Saturday, December 13

हिन्दी हमारी संस्कृति, इसके बिना विकसित भारत के निर्माण की परिकल्पना बेमानी
हिन्दी पखवाड़े के समापन पर कृषि विश्वविद्यालय में एक दिवसीय संगोश्ठी संपन्न
हिन्दी मात्र एक भाषा नही बल्कि यह हमारी संस्कृति है, संस्कार है, चेतना है और भारत की आत्मा है। हिन्दी के उपयोग के बिना विकसित भारत की परिकल्पना नहीं की जा सकती। विकसित भारत की निर्माण में हिन्दी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राजभाषा के साथ-साथ संपर्क तथा समन्वय की भाषा भी है और भारत के विभिन्न राज्यों को एक सूत्र में पिरोती है।

यह विचार इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में आज यहां हिन्दी पखवाड़ा 2025 के समापन के अवसर पर ‘‘विकसित भारत के निर्माण में हिन्दी की भूमिका’’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी में विद्वान वक्ताओं द्वारा व्यक्त किये गये। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल थे। विद्वान वक्ताओं के रूप में श्री शशांक शर्मा, अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी, डॉ. चितरंजन कर सेवानिवृत्त प्राध्यापक, भाषा विज्ञान, तथा श्री गिरीश पंकज, वरिष्ठ साहित्यकार थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में कृषि महाविद्यालय रायपुर की अधिष्ठाता डॉ. आरती गुहे उपस्थित थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ. संजय शर्मा ने की। इस अवसर पर विभिन्न साहित्यिक प्रतियोगिताओं विजेता रहे प्रतिभागियों को पुरस्कृत भी किया गया।


संगोष्ठी के मुख्य अतिथि कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि भारत के विकास में हिन्दी ने अहम योगदान दिया है। हिन्दी में शिक्षा देने से अधिक लोगों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला है। हिन्दी में शैक्षिक सामग्री और संसाधनों की उपलब्धता से विद्यार्थियों को अपनी मात्र भाषा में सीखने का अवसर मिल सकता है जिससे उन्हे ज्ञान प्राप्ति में आसानी होगी। हिन्दी एक साझा भाषा के रूप में देश के विभिन्न राज्यों के लोगों को जोड़ने में मदद कर सकती है जिससे आपसी संचार और एकता में आसानी होगी। भारत की समृद्ध सांस्कृत विरासत को संरक्षित और प्रसारित करने में हिन्दी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसी तरह हिन्दी में व्यवसाय और व्यापार को बढ़ावा देने से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत किया जा सकता है और रोजगार के अवसर पैदा किये जा सकते है।


विद्वान वक्ता के रूप में डॉ. चितरंजन कर ने कहा कि हिन्दी राजभाषा के साथ-साथ भारत की सामाजिक – सांस्कृतिक संपर्क भाषा भी है। यह हमारी संस्कृति है, अस्मिता है। उन्होनें कहा कि हिन्दी जनसंख्या के आधार पर विश्व में दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। आज भारत के अलावा दुनिया के अन्य कई देशों में भी हिन्दी बोली और पढ़ी जा रही है। जिस दिन हमारे देश वासियों में हिन्दी के प्रति गौरव की चेतना का विकास हो जाएगा, भारत तब एक विकसित देश के रूप में पहचान बना लेगा। वरिष्ठ साहित्यकार श्री गिरीश पंकज ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि हिन्दी पूरी दुनिया में फैल रही है लेकिन दुर्भाग्य है कि भारत में सिमटती जा रही है। इसका मुख्य कारण हम लोगों में राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रगौरव के भावना में कमी है। श्री पंकज ने कहा कि उन्होने दुनिया के अनेक देशों की यात्राऐं की है जहां उन्होने बड़ी संख्या में लोगों को हिन्दी बोलते और पढ़ते हुए देखा है खासकर मॉरीशस, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनीडाड तथा अनेक यूरोपीय देशो में। उन्होने कहा कि हिन्दी में वैश्विक संपर्क भाषा बनने की क्षमता है।


छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री शशांक शर्मा ने कहा कि देश की स्वतंत्रता के उपरांत दो साल ग्यारह महिनों तक चली संविधान सभा की बैठकों में काफी अंतर्द्वदों के पश्चात हिन्दी को राजभाषा के रूप में मान्यता प्रदान की गई लेकिन आज भी हिन्दी के महत्व को रेखांकित करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। यह अच्छी बात है कि नवीन शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषा में शिक्षा देने पर जोर दिया गया है। उन्होने कहा कि स्वतंत्रता के पश्चात देश के विकास और इसे एकजुट बनाए रखने हिन्दी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। श्री शर्मा ने कहा कि हिन्दी के बिना विकसित भारत की निर्माण की परिकल्पना नहीं की जा सकती। भारत के सतत, स्थायी और समावेशी विकास में हिन्दी का योगदान महत्वपूर्ण होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ. संजय शर्मा ने स्वागत भाषण दिया तथा संगोष्ठी की रूप रेखा प्रतिपादित की। आयोजन सचिव एवं प्रभारी राजभाषा प्रकोष्ठ के प्रभारी श्री संजय नैयर ने अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. राकेश बनवासी ने किया। इस अवसर पर कृषि विश्वविद्यालय प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी, प्राध्यापकगण, कर्मचारीगण तथा बड़ी संख्या में छात्र-छात्राऐं उपस्थित थे।

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