Monday, December 8

बाबा भदेश्वर नाथ मंदिर अपने आप में एक युग का इतिहास समेटे हुए है। कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना रावण ने की थी। यहां पर अज्ञातवास के समय युधिष्ठिर ने पूजा की थी। वहीं, जब देश गोरों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, तब ब्रिटिश सेना मंदिर व उसके आसपास के क्षेत्रफल पर कब्जा करना चाहती थी, लेकिन दैवीय प्रकोप के चलते अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा। इन सब चर्चाओं को बस्ती जिले में रहने वाले अधिकांश शिवभक्तों से सुना जा सकता है।

बस्ती मंडल मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दूर कुआनो नदी के तट पर बाबा भदेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर स्थित है। इसकी भव्यता देखते ही बनती है। वैसे तो यहां पूरे साल शिवभक्तों के जल चढ़ाने का क्रम चलता रहता है, लेकिन सोमवार और सावन के महीने में तो यहां लाखों की संख्या में दूर-दूर से शिवभक्त आते हैं। कहते हैं कि यहां सच्ची श्रद्धा से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। इस मंदिर से कई रोचक तथ्य जुड़े हैं। कहा तो यह भी जाता है कि बाबा भदेश्वर नाथ मंदिर में एक ऐसा शिवलिंग है जिसे कोई भी भक्त अपने दोनों बांहों से घेर कर नही पकड़ सकता है।

लोगों की मान्यता है कि भक्त जब शिवलिंग को अपनी बांहों में लेना चाहते हैं तो आकार अपने आप बढ़ जाता है। पिछले कई सालों से शिवलिंग की बनावट में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि लोक मान्यताओं के अनुसार रावण हर रोज कैलाश जाकर भगवान शिव की पूजा करता था। वहां से एक शिवलिंग लेकर वापस लौटता था। उसी दौरान ये शिवलिंग भी रावण कैलाश से लेकर आया था।

वहीं, मान्यता है कि महाभारत काल में द्यूतक्रीड़ा में हारने के बाद अज्ञातवास के दौरान राजा युधीष्ठिर ने यहां शिवलिंग की स्थापना कर पूजा की थी। यह क्षेत्र वर्षों तक घने जंगलों से घिरा रहा। कहा जाता है कि ब्रिटिश कालीन सरकार मंदिर के आसपास के क्षेत्रफल पर कब्जा करना चाहती थी। मगर ब्रिटिश सेना को दैवीय आपदाओं के कारण इससे कदम पीछे खींचना पड़ा था। जन श्रुतियों के अनुसार मंदिर के शिवलिंग को चोरी करने का भी प्रयास किया गया था। कुछ चोरों ने शिवलिंग की खुदाई भी की, लेकिन काफी खुदाई के बाद भी जब शिवलिंग का अंत नहीं मिला। जिसके बाद वह भागने लगे तो उनके गाड़ी का पहिया वहीं धंस गया और पत्थर बन गया। इसे आज भी देखा जा सकता है।

अपने आप में कई पौराणिक कथाओं को समेटे बाबा भदेश्वरनाथ मंदिर पूरे मंडल की पहचान है। श्रावण मास में राम की नगरी अयोध्या से सरयू नदी का जल लेकर लाखों श्रद्धालु यहां जलाभिषेक करते हैं। इसके अतिरिक्त महाशिवरात्रि में भी यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। प्रत्येक सोमवार को भी श्रद्धालु इस मंदिर में सैकड़ों की संख्या में पूजा करने आते हैं। लोगों की मान्यता है कि यहां पर जलाभिषेक और पूजन अर्चन से मनोकामना पूर्ण होती है।

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