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रिटायर्ड डायमंड पर्सन ऑफ बालको: बालको संयंत्र जैसा खुशहाल जीवन शायद दूसरे संयंत्रों में नहीं- ताम्रध्वज वर्मा

रायपुर (मुकेश टिकरिहा)। जब भी देश की प्रगति की बात होती है तो छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के बालको प्लांट का जिक्र जरूर होता है और जिक्र तो होना ही चाहिये क्योंकि इस संयत्र से उत्पादित एल्युमिनियम धातु का उपयोग पृथ्वी एवं अग्रि प्रक्षेपयान में हुआ जो विश्व प्रसिद्ध हुआ है। छत्तीसगढ़ राज्य डॉट काम न्यूज पोर्टल बालको के तमाम अधिकारियों एवं कर्मचारियों का सम्मान करती है जिन्होंने अपने कार्यानुभव से संयत्र की प्रगति के साथ ही देश की प्रगति में अपना योगदान दे रहे है। हम बालको संयत्र के उन सेवानिवृत्त अधिकारियों-कर्मचारियों का भी सम्मान करते है जिनके कार्यानुभव से बालको संयत्र इस मुकाम पर पहुंचा है। हमारा न्यूज पोर्टल रिटायर्ड डायमंड पर्सन ऑफ बालको के नाम से नये कालम का प्रसारण किया जा रहा है, जिसमें बालको के सेवानिवृत्त अधिकारी-कर्मचारियों के साक्षात्कार (इंटरव्यूव) के जरिये उनके कार्यानुभवों को आपके समक्ष प्रस्तुत करेंगे।

तो आज हम रिटायर्ड पर्सन ऑफ बालको कालम की शुरूआत हम एक ऐसे पर्सन करने जा रहे जिनके कठिन परिश्रम एवं कार्यानुभव से बालको प्लांट एक नई पहचान दी। ऐसा ही एक नाम है श्री टीडी वर्मा, जो बालको से रिटायर्ड होने के बाद वर्तमान में बिलासपुर में निवास कर रहे है। उन्होंने बताया कि अतिश्योक्ति नहीं होगी, यदि मैं कहूँ कि बालको देश की शान है क्योंकि हमारे संयंत्र से उत्पादित एल्युमिनियम धातु का उपयोग पृथ्वी एवं अग्नि प्रक्षेपयान में हुआ है, जो विश्वप्रसिद्ध हुआ। हम बालको कर्मचारी को यह बहुत गौरवान्वित करने वाला पहल है। अपने अतीत के पन्नों को उलटते हुए उन्होंने बताया कि आज से 48 वर्ष पूर्व 18 नवम्बर 1972 को मैं ताम्रध्वज वर्मा (टीडी वर्मा) बालको परिवार से जुड़ा तथा 35 वर्षों की सेवा उपरान्त मैं 31 मार्च 2008 को सीनियर टेक्निकल ऑफिसर पद से सेवानिवृत्त हुआ। इन 35 वर्षों के सेवा में मैंने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। जब 1972 में बालको ज्वाइन किया तब एल्युमिना संयंत्र में उत्पादन आरंभ नहीं हुआ था। तब केवल संयंत्र में एक ही महाप्रबंधक डॉ तेज बहादुर सिंह और एक ही संयंत्र प्रबंधक रघुबीर प्रसाद लाठ थे। धीरे धीरे 1973 में उत्पादन प्रारम्भ हुआ, उस समय तक कर्मचारियों की संख्या मात्र 1500 के लगभग थी, जो बढ़कर धीरे से 8000 हो गया। एल्युमिना संयंत्र 2 लाख टन क्षमता वार्षिक और स्मैल्टर संयंत्र 1 लाख टन क्षमता वार्षिक उत्पादन के इर्द गिर्द चलने लगा। सन् 1972 से 2002 तक बालको संयंत्र भारत सरकार का उपक्रम था, किन्तु अकस्मात 2002 में 1 मार्च को केंद्र सरकार ने इसका 51 प्रतिशत शेयर स्टरलाईट नामक निजी संस्था को 551 करोड़ रुपए में बेच दिया। फलस्वरूप हमारा यह संयंत्र 49 प्रतिशत सरकारी और 51 प्रतिशत निजी संस्थान में बंट गया। इसका स्वामित्व नवीन अग्रवाल चैयरमैन स्टरलाईट के हाथों चला गया। वर्तमान स्टरलाईट वेदांता ग्रुप में कार्यरत है।
अपने 35 वर्षों के सेवा काल में प्राप्त सुविधाओं की एक झलक प्रस्तुत करता हूं-

