अजीत, रमन, भूपेश और अब…
- चंद्रभूषण वर्मा
छत्तीसगढ़ राज्य गठन होने के साथ ही प्रदेश में तीन अक्षर वाले मुख्यमंत्रियों का जलवा रहा है। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी रहे। वहीं दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह रहे, जिन्होंने 15 साल तक इस पद पर राज किया। 2018 में सत्ता परिवर्तन की लहर के साथ ही वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री का पद संभाला है। जैसा कि आप जानते ही हैं इस साल छत्तीसगढ़ में नवंबर-दिसंबर में फिर विधानसभा का चुनाव होना है। तो अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? इस पर अभी से ही कयास लगाए जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यदि कांग्रेस की सरकार आई तो मुख्यमंत्री के पद पर एक बार फिर भूपेश बघेल ही विराजेंगे। लेकिन यदि भाजपा का तगड़ा परफार्मेंस रहा और उलटफेर हुआ तो कौन होगा अगला मुख्यमंत्री? इस बार चर्चाएं तेज होती जा रही है। क्योंकि हाल ही में दिग्गज भाजपा नेता नंदकुमार साय का कांग्रेस प्रवेश भाजपा के लिए एक बड़ी क्षति माना जा रहा है। इन सब चर्चाओं के बीच एक बार फिर भाजपा के कद्दावर नेता और वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस का नाम आगे रहा है। विश्लेषक मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में पिछली बार जो भाजपा की स्थिति रही है, उसे संभालने वाले नेता की काफी जरूरत है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा 90 में से सिर्फ 15 सीट ही हासिल कर पाई थी। इसे देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व इस बार टिकट चयन में विशेष ध्यान देगी, ऐसा ही लगता है। भाजपा के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि वो मुख्यमंत्री के पद पर किसे सामने रखकर चुनाव मैदान में उतरने वाली है। इस बीच चर्चा तो यहां तक चलने लगी है कि यदि मुख्यमंत्री पद के लिए वर्तमान राज्यपाल रमेश बैस का चेहरा सामने किया जाए, तो भाजपा की नैया काफी हद तक पार लग सकती है। क्योंकि रमेश बैस छत्तीसगढ़ की राजनीति में काफी सक्रिय रहे हैं। एक बार तो उनका नाम मुख्यमंत्री पद के लिए बड़े जोर-शोर से सामने आया था। वहीं चुनाव वर्ष को देखते हुए फिर वहीं नाम रमेश बैस का सामने आ रहा है। प्रेक्षक तो यहां तक कह रहे हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन होने के साथ ही प्रदेश में तीन अक्षर वाले मुख्यमंत्रियों का जलवा रहा है। यदि रमेश बैस को मुख्यमंत्री का चेहरा पेश कर दिया जाता है तो भाजपा की एक बार फिर वापसी हो सकती है। नहीं तो नंदकुमार साय के कांग्रेस जाने और भाजपा के मुख्यमंत्री का चेहरा किसी और पेश कर दिए जाने से छत्तीसगढ़ में एक बार फिर सियासी उठापटक के बीच भाजपा के हाथ से सत्ता कहीं न निकल जाए।
वर्तमान परिदृश्य
यदि हम छत्तीसगढ़ विधानसभा की वर्तमान परिदृश्य पर नजर डालें तो हम देखते हैं कि इस समय प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। इनमें से 27 सीटों पर कांग्रेस काबिज है, जबकि सिर्फ 2 सीटें ही भाजपा की झोली में हैं। इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासी समुदाय को साधने के लिए भाजपा ने पूरी तैयारियां कर ली थीं। आपको बता दें कि बस्तर में 12 सीटें हैं। यहां का मु्द्दा भाजपा ने बराबर भुनाया, लेकिन अब भाजपा की मेहनत पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
साय के कांग्रेस प्रवेश का असर
राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि नंद कुमार साय के कांग्रेस प्रवेश का असर सरगुजा की राजनीति पर भी पड़ेगा। वह सरगुजा से साल 2004 में सांसद रहे। इससे पहले साय 1989 और 1996 में रायगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए हैं। वर्तमान में सरगुजा संभाग की 14 विधानसभा सीट में से एक पर भी भाजपा के विधायक नहीं हैं। ऐसे में एक बार भाजपा के लिए यहां की राह काफी कठिन होने वाली है।
सभी के चहेते हैं रमेश बैस
छत्तीसगढ़ के रायपुर संसदीय सीट से 7 बार सांसद रहे रमेश बैस ने राजनीति में लंबी छलांग लगाई है। त्रिपुरा और झारखंड के राज्यपाल के बाद महाराष्ट्र के राज्यपाल की जिम्मेदारी मिली है। महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जहां राजनीतिक उठा पटक जारी रहती है। ऐसे में रमेश बैस को एक और बड़ी जिम्मेदारी मिली है. इससे उनका कद भी बढ़ गया है.
