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इस दिन से होगी शुरू कांवड़ यात्रा, क्या आप जानते हैं सबसे पहला कांवडिय़ा कौन था ?

सावन का महीना 4 जुलाई 2023 से शुरू हो जाएगा. हिंदू धर्म में सावन बहुत पवित्र महीना माना जाता है. सावन की शुरुआत के साथ कांवड़ यात्रा भी आरंभ हो जाती है. सावन में शिव की विधिवत पूजा करने के साथ-साथ कई भक्तगण पैदल कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं और गंगा नदी का पवित्र जल कांवड़ में भरकर लाते हैं. मान्यता है कि सावन शिवरात्रि के दिन इस जल से शिव का जलाभिषेक करने वाले की हर मनोकामना पूरी होती है. आइए जानते हैं इस साल कांवड़ यात्रा कब होगी शुरू, महत्व और कौन था सबसे पहला कांवडिय़ा. कांवड़ यात्रा 4 जुलाई 2023 से शुरू होगी और इसका समापन 15 जुलाई 2023 को सावन शिवरात्रि पर होगा. इस बार सावन का महीना बहुत खास होगा, क्योंकि महादेव की कृपा दिलाने वाला सावन इस साल 59 दिनों का है. संसार में सबसे पहला सबसे पहला कांवडिय़ा कौन था इसको लेकर कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित है. एक धार्मिक मान्यता के अनुसार परशुराम जी को सबसे पहला कांवडिय़ा माना जाता है. कथा के मुताबिक एक बार चक्रवती राजा सहस्त्रबाहु परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि के आश्रम पहुंचे. ऋषि जमदग्नि ने राजा और उसकी सेना का आदर सत्कार किया. राजा ये जानने के लिए उत्सुक था कि एक निर्धन ब्राह्मण कैसे उसकी पूजा सेना को भोजन कराने में कामयाब हुआ. जब राजा को पता चला कि ऋषि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय है, जो हर मनोकामना पूरी करती है. कामधेनु को पाने के लालच में राजा ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी. अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु की सभी भुजाओं को काट दिया, जिससे उसकी भी मृत्यु हो गई. परशुराम जी कि कठोर तपस्या के बाद पिता जमदग्नि को जीवनदान मिल गया. ऋषि ने परशुराम जी को सहस्त्रबाहु की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गंगाजल से शिव का अभिषेक करने को कहा. परशुराम जी ने मीलों पैदल यात्रा की और कांवड़ में गंगाजल भरकर लाए. आश्रम के पास ही उन्होंने शिवलिंग की स्थापना कर महादेव का जलाभिषेक किया. एक और मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान शिव ने हलाहल विष पी लिया था. विष के गंभीर नकारात्मक प्रभावों ने शिवजी को असहज कर दिया. महादेव को इस पीड़ा से मुक्त कराने के लिए उनके परमभक्त रावण ने कावड़ में जल भरकर कई बरसों तक महादेव का जलाभिषेक किया, इसके चलते शिवजी जहर के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और उनके गले में हो रही जलन खत्म हो गई. यहीं से कावड़ यात्रा का आरंभ माना गया.
नोट: यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। छत्तीसगढ़ राज्य न्यूज पोर्टल लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी और धारणा को अमल में लाने या लागू करने से पहले कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।

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