ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल बच्चों के लिए हानिकारक साबित हो रहा है। ऑनलाइन होमवर्क क्लास के बहाने बच्चे मोबाइल पर गेम खेलने में ज्यादा समय गंवा रहे हैं, इससे उनके मानसिक व शारीरिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। नैदानिक मनोवैज्ञानिक ज्योति शर्मा ने बताया कि धर्मशाला जोनल अस्पताल में नई दिशा केंद्र (एनडीके) ओपीडी में इन्हीं लक्षणों के साथ अभिभावक अपने बच्चों को उपचार के लिए लेकर आ रहे हैं।
काउंसिलिंग में सामने आ रहा है कि बच्चे तीन से चार घंटे तक मोबाइल चला रहे हैं और फीजिकल गेम न के बराबर खेली जा रही है। कई बार बच्चे ज्यादा जिद करते हैं या रोते हैं तो उन्हें चुप कराने के लिए माता-पिता उन्हें मोबाइल थमा देते हैं। इससे तत्काल तो बच्चा शांत हो जाता है, लेकिन इसके कई गंभीर परिणाम सामने आए हैं। बच्चों के विकास में रुकावट का सबसे बड़ा कारण मोबाइल फोन बना हुआ है। बच्चे समय पर बोलना नहीं सीख पा रहे हैं और यहां तक कि घंटों स्क्रीन पर रहने चिड़चिड़ापन आ रहा है। बात-बात पर गुस्सा भी आ रहा है। बता दें कि कोरोना महामारी के बाद धर्मशाला जोनल अस्पताल में नई दिशा केंद्र (एनडीके)ओपीडी में बच्चों से संबंधित केस भी बढ़े हैं। उन्होंने बताया कि मानसिक रूप से बीमार होने का सबसे बड़ा कारण ये भी है कि मां-बाप बच्चों को समय नहीं दे रहे है। (एचडीएम)
बच्चों और युवाओं को वर्चुअल दुनिया से बाहर निकालना जरूरी
जोनल अस्पताल में नैदानिक मनोवैज्ञानिक ज्योति शर्मा ने बताया कि बच्चे को लेकर आए अभिभावक ने बताया कि उनका बेटा बात-बात पर गुस्सा करता है और चिड़चिड़ापन आ गया है। बेटा बिना फोन के खाना नहीं खाता है और कई घंटे लगातार मोबाइल चलाता है। फोन न देने पर खाना छोड़ देता है। मोबाइल फोन का ज्यादा प्रयोग बच्चों की ग्रोथ पर असर डाल रहा है। मां-बाप का व्यस्त रहना और बच्चों को समय न देना भी बच्चे का विकास न कर पाने में एक कारण है। उन्होंने बताया कि बच्चे गेम, वीडियो और ऐप पर उपलब्ध वर्चुअल दुनिया में जी रहे हैैं। उन्हें इससे निकालना जरूरी है। इसके लिए माता-पिता व घर के अन्य सदस्य बच्चों के साथ समय बिताएं। उनसे बात करें, विविध विषयों की नई-नई जानकारियां दें।
मोबाइल की आदत से आंखें गंवा रहे बच्चे
हिमाचल की पहली फीमेल एमसीएच स्पेशलिस्ट डाक्टर मनु शर्मा ने बताया कि मोबाइल फोन की लत बच्चों के जीवन को खतरे में डाल रही है। इससे आंखों की कोशिकाएं सूख रही हैं और बच्चों की आंखों और पुतिलयों का आकार घट-बढ़ रहा है, जिससे बच्चे आंखों की रोशनी गंवा रहे हैं। घरों में मोबाइल और लैपटॉप पर बच्चों का समय अधिक बीत रहा है। मोबाइल और लैपटॉप की रोशनी रेटिना पर ऐसा असर डाल रही है कि आंखों के अंदर की कोशिकाएं सूखने लगती हैं। इसकी वजह से बच्चे आंखों की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
बच्चों के भविष्य पर दांव
मनोवैज्ञानिक ज्योति शर्मा बोलीं मोबाइल बिगाड़ रहा बच्चों की आदतें, ग्रोथ पर भी असर
धर्मशाला अस्पताल में एनडीके ओपीडी में फोन की लत से संबंधित बढ़ रहे केस
मोबाइल स्क्रीन से हो रही आंखों में जलन
जोनल अस्पताल धर्मशाला में नेत्र रोग विशेषज्ञ डाक्टर सलेंद्र मिंहास के मुताबिक मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से आंखें सीधे प्रभावित होती है, जिससे बच्चों को कम उम्र में नजर कम होना, चश्मा लगना या नंबर बढऩा, आंखों में जलन, सूखापन एवं थकान इत्यादि की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्रतिदिन औसतन 25 से 30 बच्चें आंखों के उपचार के लिए जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं।