क्वारेंटाइन सेंटर में ही सीखा निरक्षर प्रवासी श्रमिकों ने अक्षर ज्ञान
बेमेतरा। लखनऊ, नागपुर और पुणे से छत्तीसगढ़ अपने राज्य लौटने के बाद क्वारेंटाइन सेंटर में रहने के दौरान लगाए पौधों से श्रमिकों को इतना लगाव हो गया है कि वे वहां से निकलने के करीब महीने भर बाद भी उनकी देखभाल कर रहे हैं। बेमेतरा जिले के मटका गांव के स्कूल में बनाए गए क्वारेंटाइन सेंटर में रह चुके लोग अपने लगाए पौधों को पानी देने और देखभाल करने अब भी स्कूल परिसर जाते हैं। यह उनके लिए कठिन समय की एक सुखद याद की तरह है। प्रवासी श्रमिकों के लिए प्रदेश भर में बनाए गए क्वारेंटाइन सेंटर्स में वहां मुश्किल समय में रह रहे लोगों का तनाव कम करने उन्हें कई तरह की रचनात्मक और मनोरंजक गतिविधियों में व्यस्त रखा गया था। इस दौरान खेल, पठन-पाठन, वृक्षारोपण और योगाभ्यास जैसी गतिविधियों के माध्यम से उनका तनाव कम किया जा रहा था। कुछ क्वारेंटाइन सेंटर्स में निरक्षर प्रवासी श्रमिकों ने अक्षर ज्ञान भी सीखा। क्वारेंटाइन अवधि पूरा होने तक उन्होंने अपना नाम लिखना और कुछ-कुछ पढऩा भी सीख लिया था। बेमेतरा विकासखंड के मटका, जोंग, अमोरा, पथर्रा और जेवरा गांव में बनाए गए क्वारेंटाइन सेंटर्स में रह रहे प्रवासी श्रमिकों ने बेहद उत्साह से वृक्षारोपण किया था। उन्होंने अपने क्वारेंटाइन सेंटर वाले स्कूल परिसर में आम, कटहल, बरगद, गुलमोहर और नीम के पौधे लगाए थे। वे इनकी नियमित देखभाल और पानी देने का काम भी कर रहे थे। इन पौधों से अब उन्हें इतना लगाव हो गया है कि क्वारेंटाइन सेंटर से अपने घर पहुंचे करीब एक महीना बीत जाने के बाद भी स्कूल परिसर जाकर इनकी देखभाल करते हैं। अपने लगाए सभी पौधों को सुरक्षित देखकर वे गहरा संतोष और सुकून महसूस करते हैं। बेमेतरा जनपद पंचायत द्वारा इन स्कूलों में वृक्षारोपण के लिए पौधे और अन्य संसाधन उपलब्ध कराए गए थे। प्रवासी श्रमिकों की कोशिशों से स्कूल परिसर हरा-भरा हो गया है। पुणे, लखनऊ और नागपुर से लौटे कुछ निरक्षर श्रमिकों ने मटका, जोंग और अमोरा के क्वारेंटाइन सेंटर्स में अक्षर ज्ञान भी सीखा। साथियों से उन्होंने क्वारेंटाइन अवधि पूरी होने तक अपना नाम लिखना और कुछ-कुछ पढऩा भी सीख लिया था। क्वारेंटाइन सेंटर के अधिकारियों ने भी उन्हें लगातार प्रोत्साहित कर अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराई। निरक्षर के रूप में क्वारेंटाइन सेंटर पहुंचे लोगों ने क्वारेंटीन अवधि पूरी कर घर जब लौटने के समय रजिस्टर में अपने नाम के आगे अंगूठा लगाने की जगह हस्ताक्षर किए, तो उनके चेहरों की चमक देखते ही बनती थी। इस मुश्किल दौर ने उन्हें मुस्कुराने की ठोस वजह दी है।