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डरने की जरूरत नहीं! वैज्ञानिकों को मिल गया कोरोना वायरस का ‘काल’

भारत समेत पूरी दुनिया में कोरोना एक बार फिर पैर पसारने लगा है.देश के कई राज्यों में कोरोना के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है. एक्सपर्ट्स ने लोगों से मास्क पहनने, वैक्सीन लगवाने और कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करने को कहा है. इस बीच अमेरिका में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे एंटीबॉडी की खोज की है, जो ओमिक्रॉन समेत कोविड-19 का कारण बनने वाले वायरस के सभी अहम वेरिएंट्स को फैलने से रोकता है. इस खोज से ज्यादा ताकतवर वैक्सीन और नए एंटीबॉडी बेस्ड ट्रीटमेंट हो सकते हैं.

जर्नल ऑफ क्लिनिकल इन्वेस्टिगेशन में छपी एक स्टडी में विस्कॉन्सिन-मैडिसन यूनिवर्सिटी में वेइल कॉर्नेल मेडिसिन के सीनियर राइटर डॉ. पैट्रिक विल्सन और उनके सहयोगियों ने महामारी के दौरान उभरे वायरस के सीरियल वर्जन्स के खिलाफ मरीजों के ब्लड सैंपल्स से मिले एंटीबॉडी की जांच की.

ये प्रोटीन कर सकता है मुकाबला – इन प्रोटीनों में से एक है एस728-1157. यह न केवल पुराने वेरिएंट्स बल्कि ओमिक्रॉन के सात सब-वेरिएंट्स को बेअसर करने में काफी असरदार साबित हुआ. टीम में स्क्रिप्स रिसर्च और शिकागो यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स भी शामिल थे. डॉ. विल्सन ने कहा, महामारी खत्म हो रही है, लेकिन वायरस लंबे समय तक रहेगा. अगर इसे अच्छी तरह से कंट्रोल नहीं किया गया तो यह सालाना महामारी का कारण बन सकता है. उन्होंने कहा, यह एंटीबॉडी और इससे मिलने वाले इनसाइट्स से हमें कोविड-19 के मामलों में सालाना उछाल या किसी अन्य कोरोनोवायरस महामारी से बचने में मदद मिल सकती है.

टेस्ट में क्या आया सामने – डॉ. विल्सन की टीम ने उन एंटीबॉडी पैदा करने वाले सेल्स का विश्लेषण किया, जो वायरस के स्पाइक प्रोटीन से चिपकी हुई थीं, जिसका इस्तेमाल यह ह्यूमन सेल्स में जाने के लिए करता है. एक अन्य रिसर्च लेखक डॉ. सिरिरुक चांगरोब ने वायरस के मूल वेरिएंट सहित सार्स-कोव-2 के 12 वेरिएंट के खिलाफ पाए गए एंटीबॉडी का टेस्ट किया. एस728-1157 के नाम से मशहूर एंटीबॉडी ओमिक्रॉन से मुकाबला कर सकता है.

नतीजे बताते हैं कि एस728-1157 पारंपरिक एंटीबॉडी बेस्ड इलाज के लिए एक बहुत जरूरी विकल्प का आधार बन सकता है. रिसर्च में कहा गया कि रिसर्च नए टीकों के डिजाइन को भी डायरेक्ट कर सकता है, जो स्पाइक प्रोटीन पर भरोसा करते हैं, ताकि एंटीबॉडी को और बढ़ाया जा सके.

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