दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में स्थित है यह शक्तिपीठ केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार माता सती का दांत यहां गिरा था इसलिए यह स्थल पहले दंतेवला और अब दंतेवाड़ा के नाम से चर्चित है। डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर का जीर्णोद्धार पहली बार वारंगल से आए पाण्डव अर्जुन कुल के राजाओं ने करीब 700 साल पहले करवाया था। 1883 तक यहां नर बलि होती रही है। 1932-33 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जीर्णोद्धार तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था। अब यह मंदिर केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है। नदी किनारे नलयुग से लेकर छिंदक नाग वंशीय काल की दर्जनों मूर्तियां बिखरी पड़ी है।
मां दंतेश्वरी को बस्तर राज परिवार की कुल देवी माना जाता है, परंतु अब वह समूचे बस्तरवासियों की अधिष्ठात्री है। प्रतिवर्ष वासंती और शारदीय नवरात्रि के मौके पर हजारों मनोकामनाएं ज्योति कलश प्रज्जवलित होते है। 50 हजार से ज्यादा भक्त पदयात्रा कर शक्तिपीठ पहुंचते है। दंतेश्वरी मंदिर प्रदेश का एक मात्र ऐसा स्थल है। जिसमें हजारों आदिवासी शामिल होते है। नदी किनारे आठ भैरव भाईयों का आवास माना जाता है इसलिए यह स्थल तांत्रिको को भी साधना स्थली है।
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बस्तर की आराध्य मां दंतेश्वरी, मानी जाती है राज परिवार की कुल देवी
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