एक नए अनुसंधान से पता चला है कि वातावरण में ग्रीनहाउन गैसों के बढ़ते उत्सर्जन से उपजे ताप प्रभाव के कारण भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (आईएसएम) से होने वाली बारिश में आपेक्षिक वृद्धि मानवजनित एयरोसोल प्रदूषण की वजह से उलट गई है, जिससे 1950 के बाद से वर्षा के स्तर में कमी दर्ज की गई है। पुणे स्थित भारतीय ऊष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के अनुसंधान से यह भी सामने आया है कि आईएसएम के कमजोर होने के कारण पश्चिमी उत्तर प्रशांत (डब्ल्यूएनपी) क्षेत्र में समुद्र में उष्णकटीबंधीय चक्रवात के मामलों में 13.5 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात के मामलों में यह वृद्धि इसलिए होती है, क्योंकि एयरोसोल प्रदूषण सहित अन्य मानवजनित कारणों से आईएसएम से होने वाली बारिश में कमी और गर्म हवाओं के प्रवाह के पैटर्न में आने वाला बदलाव निकट-भूमध्यरेखीय कक्षा और ऊष्णकटिबंधीय हिंद-प्रशांत महासागर के ऊपर मानसून की चाल को इस तरह से प्रभावित करता है कि डब्ल्यूएनपी क्षेत्र में ‘ट्रॉपिकल साइक्लोजेनेसिस’ (वातावरण में ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात का विकास और उसका मजबूत होना) की प्रक्रिया को रफ्तार मिलती है।