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मप्र और छग के बीच पेंशनरी दायित्वों का बंटवारा नहीं, छत्तीसगढ़ को अनजाने में अरबों का नुकसान-पेंशनर फेडरेशन

छत्तीसगढ़ राज्य संयुक्त पेंशनर फेडरेशन के प्रदेश संयोजक वीरेंद्र नामदेव ने राज्य के पेंशनरो को केन्द्र के समान महंगाई राहत देने में भूपेश सरकार के विलम्ब से दुखी होकर आज पहली बार कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ राहुल गाँधी, छत्तीसगढ़ प्रभारी कुमारी शैलजा और मुख्यमन्त्री भूपेश बघेल को ट्वीट कर आनेवाले विधान सभा चुनाव को ध्यान में रखकर कहा है कि छत्तीसगढ़ में विधान सभा चुनाव है ध्यान दें.राज्य के पेंशनरों को डीए के भुगतान में 22 साल से बाधक म प्र राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 को हटाकर पेंशनरों के साथ न्याय करे.केन्द्र के समान 42प्रतिशत डीए का आदेश करें. असर चुनाव में पड़ेगा. जारी विज्ञप्ति में उन्होंने आगे बताया है कि मध्यप्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49(6) में दोनों राज्य की सहमति को लेकर छत्तीसगढ़ राज्य सरकार जबरन बहानेबाजी बनाकर मनमानी करते आ रही है. अगर ऐसा नहीं है तो दोनों राज्य के पेंशनरो को महंगाई राहत के भुगतान के लिए मध्यप्रदेश शासन द्वारा सहमति हेतु 30 जनवरी 23 के प्रेषित महंगाई राहत के प्रस्ताव को 4 महीने से क्यों लटका कर रखा गया है, छत्तीसगढ़ के साथ ही अस्तित्व पर आये झारखंड और उतराखण्ड में यह समस्या क्यों नहीं है यह भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है. जारी विज्ञप्ति में राज्य के पेंशनरों की समस्याओं को लेकर राज्य कर्मचारी संघ के पूर्व प्रांताध्यक्ष,भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री एवं छत्तीसगढ़ राज्य संयुक्त पेंशनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव ने खुलासा किया है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 को विलोपित कर पेंशनरी दायित्व का बंटवारा मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच आपस में नही होने के कारण छत्तीसगढ़ को राज्य पुनर्गठन के बाद इन 22वर्षो में अरबों रुपये का नुकसान हो चुका है और यह घाटा आगे भी जारी रहेगा। सरकार को इस वित्तीय संकट के दौर में तुरन्त संज्ञान में लेकर पेंसनरी दायित्व के बटवारे के लिए गंभीरता से कार्यवाही करना चाहिए। उन्होंने आगे बताया है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम के प्रावधानों के तहत 74 प्रतिशत राशि का भुगतान मध्यप्रदेश सरकार को और 26 प्रतिशत राशि का भुगतान छत्तीसगढ़ सरकार को मध्यप्रदेश के 05 लाख और छत्तीसगढ़ के 01लाख पेंशनरों इसतरह कुल 6 लाख से अधिक पेंशनर और परिवारिक पेंशनरों मिलकर करना होता है इसके लिए दोनो राज्य सरकारों में आपसी सहमति नही होने पर कोई भी भुगतान करना सम्भव नही हैं और इसी भुगतान के खेल में छत्तीसगढ़ सरकार को इन 20 वर्षो में अरबो रुपये का नुकसान उठाना पढ़ रहा है। जो लगातार जारी हैं। उन्होनें उदाहरण देते हुये बताया है कि प्रत्येक पेंशनर को नियमानुसार 74 प्रतिशत राशि मध्यप्रदेश द्वारा और 26 प्रतिशत राशि छत्तीसगढ़ द्वारा दिया जाना है अर्थात 100 रुपये में 6 लाख पेंशनर को मध्यप्रदेश 74 प्रतिशत और इन्ही सभी पेंशनरों को 26 प्रतिशत छत्तीसगढ़ सरकार के खजाने से देने पड़ेंगे। हिसाब लगाने पर इसमें मध्यप्रदेश को 44 करोड़ 44 लाख व्यय करना पड़ेगा और छत्तीसगढ़ सरकार को 1करोड़ 56 लाख व्यय होगा। परन्तु यदि मध्यप्रदेश