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गरियाबंद के में 36 परिवारों के 175 सदस्यों का सामाजिक बहिष्कार अनुचित-डॉ दिनेश मिश्र

सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ सक्षम कानून बने

रायपुर। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्र ने बताया गरियाबंद के पीपरछेड़ी के अन्तर्गत ग्राम फुलकर्रा के 36 ग्रामीण परिवारों का बहिष्कार कर हुक्का-पानी बंद कर दिया गया है। जो अनुचित है, सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ विधानसभा में सक्षम कानून बनाने की आवश्यकता है.
डॉ दिनेश मिश्र ने बताया पीड़ित परिवार ने जानकारी दी है कि उनके खिलाफ ग्राम कोसमबुडा में पंचायत बैठाकर हुक्का-पानी बंद कर दिया। साथ ही गांव के लोगों को चेतावनी देते हुए चेताया गया कि इनके परिवार वालों से कोई भी बातचीत करेगा उसे जुर्माना देना होगा, और यदि कोई उनके घर जाता है तो उसे भी जुर्माना लगाया जाएगा। ऐसे में अब इन परिवारों से लोगों ने दूरी बना ली है कोई इस परिवारों के दु:ख सुख में कोई शामिल नहीं होगा फिरतु राम कंवर, रामकुमार कंवर का पूरा परिवार अलग-थलग पड़ गया है.मामले की शिकायत थाना पीपरछेड़ी, एवं पुलिस अधीक्षक गरियाबंद से अलग अलग की जा चुकी है,पर इस सम्बंध में कोई कानून न होने से सक्षम कार्यवाही नही हो पायी है. अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि,हमारे यहाँ सामाजिक और जातिगत स्तर पर सक्रिय पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार के मामले लगातार सामने आते रहते हैं। ग्रामीण अँचल में ऐसी घटनाएँ बहुतायत से होती है जिसमें जाति व समाज से बाहर विवाह करने, समाज के मुखिया का कहना न मानने, पंचायतों के मनमाने फरमान व फैसलों को सिर झुकाकर न पालन करने पर किसी व्यक्ति या उसके पूरे परिवार को समाज व जाति से बहिष्कार कर दिया जाता है व उसका समाज में हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है। कुछ मामलों में तो स्वच्छता मित्र बनने पर, तो कहीं आर.टी.आई. लगाने पर भी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है। पूरे प्रदेश में 30 हजार से अधिक व्यक्ति सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति के शिकार हैं। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति सामाजिक बहिष्कार जैसी सामाजिक कुरीति के खिलाफ जनजागरण एवं प्रताडि़त लोगों की मदद के लिए पिछले कुछ वर्षों से लगातार कार्य कर रही है,और कुछ परिवारों का बहिष्कार समाप्त करने में सफल भी हुई है,पर बहिष्कृत परिवारों की संख्या बहुत अधिक है और उनका पुन: समाज में शामिल होना, पुनर्वास के लिए एक सक्षम कानून की आवश्यकता है आगामी विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ कानून बनाने की मांग की है। इसी परिप्रेक्ष्य में ज्ञात हो, महाराष्ट्र विधानसभा में सभी सदस्यो ने सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम के संबंध में महत्वपूर्ण कानून को बिना किसी विरोध के सर्वसम्मति से 11 अप्रैल 2016 को पारित कर दिया तथा 20 जून 2017 को माननीय राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिलने के बाद 3 जुलाई 2017 से पूरे महाराष्ट्र में लागू कर दिया गया। इसी प्रकार हमारे प्रदेश में भी सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम की महती आवश्यकता महसूस की जा रही है। डॉ. मिश्र ने कहा कि सामाजिकक बहिष्कार होने से दंडित व्यक्ति व उसका परिवार गाँव में बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है। पूरे गाँव-समाज में कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत परिवार से न ही ककोई बातचीत करता है और न ही उससे किसी प्रकार का व्यवहार रखता है। उस बहिष्कृत परिवार को हैन्ड पम्प से पानी लेने, तालाब में नहाने व निस्तार करने, सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने, पंगत में साथ बैठने की मनाही हो जाती है। यहाँ तक उसे गाँव में किराना दुकान में सामान खरीदने, मजदूरी करने, नाई, शादी-ब्याह जैसे सामाजिक सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी शामिल होने से वंचित कर दिया जाता है जिसके कारण वह परिवार गाँव में अत्यंत अपमानजनक स्थिति में पहुँच जाता है तथा गाँव में रहना मुश्किल हो जाता है। सामाजिक पंचायतें कभी-कभी सामाजिक बहिष्कार हटाने के लिए भारी जुर्माना, अनाज, शारीरिक दंड व गाँव छोडऩे जैसे फरमान जारी कर देती है। डॉ. मिश्र ने आगे कहा कि सामाजिक बहिष्कार के कारण विभिन्न स्थानों से आत्महत्या, हत्या, प्रताडऩा व पलायन की खबरें लगातार समाचार पत्रों में आती रहती है। इस संबंध में अब तक कोई सक्षम कानून नहीं बन पाया है इसलिए ऐसे मामलों में कोई उचित कार्यवाही नहीं हो पाती है न ही रोकथाम का कोई प्रयास होता है। सामाजिक बहिष्कार के मामलों के आँकड़े को लेकर नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो, राज्य सरकार, पुलिस विभाग के पास कोई अब तक रिकार्ड जानकारी नहीं है ऐसी जानकारी सूचना केअधिकार के अंतर्गत प्राप्त हुई है। जबकि ऐसी घटनाएँ लगातार होती है। इस संबंध में सामाजिकक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम को विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार के संबंध में सक्षम कानून बनाने के लिए पहल करें ताकि अनेक प्रताडि़तों को न्याय मिल सके।

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