हाल ही में गुजरात के मेहसाणा जिले में एक नवजात बच्चे का पूरा शरीर नीला पड़ जाने के बाद डॉक्टरों द्वारा की गई गहन जांच में बच्चे के शरीर में भारी मात्रा में निकोटिन पाया गया। इसका कारण नवजात की मां को 15 साल की उम्र से तम्बाकू खाने की लत थी। हर रोज 10-15 पाउच तम्बाकू-गुटखा खाने की इस आदत का कोख में पल रहे बच्चे पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ा। चिकित्सकीय रिपोर्ट के अनुसार, जन्म के बाद नवजात में निकोटिन का जो स्तर पाया गया वह वयस्कों में निकोटिन के सामान्य स्तर से 3000 गुना तक ज्यादा है। गर्भावस्था में मां द्वारा तम्बाकू सेवन किए जाने के कारण बच्चे के लिए जन्म से पहले ही स्वास्थ्य से जुड़े जोखिम खड़े हो गए। विशेषज्ञों के मुताबिक, बच्चे के शरीर में निकोटिन खून, नाल और प्लेसेंटा के जरिये पहुंचा।
महिलाओं में बढ़ी सेवन की प्रवृत्ति
बीते कुछ बरसों में धुआं रहित तम्बाकू उत्पादों का सेवन हो या धूम्रपान, तम्बाकू का सेवन पुरुषों ही नहीं बल्कि महिलाओं में भी बढ़ा है। यहां तक कि किशोरियों और युवतियों में भी टोबैको उत्पादों का सेवन देखने में आ रहा है। जिसके चलते महिलाओं में दूसरी शारीरिक बीमारियां ही नहीं बढ़ रहीं, प्रजनन क्षमता पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। साथ ही तम्बाकू के सेवन की आदत से दिल की बीमारी, मुंह, फेफड़े, गले, पेट, गुर्दे, मूत्राशय एवं यकृत का कैंसर, मसूड़ों की बीमारी, ब्रेन अटैक, निमोनिया, उच्च रक्तचाप, लकवा, अवसाद, इंफर्टिलिटी और प्रतिरोधक क्षमता में कमी आने जैसी अनगिनत क्रॉनिक समस्याएं पैदा हो रही हैं। सेहत से जुड़े इन जोखिमों के बावजूद तंबाकू सेवन अब बड़ी संख्या में महिलाओं की जीवनशैली का हिस्सा बन गया है। ज्ञात हो कि सामाजिक-पारिवारिक ढांचे में बड़ा अंतर होने के बावजूद सिगरेट पीने के मामले में अमेरिकी महिलाओं के बाद दूसरे नम्बर पर भारतीय महिलाएं ही हैं।
चिंतनीय है असर
नार्वे में हुए एक अध्ययन के अनुसार, धूम्रपान से महिलाओं की हड्डियों के खोखला होने, हृदय रोग, समय से पहले रजोनिवृत्ति और बांझपन की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। सिगरेट पीने वाली महिलाओं में मेनोपॉज, धूम्रपान न करने वाली महिलाओं की अपेक्षा एक से 4 साल पहले होता है। समझना मुश्किल नहीं कि मेनोपॉज के बाद तो हार्मोनल बदलावों से बहुत स्वास्थ्य समस्याएं दस्तक देने लगती हैं। इतना ही नहीं, महिलाओं में तम्बाकू का सेवन गर्भपात और असामान्य बच्चों के जन्म का भी बड़ा कारण बन रहा है। इन उत्पादों का सेवन करने वाली महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर की आशंका पुरुषों की तुलना में दस गुना ज्यादा बढ़ जाती है। तम्बाकू उत्पादों की वजह से गर्भवती महिलाओं में एनीमिया का खतरा 70 प्रतिशत तक बढ़ा है। गौरतलब है कि तम्बाकू में निकोटिन, कार्बन मोनो ऑक्साइड समेत 60 तरह के विषाक्त तत्व होते हैं, जो तंबाकू, गुटखा, सिगरेट के जरिये रक्त में पहुंचते हैं। श्वसन प्रक्रिया पर असर डालते हुए ऑक्सीजन लेने और कार्बन डाई ऑक्साइड छोडऩे की क्षमता कम करते हैं। सांस खींचते हुए ऑक्सीजन लेने में आने वाली कमी गर्भावस्था में और घातक हो जाती है। यह गर्भ में पल रहे भ्रूण के स्वास्थ्य और विकास पर दुष्प्रभाव डालने वाली स्थिति है।
बाजार दे रहा बढ़ावा
देखने में आ रहा है कि तम्बाकू और सिगरेट उद्योग के लिए आधी आबादी एक अच्छा और बढ़ता ग्राहक वर्ग बन गया है। महिलाओं में बढ़ते आर्थिक आत्मनिर्भरता के आंकड़े और तथाकथित खुली सोच ने ऐसे उत्पादों के सेवन को प्रोत्साहन दिया है। स्पष्ट दिखता है कि तम्बाकू विज्ञापनों में महिलाओं और लड़कियों को भी हिस्सा बनाया जाता है। ऐसे विज्ञापनों में खूबसूरती और तम्बाकू के मेल से खुलेपन और ज़िंदादिली के साथ जीने की एक नई परिभाषा गढ़ी जा रही है। ऐसे में आज की शिक्षित और सजग महिलाओं को यह समझना होगा कि तम्बाकू का सेवन उनके स्वास्थ्य के लिए बड़ा जोखिम पैदा कर रहा है। बाजार के जाल में फंसकर यह न भूलें कि जीवन के किसी भी मोर्चे पर सशक्त और कामयाब उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए अच्छी सेहत होना सबसे ज्यादा जरूरी है। अपने सुखी संसार को जीने के लिए सेहतमंद होना सबसे पहली शर्त है। बीमारियों के घेरे में न तो अपनी उपलब्धियों को जिया जा सकता है और न ही परिजनों के साथ खुशियां मनाने के हालात रहते हैं। ऐसे में जिंदादिली और आधुनिक जीवनशैली के छलावे को जागरूक सोच के व्यावहारिक धरातल पर समझें। डॉ. मोनिका शर्मा