
भारत के इतिहास में हम पाते हैं कि नारी पुरुष के समकक्ष सम्मान व प्रतिष्ठा के लिए स्वयं के जान को भी दांव पर लगाने से पीछे नही हटी, नारी के इसी पराक्रम के चलते यह कहावत सर्वमान्य बनकर साबित हुई कि प्रत्येक पुरुष की सफलता के पीछे एक स्त्री की भूमिका होती है न केवल पत्नी के रूप में बल्कि एक मां, एक बेटी या एक साथी के रूप में भी । वर्तमान युग को नारी के उत्थान का युग कहा जाता है और इसे कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि देश की महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी पताका फहरा रही हैं।
विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही साथ महिलाओं के योगदान के बिना भविष्य निर्माण की कल्पना भी संभव नहीं है। नारी के बिना नर का जीवन अधूरा है। संसार को आगे चलाने के लिए नारी का होना नितांत आवश्यक है।
संस्कृत का एक श्लोक इसी भावना की सार्थक अभिव्यक्ति है-
“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:
यत्रेतास्तु न पूज्यंते सर्वास्तत्राफला: क्रिया।”
जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात सत्कार होता है उस कुल में दिव्य गुण और उत्तम संतान होती हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती है वहां जान लेना चाहिए कि उनकी सब क्रियाएं निष्फल होती हैं।
हमारे भारतीय इतिहास में महिलाओं को समान महत्व दिया जाता है। महाभारत में कहा गया है कि जिस कुल में स्त्री का सम्मान नहीं होता उस कुल का सर्वनाश संभव है।
चाणक्य नीति में कौटिल्य ने स्पष्ट रूप से कहा है कि” माता के समान कोई देवता नहीं मां पर मुझे भी होती हैं”
कोई भी देश तरक्की के शिखर पर तब तक नहीं पहुंच सकता जब तक उस देश की महिलाएं पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ना चले।
स्त्री परिवार बनाती है, परिवार से घर बनता है, घर से समाज बनता है, समाज से देश बनता है, इसका सीधा अर्थ यही है कि स्त्री का योगदान का हर जगह है। महिला की क्षमता को नजरअंदाज करके समाज की कल्पना व्यर्थ है। शिक्षा के साथ ही साथ महिला सशक्तिकरण के बिना परिवार समाज और देश का विकास नहीं हो सकता है।
स्त्री के बिना ना जीवन ना ही जग का निर्माण संभव।
स्त्री से ही सर्व कल्याण, होता है नव विकास का उद्भव।।
के.शारदा
शिक्षक
शा. पू. मा .शा . खेदामारा