उच्चतम न्यायालय ने लोन पर मोरेटोरियम लेने वाले लोगों के लिए ब्याज पर ब्याज के मामले में सुनवाई 18 नवंबर तक के लिए टाल दी है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के किसी अन्य मामले में व्यस्त होने के कारण सुनवाई टाली गई। दलीलें एक मार्च से 31 अगस्त के दौरान आरबीआई की ऋण स्थगन योजना का लाभ उठाने के बाद उधारकर्ताओं द्वारा भुगतान नहीं किए गए ईएमआई पर बैंकों द्वारा ब्याज पर शुल्क लगाने से संबंधित हैं। मामले में रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय अलग-अलग हलफनामा दायर कर चुके हैं। मंत्रालय और आरबीआई ने कोर्ट को बताया है कि बैंकों व वित्तीय संस्थाओं को पांच नवंबर तक कर्जदारों के खाते में चक्रवृद्धि ब्याज और सामान्य ब्याज के बीच अंतर की राशि को जमा करा दिया जाएगा। हाल ही में केंद्र सरकार ने लोन के ब्याज पर ब्याज माफी संबंधी दिशानिर्देशों को मंजूरी दे दी थी। जिन कर्जदारों के ऊपर 29 फरवरी 2020 तक कुल ऋण दो करोड़ रुपये से अधिक नहीं था, वे सभी योजना का लाभ उठाने के लिए पात्र होंगे। यानी यह राहत सभी कर्जदारों को मिलेगी, चाहे उन्होंने किस्त भुगतान से छह महीने की दी गई छूट का लाभ उठाया हो, या नहीं। जिन ग्राहकों ने मोरेटोरियम का लाभ नहीं उठाया था, उन्हें भी बैंक से कैशबैक मिलेगा। इस योजना के तहत आवास ऋण, शिक्षा ऋण, क्रेडिट कार्ड बकाया, वाहन कर्ज और रूस्रूश्व के लिए लिया गया कर्ज और खपत के लिए लिया ऋण कवर होगा। दो करोड़ रुपये तक के ऋण वाले छोटे व्यवसायों और व्यक्तिगत उधारकर्ताओं को यह भुगतान किया जाएगा।
क्या है मामला?
दरअसल, मोरेटोरियम अवधि के ईएमआई के भुगतान को लेकर कई सवाल उठे हैं। सुप्रीम कोर्ट में ब्याज पर ब्याज का मामला पहुंचा। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में कहा कि वह मोरेटोरियम अवधि (मार्च से अगस्त तक) के दौरान ब्याज पर ब्याज को माफ करने के लिए तैयार हो गई है। सरकार के सूत्रों ने ब्याज की माफी की लागत करीब 6,500 करोड़ रुपये आंकी थी। शीर्ष अदालत ने 14 अक्तूबर को केंद्र को निर्देश दिया था कि वह कोविड-19 महामारी के मद्देनजर रिजर्व बैंक की किस्तों के भुगतान से छूट की योजना के तहत दो करोड़ रुपये तक के कर्ज पर ब्याज माफ करने के बारे में शीघ्र निर्णय ले।