अपने 5 लाख पेंशनर को 100 प्रतिशत भुगतान करता है उसे 5 करोड़ और छत्तीसगढ़ सरकार अपने 1 लाख पेंशनरों के केवल 1 करोड़ खर्च करने होंगे। इस तरह केवल 100 रुपये के भुगतान में ही छत्तीसगढ़ शासन को 56 लाख रुपए का नुकसान हो रहा है। इसीलिए अपने राज्य के वित्तीय फायदे को ध्यान में रखकर मध्यप्रदेश सरकार जान बूझकर 22 साल से पेंशनरी दायित्व के विभाजन को टालते आ रही है। छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश आपसी सहमति के चलते पेंशनरों के साथ खिलवाड़ कर रहे है और 22 वर्षो से लंबित इस दोनो मामले को मध्यप्रदेश शासन जानबूझकर टाल रही हैं और छत्तीसगढ़ शासन इसे नही समझ पा रही हैं और जबरदस्त वित्तीय नुकसान उठा रही हैं। उन्होंने आगे बताया है कि पेंशनरों के मामले में मध्यप्रदेश सरकार पर आर्थिक निर्भरता के बाध्यता के लिये ब्यूरोक्रेसी की लापरवाही जम्मेदार है और ब्यूरोक्रेसी द्वारा राज्य विभाजन के इन 22 वर्षो में मध्यप्रदेश के लगभग 5 लाख पेसनरो को छत्तीसगढ़ सरकार के खजाने से भुगतान में अरबों रुपये के हुए नुकसान से अंधेरे में रखने को आश्चर्य जनक निरूपित किया है। उन्होंने पेंशनरों की आर्थिक दुर्दशा पर ब्यूरोक्रेसी के साथ साथ सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो को चिन्ता नही होने को दुर्भाग्यजनक जताते हुये उन्होंने छत्तीसगढ़ निर्माण के 22 वर्षो बाद भी राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 को हटाने में आज तक ध्यान नही देने पर चिन्ता जाहिर किया है। इन सभी मामलों पर ब्यूरोक्रेसी ही मुख्यरूप से जिम्मेदार है और इसलिए जिम्मेदारी तय कर छत्तीसगढ़ सरकार को उन पर कार्यवाही करनी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह के मामलों पर पुनरावृत्ति न हो। जारी विज्ञप्ति में भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री एवं छत्तीसगढ़ राज्य संयुक्त पेंशनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव के साथ फेडरेशन के घटक संघ से छत्तीसगढ़ पेंशनभोगी कल्याण संघ के प्रांताध्यक्ष डॉ डी पी मनहर, प्रगतिशील पेंशनर कल्याण संघ के प्रांताध्यक्ष आर पी शर्मा, पेंशनर एसोसिएशन छत्तीसगढ़ के प्रांताध्यक्ष यशवन्त देवान तथा भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ छत्तीसगढ़ प्रदेश के प्रांताध्यक्ष जे पी मिश्रा, छत्तीसगढ़ पेंशनर समाज के अध्यक्ष ओ पी भट्ट आदि ने आगे बताया है कि दोनो राज्यो के बीच पेंशनरी दायित्व का बंटवारा नही होने से पेंशनरों को मिलनेवाली आर्थिक मामले मध्यप्रदेश के सहमति के बिना लटकी हुई है,चाहे महंगाई राहत का मामला हो या छटवें और सातवें वेतनमानों का एरियर हो अथवा सेवानिवृत्त उपादान की रकम, ये सभी दोनो राज्यों में आपसी सहमति पर होने से भुगतान होने में हमेशा लम्बित रहता है। जिसके कारण पेंशनर और परिवार पेंशनर आर्थिक और सामाजिक शोषण के शिकार बन रहे हैं। उन्होंने आगे बताया है कि पेंशनरों की समस्याओं पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो की बेरुखी है, क्योंकि जब भाजपा की सरकार रही तो उन्हें बार बार अवगत कराने के बाद भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया और अब लगभग 4 साल से राज्य के सत्ता में काबिज कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री और जिम्मेदार अधिकारियों से लगातार चर्चा, ज्ञापन और धरना,प्रदर्शन आदि के माध्यम अवगत कराने बाद भी स्थिति जस के तस बनी हुई है।

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