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आखिर नेपाल क्यों बनाना चाह रहा है श्री पशुपति हिंदू विश्वविद्यालय

हिंदू धर्म के अनुसंधान और सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नेपाल की पुष्प कमल दाहाल प्रचंड सरकार ‘श्री पशुपति हिंदू विश्वविद्यालय’ की स्थापना की ज़रूरत के लिए अध्ययन की शुरुआत कर चुकी है. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के विश्वविद्यालय की स्थापना पर्याप्त तैयारी के बिना नहीं की जानी चाहिए.केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री सुदन किराती धर्मनिरपेक्षता की वकालत करते हैं उन्होंने विश्वविद्यालय की ज़रूरत का अध्ययन करने के लिए एक समिति का गठन किया है. किराती की पहचान यह है कि वो माओवादी पार्टी में कट्टरपंथी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं और पहली बार मंत्री बनाए गए हैं.

सरकार ने जो समिति बनाई है, वो विश्वविद्यालय को लेकर काम कर रही है लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय के तहत हिंदू धर्म और वैदिक संस्कृति के अध्ययन और शोध को आगे बढ़ाया जा सकता था.

विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए अध्ययन – नेपाल में 80 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी हिंदू है. माओवादी आंदोलन के बाद नेपाल एक हिंदू प्रभुत्व राजशाही से एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य में बदल गया था. जिसके बाद कुछ विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के नाम बदल दिए गए. माओवादी पार्टी के अध्यक्ष प्रचंड तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं. उनकी सरकार के पर्यटन मंत्री किराती ने प्रोफ़ेसर डॉ. जगमन गुरुंग की अध्यक्षता वाली एक समिति को ‘पशुपति हिंदू विश्वविद्यालय’ की स्थापना की ज़रूरत के अध्ययन की ज़िम्मेदारी दी है. पर्यटन मंत्रालय के प्रवक्ता राजेंद्र कुमार केसी ने कहा, “उन्होंने हमें दो हफ्ते पहले बताया कि हमने अब तक इतना काम किया है. पशुपति हिंदू विश्वविद्यालय की अवधारणा क्या है, कैसे आगे बढ़ना है, इसमें कौन से विषय पढ़ाए जाएंगे, इसकी पूरी रिपोर्ट अभी बाकी है.” केसी के मुताबिक़, स्टडी रिपोर्ट के सामने आने के बाद मिनिस्ट्री ‘उचित’ फ़ैसला लेगी.

‘मज़बूत होगी सांस्कृतिक कूटनीति’ – कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम में मंत्री किराती ने कहा था कि उनका मानना है कि ‘पशुपति हिंदू विश्वविद्यालय’ शिक्षा और पर्यटन जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देगा. उन्होंने कहा, “धर्मनिरपेक्ष देश में सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है. आज तक हम विदेशी चीज़ों की तलाश करते रहे हैं, लेकिन हमें कुछ भी स्वदेशी नहीं मिला है. हम अपने विश्वासों, मूल्यों और शैलियों का स्थानीयकरण नहीं कर सके.”

उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य पूरी दुनिया में बुद्धिजीवियों को तैयार करना है. यह सांस्कृतिक कूटनीति को मज़बूत करने का एक साधन भी है.” संयोजक डॉ. गुरुंग ने कहा कि नेपाल साधना के लिए सर्वोत्तम जगह है और नया विश्वविद्यालय नेपाल की मूल विशेषताओं वाले पाठ्यक्रमों को शामिल करके आगे बढ़ेगा. उन्होंने कहा, “दुनियाभर से लोग इस विश्वविद्यालय में दर्शन और नेपाल का अध्ययन करने आएंगे. हमने नेपाल से जुड़े विषयों के अध्ययन और शोध की बात कही है.”

उन्होंने कहा, “दुनियाभर में गायब हो गए शुरुआती वज्रयान बौद्ध धर्म, मुंढुम किरात धर्म जो दुनिया में और कहीं नहीं बचा है, जैसे धर्मों के बारे में बताया जाएगा. साथ ही गुरुंग जनजातीय समुदाय की बॉन परंपरा के बारे में बताएंगे जो नेपाल में भी लुप्त हो चुकी है. हम नेपाल की अन्य सांस्कृतिक विरासत, चेपांग और राउते जैसे समुदायों के जीवन दर्शन के बारे में पढ़ाएंगे.”

उन्होंने विस्तार से बताया कि नेपाल एक उच्च श्रेणी के पूर्वी दर्शन और साधना के अध्ययन के लिए एक उपयुक्त स्थान है. उन्होंने कहा कि ‘पशुपतिनाथ हिंदू विश्वविद्यालय’ के संचालन की वित्तीय ज़िम्मेदारी एक चुनौती नहीं होगी.

संसाधन जुटाना मुश्किल – वर्तमान में नेपाल में एक दर्जन से अधिक विश्वविद्यालय चल रहे हैं जबकि प्रांतीय सरकारें कुछ नए विश्वविद्यालयों की स्थापना की दिशा में आगे बढ़ रही हैं. नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय धर्म और संस्कृति पर ध्यान केंद्रित कर रहा है तो वही लुंबिनी बौद्ध विश्वविद्यालय और राजर्षि जनक विश्वविद्यालयों में भी अब काम चल रहा है. काठमांडू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. सुरेशराज शर्मा का कहना है कि नया विश्वविद्यालय स्थापित करना आसान नहीं होगा.

