गुजरात में विधानसभा चुनाव चल रहा है। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में वहां की भाजपा सरकार ने धर्मांतरण रोकने के लिए बनाए अपने कानून पर स्टे का मुद्दा उठाया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जबरन धर्मांतरण को बहुत गंभीर मुद्दा बताया था। कोर्ट ने आगाह करते हुए कहा था कि जबरन धर्मांतरण नहीं रोका गया तो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो सकता है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह इसे रोकने के लिए कदम उठाए और गंभीर प्रयास करे। अब गुजरात सरकार ने SC से अपने धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 की धारा 5 पर हाई कोर्ट का स्टे हटाने का आग्रह किया है। इसमें शादी करके धर्मांतरण के लिए जिलाधिकारी की अनुमति को अनिवार्य किया गया है। एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की PIL पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एम आर शाह की अध्यक्षता वाली पीठ ने 14 नवंबर को कहा था, ‘सरकार प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताए। यह एक बहुत ही गंभीर मामला है… हमें बताएं कि इस तरह के जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए आप क्या कार्रवाई कर सकते हैं… आपको हस्तक्षेप करना होगा।’
धर्मांतरण पर गुजरात सरकार का तर्क – केंद्र की ओर से शुरुआती जवाब में सुप्रीम कोर्ट से कहा गया कि धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में दूसरे लोगों को धर्म विशेष में धर्मांतरित कराने का अधिकार शामिल नहीं है। यह निश्चित रूप से किसी व्यक्ति को धोखाधड़ी, धोखे, जबरदस्ती या प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण कराने का अधिकार नहीं देता है। इसी लाइन पर गुजरात सरकार ने अपनी वकील स्वाती घिल्डियाल के जरिए कहा कि राज्य के 18 साल पुराने कानून को जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसने कई प्रावधानों पर स्टे लगा दिया। इसमें धारा 5 भी शामिल है जिसमें शादी करके धर्मांतरण के लिए जिलाधिकारी से पूर्व अनुमति लेने को अनिवार्य किया गया है।
गुजरात में DM वाला रूल क्यों? – राज्य ने तर्क रखा, ‘पूर्व अनुमति (डीएम) के नियम से जबरन धर्मांतरण को रोका जा सकता है और नागरिकों की अपनी मर्जी की स्वतंत्रता की रक्षा की जा सकती है। ये कदम एक तरह से एहतियाती है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यक्ति के एक धर्म को छोड़कर दूसरे को अपनाने की प्रक्रिया वास्तविक, स्वैच्छिक है और वह किसी भी प्रकार के दबाव, प्रलोभन और छल से मुक्त है।’
छल, बल और लालच– विधानसभा चुनाव के बीच केंद्र के रुख को स्वीकार करते हुए राज्य ने कहा धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में किसी व्यक्ति को छल, बल या प्रलोभन से दूसरे धर्म में कन्वर्ट कराने का अधिकार शामिल नहीं है। केंद्र सरकार के हलफनामे से एक पैराग्राफ लेते हुए राज्य ने कहा, ‘संविधान के आर्टिकल 25 के तहत आने वाले ‘प्रसार’ (Propagate) शब्द के मायने पर संविधान सभा में विस्तार से बहस और चर्चा हुई थी। इस शब्द को तभी शामिल किया गया जब इस पर हर चीजें स्पष्ट हो गईं कि आर्टिकल 25 के तहत मौलिक अधिकार में धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं है।’