किसान परिवार में हुआ जन्म
2 अगस्त 1947 में रमेश बैस का एक किसान परिवार में जन्म हुआ। पिता खोम लाल बैस रायपुर में बड़े किसान थे। रमेश बैस ने अपनी पढ़ाई मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के बीएसई में पढ़ाई की है। इसके बाद उनकी शादी 1969 में हो गई. इनके एक बेटा और 2 बेटियां हैं. पारिवारिक जीवन के साथ रमेश की राजनीति गतिविधियां शुरू हो गई।
साफ छवि और आम जनमानस तक पैठ
रमेश बैस के जीत के पीछे उनके साफ छवि और आम नागरिकों से आसानी मिलने जुलना उनकी समस्याओं को सुनना समझना और समाधान करना. इससे हर कोई अपने आप को उनसे जुड़ा हुआ महसूस करता है. इस लिए उनके राजनीतिक कैरियर को बूस्टर डोज मिला. बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस के नेता भी उनकी दरियादिली को पसंद करते थे.
राजनीतिक सफर
1978 में रमेश बैस सबसे पहले रायपुर नगर निगम के लिए चुने गए. इसके बाद 1980 में मध्यप्रदेश विधानसभा में गए. लेकिन 1985 के विधानसभा चुनाव में उनको कांग्रेस के सत्यनारायण शर्मा से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन रमेश बैस पर बीजेपी ने भरोसा जताया और अगली बार लोकसभा चुनाव के लिए उनको टिकट मिला है. यही उनकी राजनीति का टर्निंग प्वाइंट था। क्योंकि इसके बाद रमेश बैस ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनका कारवां समय बीतने के साथ बड़ा होता गया।
7 बार रायपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीतने का रिकॉर्ड
रमेश बैस 1989 में रायपुर लोकसभा सीट से पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए. इसके बाद 1996 में 11 वीं लोकसभा के लिए फिर चुने गए. 1998 में तीसरी बार फिर लोकसभा सांसद बने और 1999 में फिर रायपुर से सांसद चुने गए. इसके बाद राज्य गठन के बाद लगातार तीन बार रमेश बैस रायपुर लोकसभा सीट से 2004, 2009 और फिर 2014 में भी लोकसभा चुनाव जीते।
केंद्रीय मंत्री के रूप में भी जिम्मेदारी मिली
इस रिकॉर्ड के चलते रमेश बैस को केंद्रीय मंत्री के रूप में भी जिम्मेदारी मिली. रमेश बैस ने केंद्रीय इस्पात,रसायन और उर्वरक, सूचना और प्रसारण, खान और पर्यावरण, वन राज्य मंत्री जैसे कई विभागों में कार्य कर चुके है. अटल बिहारी वाजपेई मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में भी उन्होंने काम किया है.
2019 में पहली बार बनाए गए थे राज्यपाल
2019 के बाद रमेश बैस पार्टी ने लोकसभा का टिकट नहीं दिया. इसके बाद उन्होंने त्रिपुरा का राज्यपाल बना दिया गया. फिर उन्हे झारखंड के राज्यपाल की जिम्मेदारी दी और अब उन्हें महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य की जिम्मेदारी दी गई है. इसके साथ रमेश बैस छत्तीसगढ़ के पहले नेता है जो देश के 3 राज्यों के राज्यपाल बनाए जा चुके है.