देश में सेना की वर्दी बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले चीनी और अन्य विदेशी कपड़े (फेब्रिक) की जगह इस्तेमाल के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) भारतीय कपड़ा उद्योग को धागे के उत्पादन में मदद कर रहा है। इससे इस क्षेत्र में आयात पर निर्भरता घटाने में मदद मिलेगी। डीआरडीओ में डायरेक्टोरेट आफ इंडस्ट्री इंटरफेस एंड टेक्नोलाजी मैनेजमेंट (डीआइआइटीएम) के निदेशक डा. मयंक द्विवेदी ने बताया कि भारतीय सेना की गर्मियों की वर्दी के लिए ही करीब 55 लाख मीटर कपड़े की जरूरत होती है और अगर नौसेना, वायुसेना और अर्धसैनिक बलों की सभी जरूरतों को जोड़ लिया जाए तो यह जरूरत प्रतिवर्ष 1.5 करोड़ मीटर से ऊपर पहुंच जाती है। देश में सैन्य वर्दी बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चीनी और अन्य विदेशी कपड़ों की जगह लेने के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन भारतीय कपड़ा उद्योगों की मदद कर रहा है जो इस क्षेत्र में आयात पर निर्भरता को खत्म करने में मदद करेगा। उन्होंने कहा, हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान का अनुसरण कर रहे हैं, खासकर रक्षा उत्पादों के मामले में। अगर सशस्त्र बलों के लिए वर्दी बनाने के मकसद से इन धागों और कपड़ों का उत्पादन भारत में हो तो यह बड़ी उपलब्धि होगी क्योंकि इससे हमें आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम आगे बढऩे में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि उन्नत कपड़ों का इस्तेमाल पैराशूट और बुलेटप्रूफ जैकेटों की भविष्य की जरूरतों के लिए भी किया जा सकता है। डा. द्विवेदी ने कहा कि रक्षा क्षेत्र में ग्लास फैब्रिक, कार्बन फेब्रिक, अरामिड फेब्रिक और एडवांस सिरेमिक फेब्रिक जैसे टेक्निकल टेक्सटाइल की काफी संभावना है। अहमदाबाद और सूरत में कुछ उद्योग रक्षा क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले उन्नत कपड़ों का उत्पादन कर भी रहे हैं। बता दें कि सेना के 50 लाख से अधिक जवानों के लिए हर साल 5 करोड़ मीटर से अधिक के कपड़ों की आवश्यकता होती है। गुजरात में सितंबर में हुई एक वर्चुअल बैठक में सूरत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री से अनुरोध किया गया था कि वह देश की तीन सेनाओं सहित विभिन्न सैन्य दलों की आवश्यकता के लिहाज से कपड़ा तैयार करें।
चीन को भारत का एक और झटका, पढिय़ें खबर पूरी…
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