ज्येष्ठ मास का विशेष धार्मिक महत्व शास्त्रों में बताया गया है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ मास को तीसरा मास माना गया है. इस मास में सूर्य की सीधी किरणें धरती पर पड़ती हैं. जिस कारण दिन बड़ा और रात छोटी होती हैं. ज्येष्ठ मास में दिन बड़ा होने के कारण ही इसे ज्येष्ठ मास कहा जाता है. कहीं कहीं इसे जेठ के नाम से भी जाना जाता है. पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है. निर्जला एकादशी पर व्रत रखकर भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. एकादशी के व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माने गए हैं. एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत को श्रेष्ठ माना गया है. निर्जला एकादशी व्रत को सबसे कठिन व्रत भी कहा गया है. अन्न और जल का त्याग कर इस व्रत को पूर्ण करना होता है. मान्यता है कि जो भी इस व्रत को विधि पूर्वक पूर्ण करता है. उसके जीवन में हमेशा सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है. एकादशी व्रत में नियमों का विशेष पालन करना चाहिए. निर्जला एकादशी के दिन स्नान करने के बाद पूजा स्थल पर बैठकर, व्रत का संकल्प लेकर पूजा आरंभ करनी चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु को पीले वस्त्र पहनाएं. पूजा में पीले फूलों का प्रयोग करें. इस दिन पीली चीजों का प्रयोग किया जाता है. भगवान विष्णु को पीला रंग अधिक प्रिय है.
इस दिन इस मंत्र का जाप करना चाहिए-
ऊं नमो भगवते वासुदेवाय
निर्जला एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त
निर्जला एकादशी तिथि: 21 जून 2021
एकादशी तिथि प्रारंभ: 20 जून, रविवार को शाम 4 बजकर 21 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समापन: 21 जून, सोमवार को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट तक
एकादशी व्रत का पारण समय: 22 जून, सोमवार को सुबह 5 बजकर 13 मिनट से 8 बजकर 1 मिनट तक
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