रायगढ़। परम्परागत खेती करते आये किसान तेजसिंह पटेल ने अपने एक हेक्टेयर खेत में रागी की फसल लगाकर धान से दुगुना और गेहूं से तिगुना फायदा कमाया है। इसको देखकर किसान तेज सिंह पटेल काफी उत्साहित है और कहते है कि उन्होंने पहली बार अपनी परम्परागत फसल से हटकर रागी की खेती की। जिससे उन्हें 72 हजार 780 रुपये की शुद्ध आय मिली, जो इतनी ही भूमि पर ग्रीष्म कालीन धान लगाने पर लगभग 37 हजार 990 रुपये और गेहूं लगाने पर 22 हजार रुपये का लाभ मिलता है। इस लिहाज से रागी की फसल से ग्रीष्म कालीन धान से दुगुना और गेहूं की फसल से तिगुना लाभ मिला है। रागी की खेती से मिले फायदे से अब आगे वे खरीफ सत्र 2021 में भी अपने 2.5 एकड़ जमीन में रागी लगाने जा रहे है। उन्होंने पूर्णत: जैविक पद्धति से रागी की खेती की जिसमें उन्होंने खाद के रूप में वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग किया। विकासखण्ड पुसौर ग्राम-जतरी के तेजसिंह पटेल बताते है कि उनके पास कुल 6.705 हेक्टेयर जमीन है। पहले वे पूरी भूमि में खरीफ में धान की फसल तथा रबी में सिंचित क्षेत्र के 1 हेक्टेयर में गेहूं की फसल उगाते रहे है। गत वर्ष उन्हें गेहूं की 25 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त हुआ था। जिसको बाजार में 1600 रुपये की दर से बिक्री किया। इस साल कृषि विभाग से ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी श्री एफ.सी.साव ने कृषक तेजसिंह पटेल को रागी की फसल के बारे में बताया। उन्होंने जानकारी एवं प्रदर्शन, बीज उत्पादन कार्यक्रम से जैविक खेती संबंधित प्रशिक्षण से प्रभावित होकर एक हेक्टेयर में रागी फसल लगाने का निश्चय किया। कृषक तेजसिंह पटेल ने कृषि विभाग से रागी का 10 किलो बीज नि:शुल्क प्राप्त किया। उन्होंने 3 क्ंिवटल वर्मी खाद सेमरा गोठान से क्रय किया। रागी उत्पादन के लिये उन्होंने दिसम्बर माह के प्रथम सप्ताह से खेत की तैयारी शुरू कर दी। नर्सरी की तैयारी के लिये एक मीटर चौड़ा, 7.5 मीटर लम्बा तथा 4 इंच ऊंचा बेड तैयार किया गया। नर्सरी में एक क्ंिवटल वर्मी कम्पोस्टर एवं 10 क्ंिवटल गोबर की खाद का उपयोग किया। इस बीच कृषि विभाग के अधिकारियों का लगातार खेत में आना जारी रहा तथा उनका मार्गदर्शन भी मिलता रहा। रोपाई पूर्व बेसल डोज खाद के रूप में खेत में दो ट्रोली गोबर की खाद एवं 2 क्ंिवटल वर्मी खाद का उपयोग किया गया। कतार से कतार की दूरी 25 से.मी. एवं पौध से पौध की दूरी 10 से.मी. रखने का निर्णय लिया गया। रोपाई का कार्य नर्सरी से पौधा उखाडऩे के तत्काल बाद किया गया। रोपाई के 25 दिन बाद अंबिका पैडी वीडर को कतार में चलाया गया इससे निंदा नियंत्रण से हो गया और रागी के पौधों में थोड़ा-थोड़ा मिट्टी चढ़ाई भी हो गया। सिंचाई की आवश्यकता अनुसार नियमित किया गया। धान गेहूं या अन्य रबी फसल के अपेक्षा सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ी तथा रासायनिक उर्वरक एवं पौध संरक्षण कार्य में रासायनिक दवाओं का उपयोग करना नहीं पड़ा। तना छेदक कीट नियंत्रण के लिये एक लीटर एजाडिरेक्टीन 1500 पीपीएम (नीम का तेल)का स्प्रे किया इससे काफी हद तक कीट नियंत्रण हो गया। 5 गुणा 5 वर्ग मीटर में फसल कटाई प्रयोग ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी द्वारा किया गया जिसका उत्पादन 6.990 कि.ग्रा. मिला। इस प्रकार प्रति हेक्टेयर 27.96 क्ंिवटल उपज प्राप्त हुआ। जिससे उन्हें 72 हजार 780 रुपये की शुद्ध आय मिली, जो इतनी ही भूमि पर ग्रीष्म कालीन धान लगाने पर लगभग 37 हजार 990 रुपये और गेहूं लगाने पर 22 हजार रुपये का लाभ मिलता है। इस लिहाज से रागी की फसल से ग्रीष्म कालीन धान से दुगुना और गेहूं की फसल से तिगुना लाभ मिला है। किसान तेजसिंह पटेल कहते है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने रागी के लिये समर्थन मूल्य 33.97 रुपये प्रति किलो घोषित किया है। इसके साथ ही कलेक्टर श्री भीम सिंह की पहल पर जिला प्रशासन रायगढ़ जिले में रागी की खेती करने वाले किसानों से समर्थन मूल्य के साथ अनुदान सहायता देते हुये 45 रुपये प्रति किलो की दर से उपार्जित करने जा रही है। जिससे रायगढ़ जिले में रागी की खेती से किसानों को अच्छा लाभ मिलेगा। उन्होंने अन्य किसानों को आग्रह किया कि वे भी कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली रागी फसल को लगायें। स्वयं पौष्टिक अन्न खायें तथा बिक्री कर अधिक लाभ कमायें।
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