राजनांदगांव। विश्व क्षय (टीबी) दिवस के अवसर पर टीबी बीमारी की रोकथाम का प्रयास करते हुए लोगों की जागरुकता के लिए जिले में विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। कार्यक्रम की थीम इस बार द क्लाक इज टिकिंग होगी। क्षय रोग पर नियंत्रण हेतु जिले के अस्पतालों में इस इस थीम पर आधारित बैनर-पोस्टर भी लगाए जाएंगे। विश्व क्षय दिवस के अवसर पर जिला एवं विकासखंड स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस संबंध में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. मिथलेश चौधरी ने बताया, शासकीय स्वास्थ्य केन्द्रों में टीबी रोग का नि:शुल्क जांच व उपचार किया जाता है। चिकित्सक के निर्देशानुसार निश्चित समयावधि तक दवाइयां लेने से टीबी रोग पूर्ण रूप से ठीक हो सकता हैश्। वहीं जिला क्षय अधिकारी डॉ. अल्पना लूनिया ने बताया, हर साल 24 मार्च को विश्व क्षय दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर इस साल भी जिला एवं विकासखंड स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए जिला स्तर पर टीबी हारेगा-देश जीतेगा, टीबी मुक्त छत्तीसगढ़ की ओर अग्रसर आदि संदेश युक्त मॉस्क का वितरण विभिन्न शासकीय कार्यालयों, जनप्रतिनिधियों, जनसामान्य, व्यापारियों को किया जाएगा। माईकिंग के माध्यम से भी जनसामान्य को टीबी रोग की जांच एवं उपचार के संबंध में जागरूक किया जाएगा। उन्होंने बताया, टीबी के लक्षण वाले व्यक्ति मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल राजनांदगांव या समीप के सामुदायिक-प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं जिला क्षय केन्द्र राजनांदगांव में टीबी की नि:शुल्क जांच करवा सकते हैं। टीबी रोग के प्रमुख लक्षणों में दो सप्ताह से अधिक खांसी, शाम के समय बुखार आना, वजन घटना, खखार में खून आना आदि शामिल हैं। यह रोग किसी भी उम्र में किसी भी व्यक्ति को कभी भी हो सकता है, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल भी सकता है। जिला क्षय रोग अधिकारी ने बताया, विशेषकर बच्चों को जब कोई परेशानी होती है या जब वह बीमार होते हैं तो अक्सर वह अपनी समस्या सही से बता नहीं पाते हैं। इस कारण बच्चों में क्षय रोग का तुरंत पता भी नहीं चल पाता है। वहीं सामान्य बच्चों की तुलना में कुपोषित बच्चे जल्दी टीबी का शिकार हो जाते हैं। कुपोषित बच्चे जब टीबी से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो वह भी जल्द बीमार हो जाते हैं। ऐसे में यदि बच्चे को दो हफ्ते या उससे ज्यादा समय से लगातार खांसी आती है तो जांच कराना आवश्यक है। टीबी के कीटाणु बच्चे के फेफड़ों से शरीर के अन्य अंगों में बहुत जल्दी पहुंच जाते हैं। शुरुआत में बच्चों में हल्का बुखार बना रहता है। पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों में भी टीबी के मामले सामने आते हैं। बच्चों में टीबी के लगभग 60 फीसदी मामले फेफड़ों से जुड़े होते हैं, जबकि बाकी 40 फीसदी फेफड़ों के अतिरिक्त अन्य अंगों में होते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता होता है कि टीबी कहीं पर भी हो सकती है। वह कहती हैं, बच्चों में टीबी का आम प्रकार नकारात्मक पल्मोनैरी टीबी है। छोटे बच्चों में बलगम नहीं बनता है, ऐसे में जांच के लिए वे बलगम नहीं दे पाते हैं। ऐसी स्थिति में गैस्ट्रिक लवेज बच्चों में टीबी का पता लगाने के लिए दूसरा विकल्प है। कुपोषण, एचआईवी या खसरा से संक्रमित बच्चों में टीबी अधिक आम और गंभीर हो सकती है। बच्चों में टीबी की उचित जांच और इलाज को लेकर लोगों को जागरूक होने की जरुरत है। ज्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि टीबी नाखून और बाल छोड़कर कहीं भी हो सकती है।
ऐसे करें बच्चों का टीबी से बचाव…
0 अपने बच्चे को गंभीर खांसी से पीडि़त लोगों से दूर रखें।
0 अपने शिशु को जरूरी टीके समय पर लगवाएं, जिसमें टीबी वैक्सीनेशन के लिए बीसीजी टीका शामिल होता है।
0 टीबी के लक्षण दिखने पर तुंरत बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाएं।
0 एंटी टीबी दवाइयों का कोर्स बच्चे को जरूर पूरा करवाएं