  1. आवास सुविधा-80 प्रतिशत कर्मचारियों-अधिकारियों को सस्ते दर पर 7 सेक्टरों में ए, बी, सी, डी, इ, टाइप आवास की उत्तम सुविधा दी जाती है। जिसमें 12 रु. मासिक बिजली शुल्क एवं फ्री पानी की सप्लाई दी जाती है।
  2. शिक्षा- बालको में केंद्रीय विद्यालय, बाल सदन, बाल मंदिर, मिनी माता स्कूल के अलावा 2 शासकीय विद्यालय भी संचालित हैं।
  3. संयंत्र सुविधा-संयंत्र में कार्यरत कर्मचारियों को उनके पद के अनुरूप, आर.एल.टी, पेट्रोल सुविधा, वाहन तथा दो जोड़ी यूनिफार्म, 2 जोड़ी जूता वार्षिक तथा 4 नग धोने का साबुन मिलता है।
  4. बालको में प्रारंभ से कैंटीन की सुविधा रही है। 72-73 में 1 रुपए में भरपेट भोजन थाली तथा 10 पैसे में आलू गुंडा, समोसा जलेबी उपलब्ध थी। प्रत्येक कर्मचारी को रोज 2 पैकेट बिस्कुट और 1 कप चाय मिलता था। धीरे धीरे कम्पनी के विस्तार के साथ साथ सुविधाओं में और बढ़ोतरी हुई। आज सर्वसुविधा युक्त कैंटीन तीनों इकाइयों में उपलब्ध है।
    5.सुरक्षा संसाधन-किसी भी संयंत्र के लिए सुरक्षा संसाधन महत्वपूर्ण होता है। बालको की तीनों इकाइयों में बिना सुरक्षा उपकरण जैसे हेलमेट,चश्मा, जूता के संयंत्र में प्रवेश नहीं मिलता है।
  5. पर्यावरण सुरक्षा- चूँकि संयंत्र निर्माण से हजारों हरे भरे पेड़ कट गए अत: संयंत्र के आसपास पर्यावरण की सुरक्षा हेतु लाखो वृक्षारोपण किए गए हैं, जिससे सर्वत्र हरियाली की छटा दिखाई पड़ती है।
  6. सर्वधर्म सम्मान-बालको में प्रारम्भ से ही सभी धर्मों के पूजन स्थल, मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा हेतु जमीन उपलब्ध करवाए गए और निर्माण किया गया। सभी कर्मचारी आस्थानुसार पूजा अर्चना करते हैं।
    8.सांस्कृतिक कार्यक्रम-प्रतिवर्ष कर्मचारियों के परिवार के मनोरंजन के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
  7. खेलकूद-बालको का अपना स्पोर्ट्स स्टेडियम है, जहाँ फुटबॉल, हॉकी, क्रिकेट,वालीबाल,कबड्डी और अन्य खेलों के लिए समुचित व्यवस्था है। इनडोर गेम के लिए क्लब भी बनाया गया है।
  8. भूस्थापिता के कल्याण हेतु-बालको कल्याण विभाग, भूस्थापितों के लिए मानव संसाधन विभाग के सौजन्य से युवा वर्ग को रोजगार दिलाया गया है, जिसमें आस-पास के विस्थापित ग्रामीण युवक लाभान्वित हुए हैं।
  9. गांवों के विकास हेतु कार्यक्रम-बालको ने आस पास के गांवों को गोद लिया है, जिसमें परसाभाठा, मदरापारा, लालधार, दोन्द्रो, रूमगड़ा आदि प्रमुख है। यहाँ सड़क बिजली पानी आदि की सुविधा के अलावा स्कूल भवन आदि बनाये गए हैं।
    सन् 2002 का मार्च माह में निजीकरण घोषणा के तुरन्त बाद 67 दिन का हड़ताल विश्वप्रसिद्ध है जिसमें अधिकारी वर्ग संयंत्र में रह गए और कर्मचारी वर्ग संयंत्र के बाहर हड़ताल में रह गए थे। इसके बाद हजारों कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए।
    12.उत्पादन बोनस, वार्षिक बोनस एवं वेतन पुनरीक्षण-जैसा कि सभी संयंत्रों में यह प्रावधान होता ही है उसी प्रकार बालको में भी उत्पादन बोनस, वार्षिक बोनस प्रतिवर्ष मिलता है। प्रत्येक 5 वर्ष के अंतराल में वेतन पुनरीक्षण मान्यता प्राप्त मजदूर संघों के सानिध्य में होता है। बालको कर्मचारी मेरे समझ में अन्य संयंत्र की तुलना में बेहद खुशहाल मिलते हैं। सेवानिवृत्त साथियों से चर्चा पर पता चलता है, कि बालको संयंत्र जैसा खुशहाल जीवन शायद दूसरे संयंत्रों में नहीं है अथवा कम है। आज यहाँ मजदूर तक का वार्षिक बोनस 50 000 तक है। यद्यपि बालको में अब अल्युमिना और स्मेल्टर प्लांट बंद हो चुका है लेकिन वेदांता ने 540 मेगावॉट का अपना निजी विद्युत संयंत्र निर्माण कर लिया है। बालको देश की शान है।

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