उन्होंने बीबीसी से कहा, “नेपाल में एक संस्कृत यूनिवर्सिटी है. लेकिन वह भी काम नहीं कर सकती अगर सरकार उसे आर्थिक रूप से समर्थन नहीं देती है. त्रिभुवन विश्वविद्यालय का आर्थिक बोझ भी सरकार ने ढोया है.”

उन्होंने कहा कि आर्थिक सहायता या अन्य स्रोतों से पैसा मिलने पर धर्म से संबंधित शैक्षिक उद्देश्यों के लिए विश्वविद्यालय स्थापित करना आसान होगा. पूर्व कुलपति शर्मा कहते हैं, ”कॉलेज शुरू करना और उसे यूनिवर्सिटी बनाना बेहतर है. लेकिन एक बार में यूनिवर्सिटी खोलने से उनकी ज़िम्मेदारियां बढ़ जाती हैं. मुझे नहीं लगता कि यह इतना आसान है.”

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कई देशों में विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम धन, भूमि और बुनियादी ढांचा तय किया जाता है.

उन्होंने कहा कि सभी संभावनाओं को देखकर ही विश्वविद्यालय की स्थापना की जानी चाहिए.मंदिर

हिंदू दर्शन का अध्ययन करने का स्थान कहाँ है? – नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति कुल प्रसाद कोइराला का कहना है कि उन्हें पशुपति हिंदू विश्वविद्यालय खोलने की कोई संभावना नज़र नहीं आती.

उन्होंने कहा, ”अब ग़लत तरीके से विश्वविद्यालय खोलने को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय के भीतर संस्कृत के 12 मुख्य विषय हैं. 24 बनाने के लिए 12 और आधुनिक विषय जोड़े जा सकते हैं. एक शैली विकसित करने के लिए एक समान शैली को दूसरी समान शैली के साथ विलय करना है.”उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि पर्याप्त योजना और अध्ययन के बिना स्थापित विश्वविद्यालय नेपाल जैसे देश के लिए सफ़ेद हाथी बन जाएंगे.

वो कहते हैं, “मेरी राय में अलग से बौद्ध विश्वविद्यालय स्थापित करना आवश्यक नहीं था क्योंकि नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय में एक विभाग खोलकर बौद्ध दर्शन पढ़ाया जा सकता था. अब योगमाया आयुर्वेद विश्वविद्यालय खोलने की बात चल रही है, संस्कृत विभाग में आचार्य तक आठ प्रकार के योगों का अध्ययन किया जाता है. विद्वानों को अध्ययन करवाकर संस्कृत विश्वविद्यालय की एक शाखा के रूप में हिंदू धर्म के अध्ययन और शोध पर बल देना उचित होता.”

हिंदू राष्ट्र की मांग -काठमांडू में वाल्मीकि विद्यापीठ की एक प्रोफेसर प्रियंवदा आचार्य काफले ने टिप्पणी की कि वह पशुपतिनाथ हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे के उद्देश्य और कारण को नहीं समझती हैं.

वे कहती हैं, ”त्रिभुवन यूनिवर्सिटी के तहत अगर आप संस्कृति की पढ़ाई करते हैं तो पशुपतिनाथ और अन्य विषय पढ़ाए जाते हैं. चूंकि हिंदुओं की एक बड़ी आबादी है, इसलिए हमारे देश में सब कुछ हिंदूमय है. इसलिए दिखावे के बारे में बात करने के बजाय, हमें उन बुनियादी ढांचे का निर्माण करना चाहिए जो धर्म और संस्कृति में विश्वास रखने वाले लोगों का समर्थन करते हैं.”

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि तीर्थयात्रियों के लिए धर्मशाला, रसोई जैसे बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जाना चाहिए. सरकारी अधिकारी विश्वविद्यालय स्थापित करने को नए अध्ययन के लिए बेहद गंभीर तरीक़े से होम वर्क कर रहे हैं. वहीं नेपाल में, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल जैसी पार्टियां मांग कर रही हैं कि देश को एक हिंदू राष्ट्र के रूप में बहाल किया जाना चाहिए.

भारत-नेपाल धार्मिक कूटनीति – हाल के दिनों में नेपाल के पड़ोसी देश भारत में हिंदू राजनीति की जड़ें गहरी होती जा रही हैं. दोनों देशों के अधिकारी ‘रामायण सर्किट’ समेत धार्मिक पर्यटन पर ज़ोर दे रहे हैं. भारत का हिंदू समुदाय पशुपतिनाथ के प्रति उच्च सम्मान दिखाता है. पशुपतिनाथ के अलावा, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुक्तिनाथ और जनकपुरधाम का दौरा किया है.

कई नेपाली धार्मिक शिक्षा के लिए भारत में बनारस सहित विभिन्न जगहों पर जाते हैं. इसी तरह भारतीय नेपाल को धार्मिक पर्यटन और अनुसंधान की जगह के तौर पर स्थापित कर रहे हैं. कुछ जानकारों का विश्लेषण है कि हिंदू विश्वविद्यालय स्थापित होने पर इस तरह के आदान-प्रदान का और विस्तार हो सकता है.

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