जिससे वायरस की संरचना और प्रकृति बदलती रही. नए स्ट्रेन सामने आते रहे ,विश्व में 11 प्रकार के स्ट्रेन मिले है जिनमें से 6 भारत में सक्रिय हैं. डॉ दिनेश मिश्र ने कहा विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अच्छे स्वास्थ्य के लिये बीमार न होना ही नही ,बल्कि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तौर पर स्वस्थ रहना आवश्यक है, स्वास्थ के प्रति जागरूकता लिए सही पोषण, उचित आहार टीकाकरण, प्रतिरोधक क्षमता इम्म्युनिटी, संक्रमण और उससे बचाव, बीमारियों के सम्बंध में प्राथमिक जानकारी होना चाहिए। स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के रास्ते में आने वाली रुकावटों में अशिक्षा, विभिन्न प्रकार के अंधविश्वास और भ्रम,वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी,स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है।

कोरोना काल में भी वायरस के साथ साथ चिकित्सकों को विभिन्न अंधविश्वासों ,रूढिय़ों, और अनेक प्रकार के भ्रमों से ,भी लडऩा पड़ रहा है क्योंकि कोविड काल में भी सामान्य दिनों की तरह अंधविश्वास की अनेक घटनाएं सामने आई है प्रारंभ में कुछ बैगाओं व कथित तांत्रिकों ने कोरोना को ठीक करने की बात कही, रतलाम में एक बाबा जो लोगों की चूम कर ठीक करना का दावा करता था स्वयम कोरोना से संक्रमित होकर मृत्यु का शिकार हुआ, छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार के पास एक बैगा कोरोना की गैरेन्टी झाड़ फूंक का दावा करता था ,उसे खुद संक्रमित होने पर मेकाहारा रायपुर में भर्ती कराया गया,मध्यप्रदेश में 37 बाबाओं को कवरेन्टीन करना पड़ा, पंजाब उत्तरप्रदेश, बिहार में कुछ तथाकथित बाबाओ को ताबीज, कथित चमत्कारिक यंत्र बेचते, महामारी नियंत्रण अधिनियम में गिरफ्तार किया गया, बिहार, असम, झारखंड, पश्चिम बंगाल से कोरोना को कोरोना माई के रूप में पूजा करने के मामले आये,ओडिशा में दो नरबलि, और झारखंड में एक स्थान पर 400 बकरों की बलि कोरोना से मुक्ति के अंधविश्वास के कारण दी गयी. कुछ स्थानों से गोबर से नहाने और गौ मूत्र के सेवन से कोरोना ठीक होने के दावे के प्रचार की बात आई जिसकी फोटो भी सोशल मीडिया में अपलोड हुई जिस से सरकार को यह घोषणा करनी पड़ी, कि सिर्फ कोरोना की गाइड लाइन का पालन करें. इसी क्रम में कुछ लोगों द्वारा परंपरागत जड़ी बूटियों को भी कोरोना की दवा के रूप पेश किया गया तब आयुष मंत्रालय और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ इम्युनिटी बूस्टर यानी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए ही मान्य है ये दवा नहीं हैं, काढ़ा और अन्य कथित स्वास्थ्य वर्धक घोल भी बहुत अधिक मात्रा में पीने पर सम्बंधित विशेषज्ञों ने कहा अधिक मात्रा में कोई भी काढ़ा, घोल, लिवर सहित कुछ अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है, सम्बंधित विशेषज्ञ के परामर्श के न पीयें. कोरोना से बचाव के लिए मास्क पहिनने, हाथ धोने, सेनेटाइजर से हाथ धोने, सोशल डिस्टेन्स बनाये रखने की सलाह बार बार विश्व स्वास्थ्य संघठन, सरकार, चिकित्सकों ने दी. और तो और कुछ लोगों ने स्प्रिट और सेनेटाइजर का भी सेवन किया, जिसके कारण ईरान सहित अनेक देशों में सैकड़ो लोग मृत्यु के शिकार हो गए। कुछ स्थानों से तो डॉक्टरों, चिकित्सा कर्मचारियों से दुर्व्यवहार, मारपीट, घर से निकालने कोरोना फैलने के डर से सामाजिक बहिष्कार के मामले सामने आए। वहीं कुछ स्थानों से मरीज के अंतिम संस्कार में बाधा डालने, न होने देने की भी घटनाएं हुई, कुछ कोविड सेंटर से मरीजों के भागने, और मानसिक तनाव, आत्महत्या की भी घटनाएं हुईं सामाजिक जागरूकता बढ़ाने से ऐसी घटनाओं से निपटा जा सकता है। डॉ दिनेश मिश्र ने कहा कोरोना से बचाव में लोकडाउन, से भी मदद मिली, वहीं स्कूल, कॉलेज, कार्यालयों, सामाजिक राजनैतिक, धार्मिक स्थलों और आयोजनों को बंद करने से भी देश में संक्रमण पर नियंत्रण हुआ. भारत सहित संसार के अनेक देशों में कोरोना की वैक्सीन बनाने के लिए ट्रायल चल रहे है संभवत: कुछ समय बाद वैक्सीन लोगों को लगना भी आरम्भ हो जाएगी पर अभी भी सभी लोगों को सतर्क रहना और अपना बचाव करना आवश्यक है वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार मास्क,सेनेटाइजर, सोशल डिस्टेन्स बनाये रखने और कोरोना की गाइड लाइन का पालन करने की जिम्मेदारी सभी को ईमानदारी से निभाने की आवश्यकता है. तभी कोविड के प्रकोप से मुक्ति पाई जा सकेगी.

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